राजनीति की बुनियाद पर सामाजिक समरसता बनाम जातीय ध्रुवीकरण: एक चिंतन

Social harmony versus caste polarization on the basis of politics: A reflection
 
: सामाजिक समरसता और जातीय टकराव के बीच बंटी राजनीति

लेखक: अजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक जनसभा के दौरान गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जब समग्र हिन्दू समाज को एकजुट करने का प्रयास कर रही है, तब कुछ राजनीतिक ताकतें और उनके सहयोगी जानबूझकर समाज को जातिगत आधार पर विभाजित करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। उन्होंने इसे केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सनातन परंपरा, सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता के खिलाफ एक सांस्कृतिक षड्यंत्र करार दिया।

लेखक: अजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार:

धार्मिक विवाद से राजनीतिक मोड़ तक

यह बयान उस समय सामने आया जब कथावाचक मुकुट मणि यादव द्वारा एक धार्मिक आयोजन में दिए गए कथित विवादित वक्तव्य ने पूरे प्रदेश में बहस छेड़ दी। उनके कथन ने धार्मिक संदर्भों को लेकर मतभेद उत्पन्न कर दिए, जो धीरे-धीरे राजनीतिक मुद्दा बन गया।जहाँ एक ओर समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं ने इस प्रकरण को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ते हुए यादव का समर्थन किया, वहीं दूसरी ओर कई दलों और संगठनों ने इसे समाज में वैमनस्य फैलाने वाला वक्तव्य बताया और कानूनी कार्रवाई की माँग की।जल्द ही यह मुद्दा सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा, जगह-जगह विरोध-प्रदर्शन हुए और सियासी बयानबाजी का दौर तेज हो गया। स्पष्ट था कि संवाद और विवेक से हल हो सकने वाला मुद्दा राजनीतिक स्वार्थों की भेंट चढ़ गया।

 मुख्यमंत्री का दृष्टिकोण: समरसता पर आधारित हिन्दुत्व

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने संबोधन में कहा कि भाजपा का हिन्दुत्व जाति-रहित, समावेशी और राष्ट्रवादी सोच पर आधारित है, जिसका उद्देश्य है—"एक भारत, श्रेष्ठ भारत"। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे जातियों के नाम पर भावनात्मक भाषणों और सम्मेलनों के जरिए समाज को बांटने का कार्य कर रहे हैं, जबकि सत्ता में आने पर उनके विकासात्मक कार्य नगण्य रहे हैं।

उन्होंने सवाल उठाया कि जो दल वर्षों तक सत्ता में रहे, उन्होंने पिछड़े वर्गों, दलितों या गरीबों के लिए मूलभूत सुविधाएँ क्यों नहीं सुनिश्चित कीं?

 विचारधारा बनाम समीकरण

बीएचयू के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. संजीव त्रिपाठी का मानना है कि भाजपा का हिन्दुत्व अब केवल धार्मिक पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समरसता की दिशा में बढ़ रहा है। यही वजह है कि विपक्ष अपनी परंपरागत जातीय समीकरणों को बचाने की जल्दबाज़ी में ध्रुवीकरण की ओर लौटता दिख रहा है।

लखनऊ विश्वविद्यालय की समाजशास्त्री डॉ. रूचि श्रीवास्तव का मानना है कि आजादी के बाद से अब तक जातिगत पहचान को वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया। अगर कोई नेतृत्व अब इसे समरसता की ओर ले जाना चाहता है, तो विरोध केवल राजनीतिक हानि की आशंका के कारण हो रहा है। लेखक और सामाजिक चिंतक डॉ. नरेश मालवीय ने इसे "नैरेटिव युद्ध" करार देते हुए कहा कि भाजपा जहाँ एकीकृत सांस्कृतिक पहचान का सूत्रपात कर रही है, वहीं विपक्ष जातीय विविधता के नाम पर समाज को खंडित करने की कोशिश कर रहा है।

 जातीय सम्मेलन बनाम समावेशी अभियान

हाल ही में कुछ विपक्षी दलों द्वारा आयोजित जाति-विशेष सम्मेलनों में स्पष्ट रूप से जातिगत ध्रुवीकरण की रणनीति दिखाई दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे राजनीतिक लाभ के लिए समाज में दरार डालने की कोशिश बताया और कहा कि जनता को अब इस "षड्यंत्र" को समझने और सामाजिक समरसता के निर्माण में भागीदार बनने की आवश्यकता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि भाजपा ने 2024 के आम चुनावों में "सबका साथ, सबका विकास" के मूल मंत्र को "सबका प्रयास" तक ले जाकर समावेशी दृष्टिकोण को मजबूती दी है, जबकि विपक्ष अब भी संख्यात्मक समीकरणों और जातिगत गणनाओं पर टिका हुआ है, जो युवाओं और शहरी वर्ग को उतना आकर्षित नहीं कर पा रहा।

चुनावी आंकड़ों से विचारधारात्मक संघर्ष की ओर

राजनीतिक परिदृश्य यह संकेत दे रहा है कि आने वाला समय केवल चुनावी जीत-हार की लड़ाई नहीं, बल्कि विचारधाराओं का संघर्ष होगा। एक ओर रहेगा सनातन समरसता का भाव, तो दूसरी ओर जातीय टकराव और ध्रुवीकरण की राजनीति।समाज के समावेशी विकास, सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रीय भावना को केंद्र में रखकर जनता को तय करना है कि वह किस दिशा में जाना चाहती है—विभाजन की ओर या समरसता की ओर।

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