शुभकरण चूड़ीवाला:सत्ता छोड़, सेवा का मार्ग चुनने वाले कर्मवीर 

Shubhkaran Chudiwala: A Karmveer who left power and chose the path of service
Shubhkaran Chudiwala: A Karmveer who left power and chose the path of service
(कुमार कृष्णन-विनायक फीचर्स)  21 मार्च 1919 को रोलेट एक्ट लागू किया गया, इसमें न अपील, न दलील और न वकील की व्यवस्था थी। महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल 1919 को देशभर में दमनकारी कानून की मुखालफत करते हुए हड़ताल का आह्वान किया और कहा कि-‘‘ जब तक यह कानून वापस न ले लिया जाए, सभ्यतापूर्वक मानने से इंकार कर दें।

‘‘ इसी दौर में जालियांवाला कांड हुआ, जिसने अनेक लोगों को झकझोरकर रख दिया। रविन्द्रनाथ टैगोर ने सर की उपाधि ठुकरा दी। पूर्ण स्वराज का नारा बुलंद हुआ। इस आंदोलन को गति प्रदान करने के लिये महात्मा गांधी का भागलपुर आगमन हुआ। गांधीजी ने ऐतिहासिक टिल्हा कोठी (जहां अब रविन्द्र भवन है) से आम सभा को संबोधित करते हुए पूर्ण स्वराज के लक्ष्य को हासिल करने के लिये आर्थिक स्वाबलंवन, नैतिक सद् व्यवहार और कुप्रथाओं के उन्मूलन का आह्वान किया। गांधी जी के इस आव्हान ने शुभकरण चूड़ीवाला  की जीवन दिशा ही

बदल डाली।  अपने विदेशी कपड़ो  की होली जलायी तथा जंगे- आजादी में शरीक हो गये। इस सभा में उन्होंने देश सेवा का जो व्रत  लिया उसका वह सिर्फ देश की आजादी तक ही नहीं, बल्कि अपने संपूर्ण जीवन पर्यन्त निरंतर निर्वहन करते रहे। संघर्ष, रचना, अनुशासन और सेवा यह उनके जीवन का लक्ष्य था।22 नवंबर1898 को जन्मे शुभकरण चूड़ीवाला ने सौ साल से अधिक की जिन्दगी जी। यह जिन्दगी अपने परिवार के लिये कम और देश तथा समाज के लिये ज्यादा थी। उनको गुजरे तेईस वर्ष हो गये हैं पर उन्होंने पूर्व बिहार में जो आजादी और जन जागरण की मशाल जलायी, उससे चप्पा-चप्पा आज भी वाकिफ है। आज जब नैतिक मूल्यों का ह्रास निरंतर हो रहा है, सेवा भाव खत्म हो रहा है, स्वार्थलोलुपता हावी है, वैसे दौर में शुभकरण बाबू की प्रासंगिकता और ज्यादा बढ़ गयी है। भागलपुर शहर के एक व्यावसायिक घराने में जन्मे शुभकरण बाबू का व्यवसाय उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भी था। शुभकरण चूड़ीवाला के सिर से पिता का साया तीन वर्ष  की उम्र में उठ गया।गोरखपुर में नाना और मामा के यहां इनकी परवरिश हुई। महाजनी की तालीम हासिल करने के बाद किशोरावस्था से ही इनका लगाव सामाजिक कार्यों से हो गया था।


आजादी की लड़ाई  में उत्तर प्रदेश में  दैनिक आज के संस्थापक संपादक बाबू शिवप्रसाद गुप्त, मदन मोहन मालवीय, पुरूषोत्तम दास टंडन, संपूर्णानंद, कमलापति त्रिपाठी, चंद्रभान गुप्त, आचार्य नरेन्द्र देव, हनुमान प्रसाद पोद्दार के सानिध्य में रहकर काम किया तो वहीं भागलपुर में राय बहादुर वंशीधर ढांढानियां, दीपनारायण सिंह, पटलबाबू, चारू मजूमदार, प्रभुदयाल हिम्मतसिंहका, सियाराम सिंह, हरनारायण जैन, पंडित मेवालाल झा, रामेश्वर नारायण अग्रवाल, कैलाश बिहारी लाल, और रासबिहारी लाल आदि के साथ भी काम किया। दीपनारायण सिंह और पटल बाबू की मौत के बाद स्वतंत्रता संग्राम के राष्ट्रीय नेताओं का केन्द्र स्थल उनका मारबाड़ी टोला स्थित आवास और मिरजानहाट स्थित व्यावसायिक प्रतिष्ठान बन गया। आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी शौकत अली और मोहम्मद अली के साथ भागलपुर स्थित टिल्हा कोठी आए और आम सभा को संबोधित किया। उस सभा में चारू मजूमदार के नेतृत्व में चूडीवाला स्वयं भी स्वयंसेवक के रूप में तैनात थे।

