श्री डाल सिंह मेमोरियल स्कूल में बच्चों को संस्कारों से जोड़ने की अनूठी पहल: हनुमान चालीसा का नियमित पाठ और भारतीय परंपराओं का अभ्यास बन रहा उदाहरण

Unique initiative to connect children with values ​​in Shri Dal Singh Memorial School: Regular recitation of Hanuman Chalisa and practice of Indian traditions is becoming an example
 
हरदोई(अम्बरीष कुमार सक्सेना) 
आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ यदि बच्चों को संस्कार और संस्कृति की सीख भी मिले तो उनके समग्र विकास की नींव मजबूत होती है। इसी उद्देश्य को लेकर श्री डाल सिंह मेमोरियल स्कूल ने एक सराहनीय पहल की है, जिसके अंतर्गत विद्यालय में हर सप्ताह मंगलवार और शनिवार को सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ कराया जाता है। इस अनूठी पहल का उद्देश्य बच्चों को भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म और मूल्यों से जोड़ना है, जिससे वे न केवल पढ़ाई में आगे रहें, बल्कि एक अच्छे इंसान भी बनें।

 

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विद्यालय में प्रतिदिन प्रार्थना सभा के दौरान बच्चों को संस्कार, आचार और व्यवहार की शिक्षा दी जाती है। बच्चों को हाय बाय टाटा के स्थान पर राधे राधे, जय सियाराम  बोलना सिखाया जाता है।शिक्षकों द्वारा उन्हें समझाया जाता है कि घर में माता-पिता और बड़ों का सम्मान करना, सुबह उठकर धरती माता को प्रणाम करना, और माता-पिता के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेना हमारे संस्कृति की मूल पहचान है। बच्चों को यह भी बताया जाता है कि स्कूल आने से पहले और घर लौटने के बाद माता-पिता के पैर छूकर आशीर्वाद लेना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मीयता और सम्मान का प्रतीक है।

 

विद्यालय प्रशासन का मानना है कि बच्चों को बचपन से ही यदि धार्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा दी जाए तो वे भविष्य में जिम्मेदार, अनुशासित और नैतिक नागरिक बन सकते हैं। हनुमान चालीसा जैसे धार्मिक पाठ बच्चों के मन में भक्ति, साहस और आत्मबल की भावना उत्पन्न करते हैं, वहीं माता-पिता और गुरुजनों के प्रति श्रद्धा का भाव उन्हें विनम्र और कृतज्ञ बनाता है।

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इस प्रयास को न केवल विद्यार्थियों बल्कि अभिभावकों और समाज के प्रबुद्धजनों का भी भरपूर समर्थन मिल रहा है। यह पहल शिक्षा जगत में एक प्रेरणादायी उदाहरण बनती जा रही है, जिससे यह साबित होता है कि यदि विद्यालय चाहे तो पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ नैतिकता और संस्कृति की शिक्षा भी बच्चों को प्रभावी रूप से दी जा सकती है। श्री डाल सिंह मेमोरियल स्कूल की यह पहल निश्चित ही सनातन मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की एक सशक्त कड़ी बनती जा रही है।

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