मौन व्रत संकल्प रक्षा का आधार बना: वरिष्ठ समाजसेवी रमेश भइया

Silent fast became the basis for protecting the resolution: Senior social worker Ramesh Bhaiya
 
मौन व्रत संकल्प रक्षा का आधार बना: वरिष्ठ समाजसेवी रमेश भइया
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)।वरिष्ठ समाजसेवी रमेश भइया ने कहा कि विनोबा विचार प्रवाह एकवर्षीय मौन संकल्प का आज 80 वां दिन,मौन व्रत संकल्प रक्षा का आधार बना। 

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बाबा विनोबा को 1932 स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के समय धुलिया जेल में एक छोटी_ सी कोठरी में रखा गया था। एक दिन रात को वहां एक सांप आ गया। उन दिनों रात में बाबा विनोबा मौन रहते थे। अगर बाबा मौन तोड़कर किसी को बुलाते तो लोग आते और उस सांप को बाहर निकालकर ले जाते। लेकिन बाबा को मौन तो तोड़ना ही नहीं था। बाबा ने सोचा कि सांप भी हमसे डरता होगा क्योंकि सांप को मनुष्य का भय रहता है।बाबा ने सोचा, मैं उसका भक्ष्य तो हूं नहीं,मेढक होता तो वह आक्रमण करता। बाबा का विश्वास था कि सांप मुझ पर आक्रमण नहीं करेगा।बाबा का पैर अगर उस पर पड़ेगा तो वह बाबा को काटेगा, अन्यथा क्यों तकलीफ देगा। वह तो अतिथि रूप में मेरे घर आया है। ऐसा सोचकर बाबा सो गए। रात को बाबा का।पैर उस पर न गिरे, इसलिए रोज की भांति दीया बुझाया नहीं। बाबा को रोज लेटते ही नींद आ जाती थी,उस दिन तीन चार मिनट के बाद आई। प्रातः दो बजे बाबा रोज की भांति उठे तो देखने लगे कि स्वामी भी सो रहे हैं क्या? तो वह वहां था ही नहीं,वहां से निकल गया था। उस भय को बाबा ने जीत न लिया होता तो मौन व्रत का भंग होता।बाबा ने माना कि मौन_व्रत ने मेरी रक्षा की। बाबा विनोबा एक और घटना सुनाया करते थे कि कई बार ,मन पक्का न हो तो भी शरीर कांपता है। उसको भी अभ्यास की जरूरत होती है। सन् 1918 की बात है।बाबा विनोबा साबरमती नदी में नहाते नहाते उसमें बहने लगे।किनारे पर पुंडलीक जी खड़े देख रहे थे, उन्हें बाबा ने अंदर से चिल्लाकर कहा _ बापू को जाकर कहिए कि विनोबा गया, आत्मा अमर है।प्रवाह के मोड़ पर कुछ घास _वनस्पति थी,उसके कारण उसका सहारा लेकर बाबा बच गए। बाबा बाहर आकर निकलकर बैठे लेकिन उनका शरीर दो तीन मिनट तक काँपता रहा था। बाबा ने कहा कि जब मैं नदी में बह रहा था , तब उस भय को आत्मज्ञान की ऐंठ ने दबा रक्खा था। सुरक्षित जगह पर जब बाहर निकलकर आया तब जाकर मन ठीक हुआ।

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