मृत्यु के बाद की मान्यताएँ : शव को दक्षिण दिशा में क्यों रखते हैं और कपाल क्रिया का वास्तविक कारण क्या है?

मृत देह को दक्षिण दिशा में क्यों रखा जाता है?
हिंदू मान्यताओं और शास्त्रों के अनुसार, मृत देह को घर में रखते समय उसके पैर दक्षिण दिशा की ओर करना अनिवार्य माना जाता है। इस प्रथा के पीछे निम्नलिखित कारण बताए जाते हैं
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यम तरंगों का आकर्षण: दक्षिण दिशा को यम की दिशा माना जाता है। मृत्यु के पश्चात शरीर से निष्कासन योग्य सूक्ष्म वायुओं (रज-तमात्मक दूषित वायुओं) का उत्सर्जन बढ़ जाता है। मृत देह को दक्षिणोत्तर (सिर उत्तर और पैर दक्षिण) रखने से, इस दिशा से आने वाली यम तरंगें मृत देह की ओर आकर्षित होती हैं।
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सूक्ष्म वायुओं का विघटन: यम तरंगों का यह कोष निष्कासन योग्य सूक्ष्म वायुओं के शीघ्र विघटन में सहायता करता है। यह दूषित वायु नासिका और गुदा (मलद्वार) से वातावरण में उत्सर्जित होती है, जिससे देह अनिष्ट शक्तियों के वश में होने से बच जाती है।
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वासनात्मक तरंगों का उत्सर्जन: कटि (कमर) के निचले भाग से अधिक मात्रा में वासनात्मक तरंगों का उत्सर्जन होता है। इन तरंगों का खिंचाव और गति भी दक्षिण दिशा की ओर अधिक होती है। पैर दक्षिण दिशा में रखने से उत्सर्जन अधिक उचित और अधिकतम मात्रा में होता है, जिससे चिता पर रखे जाने से पूर्व देह अधिकतम मात्रा में 'रिक्त' हो जाती है। शास्त्रों के अनुसार, श्मशान घाट में चिता पर शव को रखते समय पैर उत्तर दिशा की ओर रखना आवश्यक होता है।
अंतिम संस्कार में 'कपाल क्रिया' का रहस्य
अंतिम संस्कार के दौरान, चिता को मुखाग्नि देने के कुछ समय बाद, जब शरीर का अधिकांश भाग जल चुका होता है, तब शव के सिर पर लकड़ी या बाँस से प्रहार कर घी डाला जाता है। इस क्रिया को कपाल क्रिया कहते हैं।
इस क्रिया के संबंध में मुख्य रूप से तीन मत प्रचलित हैं
मतभेद 1: पुनर्जन्म और याददाश्त (अधूरा सत्य)
यह मान्यता है कि यदि सिर या दिमाग का कोई हिस्सा जलने से बच जाए, तो आत्मा को अगले जन्म में पिछले जन्म की बातें याद रह जाती हैं। चूँकि दुखद मृत्यु की यादें नए जन्म में भी दुख ला सकती हैं, इसलिए सिर को पूरी तरह जलाया जाता है। कई आध्यात्मिक विचारकों का मानना है कि यादाश्त आत्मा (अवचेतन मन) के साथ रहती ही है, जिसे अगले जन्म में विस्मृत किया जा सकता है। इसलिए, कपाल क्रिया का सीधा संबंध इस प्रक्रिया से नहीं है।
मतभेद 2: सहस्रार चक्र और मोक्ष (आंशिक सत्य)
कुछ लोग मानते हैं कि कपाल क्रिया करने से सहस्रार चक्र खुल जाता है, जिससे आत्मा ज्ञान मार्ग से मोक्ष को प्राप्त करती है। दार्शनिक खंडन: आत्मा शरीर छोड़ने के समय ही देह से निकल चुकी होती है। योगियों द्वारा समाधि या विशेष तंत्र द्वारा मृत्यु से पूर्व ही आत्मा को सहस्रार चक्र से निकाला जाता है। मृत्यु के बाद केवल 'शव' शेष रहता है, इसलिए कपाल क्रिया से मोक्ष प्राप्ति का दावा पूरी तरह सत्य नहीं है।
वास्तविक कारण: दुष्ट तांत्रिकों से सुरक्षा (मुख्य कारण)
कपाल क्रिया की प्रथा शुरू करने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण और व्यवहारिक कारण दुष्ट तांत्रिकों से सुरक्षा है। प्रेत बनाने का भय: प्राचीन काल में, कई दुष्ट तांत्रिक श्मशान से कपाल (खोपड़ी) इकट्ठा कर लेते थे। इन कपालों का उपयोग मृत व्यक्ति की आत्मा को प्रेत बनाकर उनसे गलत कार्य करवाने या वश में करने के लिए किया जाता था। अघोरियों की पहल: इस दूषित प्रथा को रोकने के लिए, अघोरी संप्रदाय या उस समय के साधकों ने यह प्रथा चलाई कि सभी शवों की कपाल क्रिया कर दी जाए। जब कपाल ही नहीं बचेगा, तो तांत्रिक उससे कोई दुष्ट क्रिया नहीं कर पाएगा।