इसी सभा से उन्होंने आजीवन स्वदेशी का व्रत धारण किया। आजादी की लड़ाई के साथ-साथ उन्होंने अपने आप को भंगी मुक्ति आंदोलन, खादी के प्रचार, चरखा आंदोलन के साथ जोड़ दिया। इन्हीं दिनों उनकी अगुआयी में 1923 में मारवाड़ी सुधार समिति का गठन किया। इस संस्था की 1938 में इन्हीं की अध्यक्षता में हुई कार्यकारिणी की बैठक में युवाओं को आत्मरक्षार्थ स्वाबलंबी बनाने की गरज से मारवाड़ी व्यायामशाला की नींव रखी। युवाओं को रचनात्मक  कार्यों के लिये प्रेरित किया। उनका मानना था कि केवल संघर्ष से परिवर्तन संभव नहीं है। इसके लिए रचना जरूरी है।


जब 1934 में बिहार में भयंकर भूकंप आया और मुंगेेर सहित बिहार के कई जिले प्रभावित हुए। मुंगेर की स्थिति इतनी भयावह थी कि इसके संदर्भ में उस समय ‘ द स्टेटसमेन’ में लीड खबर का शीर्षक था-‘ मुंगेर सीटी इज नो मोर'। तब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने  बिहार रिलीफ कमेटी का सदस्य श्री चूड़ीवाला को बनाया। चूडीवाला ने एक सामान्य स्वयंसेवक की तरह तीन माह तक मलबे से शवों को निकालने और दाह संस्कार करवाने का काम किया। भूकंप से हुई तबाही और चलाये जा रहे राहत कार्यों का निरीक्षण करने महात्मा गांधी,पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पहुंचे तो इनके सेवा कार्यों की मुक्तकंठ से सराहना की।


आजादी की लड़ाई के दौरान वे स्वयं संघर्ष में तो सक्रिय रहे ही, साथ ही स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को आर्थिक मदद भी करते थे। 1937 में भागलपुर में अंग्रेजी हुकूमत का दमन चक्र चल रहा था तो डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, अब्दुल बारी, बलदेव सहाय सरीखे लोगों के नेतृत्व में सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया गया। पुलिस द्वारा आंदोलनकारियों पर बर्वरतापूर्वक लाठियां बरसायी गयाी। इस हमले में राजेन्द्र बाबू सहित अनेक लोग घायल हुए। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद  ने अपनी आत्मकथा में इस घटना का जिक्र किया है। घायल नेताओं को भागलपुर लाया गया और दल्लू बाबू की धर्मशाला तथा इनके निवास पर गुप्त रूप से इलाज चला। बिहपुर के सत्याग्रह ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया। भागलपुर के विहपुर के स्वराज आश्रम और पटना स्थित सदाकत आश्रम के निर्माण में इनकी अहम् भूमिका रही।


जब राष्ट्रीय कांग्रेस का रामगढ़ अधिवेशन हुआ तो चूड़ीवाला और रामेश्वर नारायण अग्रवाल भोजन विभाग के प्रभारी बनाये गये। इस दौरान वे महात्मा गांधी के निकट संपर्क में आए। महात्मा गांधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन के दौरान श्री चूड़ीवाला ने जिला परिषद के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। वे भागलपुर जिला परिषद् में सरकार के मनोनीत सदस्य थे।


क्रिप्स मिशन की विफलता ने देश में गहरे असंतोष की भावना पैदा कर दी। 14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्यसमिति ने एक प्रस्ताव का अनुमोदन किया, जिसमें भारत में ब्रिटिश शासन तुरंत समाप्त करने की आवश्यकता घोषित की गयी। इस प्रस्ताव से समूचे देश में आंदोलन की लहर दौड़ पड़ी। 1942 के आंदोलन के दौरान वे भागलपुर, मुंगेर और संथालपरगना के संयोजक, संचालक और कोषाध्यक्ष बनाये गये। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बिहार में सियाराम दल और परसुराम दल ने अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी। अंग्रेजों द्वारा इन पर सियाराम दल को मदद करने का आरोप लग चुका था। ये भूमिगत हो गये और जसीडीह के आरोग्य भवन में अपनी पत्नी गिनिया देवी के साथ फरारी जीवन व्यतीत किया। छह माह तक फरारी जीवन गुजारते हुए उन्होंने आंदोलन का संचालन किया।

सियाराम सिंह, अनुग्रह नारायण सिंह, आचार्य बद्रीनाथ वर्मा, नंद कुमार सिंह,वासुकी राय,शिवधारी सिंह,श्यामा प्रसाद, राघवेन्द्र नारायण सिंह के साथ गुप्त बैठकों में स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति तैयार होती थी और उसे अंजाम दिया जाता था। आखिरकार इसकी भनक खुफिया विभाग को लग गयी। तात्कालीन आरक्षी महानिरीक्षक की रिपोर्ट पर भागलपुर के तात्कालीन अनुमंडलाधिकारी आर.एस पांडेय द्वारा आंदोलनकारियों की शिनाख्त नहीं किये जाने के कारण इनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी। 1942 के आंदोलन के दौरान भागलपुर शहर के बूढ़ानाथ रोड स्थित योगेन्द्र नारायण सिंह के निवास स्थान पर सवौर के पास डाइनामाइट से रेलवे लाइन को उखाड़ने की योजना बन रही थी। छापामारी के दौरान कई आंदोलनकारी पकड़े गये और ये भाग निकले। इनके द्वारा की गयी आर्थिक मदद आंदोलनकारियों को संबलप्रदान करती रही। आखिरकार कब तक बचते? 1943 को भरतमिलाप के दिन भागलपुर के मिरजानहाट से इनकी गिरफ्तारी हुई। इसी दिन इनकी द्वितीय पुत्री सुलोचना का जन्म हुआ।


