श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: जहां दर्शन मात्र से कटता है पुनर्जन्म का बंधन

Shri Mallikarjuna Jyotirling: Where the bond of rebirth is broken by mere darshan
 
Shri Mallikarjuna Jyotirling: Where the bond of rebirth is broken by mere darshan
(लेखिका: अंजनी सक्सेना - विभूति फीचर्स)
भारतवर्ष में भगवान शिव के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से दूसरा ज्योतिर्लिंग श्री मल्लिकार्जुन दक्षिण भारत के श्रीशैल पर्वत पर स्थित है। यह पुण्यधाम आंध्रप्रदेश के कुरनूल ज़िले से लगभग 180 किलोमीटर तथा हैदराबाद से करीब 230 किलोमीटर दूर कृष्णा नदी के तट पर विराजमान है। इस स्थान को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है।
यह शिव और शक्ति के समन्वय का अद्वितीय केंद्र है जहाँ भगवान शिव मल्लिकार्जुन और माता पार्वती भ्रामरांबा देवी के रूप में पूजित हैं। यहाँ का वातावरण आत्मा को शांति और मोक्ष का अनुभव कराता है।

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मल्लिकार्जुन नाम की उत्पत्ति और पौराणिक कथा

‘मल्लिका’ माता पार्वती का और ‘अर्जुन’ भगवान शिव का एक नाम है। दोनों नामों के समन्वय से बना मल्लिकार्जुन। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान कार्तिकेय, जब विवाह से रुष्ट होकर दक्षिण की ओर चले गए, तो माता-पिता उनका अनुसरण करते हुए श्रीशैल पर्वत तक पहुँचे। लेकिन कार्तिकेय तीन कोस आगे निकल चुके थे। तभी से भगवान शिव हर अमावस्या और माता पार्वती हर पूर्णिमा को यहां आते हैं और पुत्र की प्रतीक्षा करते हैं।
जहां वे ठहरे, वह स्थान मल्लिकार्जुन कहलाया और यहीं एक भव्य मंदिर की स्थापना हुई, जिसे देखना, समझना और अनुभव करना जीवन का सौभाग्य माना जाता है।

 शास्त्रों और पुराणों में श्रीशैल का गौरव

"श्रीशैल शिखरम् दृष्टा पुनर्जन्म न विद्यते" — श्रीशैल के दर्शन से पुनर्जन्म नहीं होता।
"श्रीशैलेश्वर लिंग तुल्यम लिंगं न भूमंडले" — इस पावन स्थान की तुलना पृथ्वी पर किसी अन्य तीर्थ से नहीं की जा सकती।
"मल्लिकार्जुन नाम स्मरण मात्र से पापों का नाश होता है।"
शिव रहस्य, स्कंद पुराण, शिव पुराण, श्रीशैल खंड तथा अनेक ग्रंथों में श्रीशैल के महत्व की स्पष्ट चर्चा की गई है।

 चमेली और अर्जुन: नाम का आध्यात्मिक अर्थ

एक कथा के अनुसार भगवान शिव अर्जुन वृक्ष में प्रविष्ट हुए, जो मल्लिका (चमेली) की लताओं से आच्छादित था। एक अन्य कथा में भक्त चंद्रावती द्वारा अर्पित मल्लिका फूलों से प्रसन्न होकर भगवान ने मल्लिकार्जुन नाम धारण किया। शिव स्वयं कहते हैं:
"मुझे मल्लिका की माला प्रिय है, अतः मैं मल्लिकार्जुन कहलाता हूँ।"
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 श्रीशैल में देवी का निवास और शिव-शक्ति की अद्वितीय आराधना

यहां माता पार्वती भ्रामरांबा और उमामहेश्वरी रूप में निवास करती हैं। इस स्थल पर अर्धनारीश्वर रूप की भी पूजा होती है, जो शिव और शक्ति की एकता का दिव्य प्रतीक है।

 आध्यात्मिक महत्ता और मोक्ष की प्राप्ति

श्रीशैलम में एक दिन निवास करने से उतना पुण्य प्राप्त होता है जितना काशी में हजारों वर्षों के निवास से होता है।
“कोटिजन्मकृतं पापं भस्मिभवति तत्क्षणात्” — मल्लिकार्जुन स्वामी की आराधना से करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
गंगा स्नान, तीर्थयात्रा, हवन, दान जैसे सभी पुण्य कार्यों का फल इस तीर्थ में सच्चे मन से की गई पूजा से प्राप्त हो जाता है।

 आध्यात्मिक सिद्धियों का केंद्र

श्रीशैलम अनेक संतों और सिद्धों की तपस्थली रही है। आदि शंकराचार्य ने यहीं शिवानंद लहरी और लक्ष्मी नरसिंह स्तोत्र जैसे ग्रंथों की रचना की। उन्होंने श्रीचक्र की स्थापना कर देवी की उपासना की।

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