1946 में जब सांप्रदायिक दंगा हुआ तो उन्होंने अमन चैन और सद्भाव कायम करने में मुख्य भूमिका अदा की। 1948 में इनकी पत्नी गिनिया देवी का निधन हो गया। आजादी के बाद तो  इन्होंने स्वयं को पूरी तरह से रचनात्मक कामों से जोड़ दिया। कभी सत्ता की राजनीति की ओर रूख नहीं किया जबकि ऐसे अनेक अवसर मिले। ऐसा नहीं था कि सत्ता की राजनीति का दरवाजा उनके लिए नहीं था,  आजादी के  बाद कांग्रेस ने उन्हें सांसद की उम्मीदवारी की पेशकश की, लेकिन उन्होंनें ठुकरा दिया और  सेवा का रास्ता चुना।  उनके सांसद की उम्मीदवारी ठुकराने के बाद बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला को उम्मीदवार बनाया जो व पहले सांसद हुए।


जब देवघर के मंदिर में प्रवेश के लिये विनोबा भावे, निर्मला देशपांडे, विमला ठक्कर, लक्ष्मी बाबू आये तो इन पर हमला किया गया। इसके बाद जब विनोबा भावे भूदान आंदोलन के दौरान भागलपुर के जिला स्कूल आये तो इन्होंने अपनी उपजाऊ कटोरिया की भूमि बोधनारायण मिश्र,सियाराम सिंह, प्रभुनाथ राय, ठाकुर भागवत प्रसाद के साथ मिलकर भूमिहीनों के लिये दान में दे डाली।यदि इनके संदर्भ में यह कहा जाए वे व्यक्ति नहीं संस्था थे, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। भागलपुर के मिरजानहाट हाईस्कूल की स्थापना में इनकी अहम् भूमिका रही। गांधी के रचनात्मक कार्यो के तहत और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की प्रेरणा से 1925 में आजादी के आंदोलन के प्रमुख नेताओं दीपनारायण सिंह,सूर्यमोहन ठाकुर,कैलाश बिहारी लाल, रामेश्वर नारायण अग्रवाल, पटलबाबू  के साथ मिलकर दीपनारायण सिंह की स्वर्गवासी पत्नी के नाम पर रामानंदी देवी हिन्दू अनाथालय की स्थापना की।

इस संस्था में 1979 से मृत्युपर्यन्त अध्यक्ष रहे। महात्मा गांधी के आह्वान पर नवकुष्ठ आश्रम की स्थापना की। केएमएच होमियो मेडिकल कालेज की स्थापना काल से लंबे अरसे तक जुड़े रहे।  1962 में निर्माणाधीन हनुमाना डैम के टूट जाने से प्रलयंकारी बाढ़ आयी तो उस दौरान जागेश्वर मंडल, डॉ. सदानंद सिंह के साथ मिलकर छह माह तक राहत शिविर का संचालन किया। गीता प्रेस गोरखपुर के तो वे संस्थापक सरीखे ही थे। हनुमान प्रसाद पोद्दार के साथ मिलकर कोलकाता तथा मुंबई में काम किया। सहकारिता आंदोलन में भी उन्होंने अग्रणी भूमिका अदा की। जागेश्वर मंडल के साथ भागलपुर को आपरेटिव मिल्क यूनियन की स्थापना की। स्वतंत्रता संग्राम में इनके अहम् योगदान को देखते हुए 15 अगस्त 1972 को तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्र पत्र देकर सम्मनित किया। फिर लोकनायक जयप्रकाश  नारायण के नेतृत्व में 1974 का आंदोलन हुआ तो जयप्रकाश बाबू इनके आवास पर ही भागलपुर में ठहरते थे। इस आंदोलन में इनके पुत्र रामरतन चूड़ीवाला सक्रिय रहे। इस आंदोलन में भी वे युवाओं का मार्गदर्शन करते रहे।


चूडीवाला ने जब जीवन का शतक जब  पूरा किया तो कई संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया। 103 वर्ष की  अवस्था में 21 अगस्त 2001 को इनका निधन हो गया। उनका मानना था कि शिक्षा का प्रसार और सामाजिक कुरीतियों को दूर कर ही हम तरक्की के रास्ते तय कर सकते हैं।  निर्धन छात्रों के लिये आर्थिक मदद का दरवाजा उन्होंने सदैव खुला रखा।उनके अध्ययन की निरंतरता को बनाये रखने में वे हमेशा मदद करते रहे। 

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