सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)

Social harmony and Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS)
 
Social harmony and Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS)

(डॉ. सुधाकर आशावादी -विनायक फीचर्स)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की राष्ट्र के प्रति समर्पित भूमिका किसी से छिपी नहीं है। इतिहास गवाह है कि राष्ट्र पर आई किसी भी विपदा में संघ के कार्यकर्ताओं ने समस्या के समाधान हेतु बढ़-चढ़कर स्वयं को समर्पित किया है। संघ की विचारधारा में जातीय संकीर्णता का लेशमात्र भी नहीं है, और उसकी कार्यशैली में सामाजिक समरसता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, जहाँ कार्यक्रमों में किसी भी प्रकार का जातीय भेद नजर नहीं आता।

विघटनकारी राजनीति और जातीय कार्ड

आज जब कुछ राजनीतिक तत्व RSS पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं, तो इसके पीछे के कारणों को समझा जा सकता है। देश में जाति और धर्म के नाम पर विघटनकारी तत्वों की मंशा संघ कार्यकर्ताओं के कारण पूरी नहीं हो पा रही है, इसलिए ये शक्तियाँ राष्ट्र के प्रति समर्पित संघ का विरोध करने पर उतारू हैं।

यह कहना गलत नहीं होगा कि सत्ता सुख भोग चुके अनेक वंशवादी नेता और परिवार आज अस्तित्व संकट से जूझ रहे हैं। जन विकास के मुद्दे उनके पास नहीं हैं, ऐसे में:

  • राजनीतिक मजबूरी: जातीय संकीर्णता, क्षेत्रवाद और धर्म आधारित विघटनकारी एजेंडा देश भर में चलाना उनकी मजबूरी बन गया है।

  • वोट बैंक की राजनीति: वे कभी 'पिछड़ा कार्ड' खेलते हैं, कभी 'दलित कार्ड'। वे जाति आधारित आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर या जातीय जनगणना की बात करके अपना जातीय वोट बैंक बनाने की कवायद करते हैं।

ये तत्व यह समझते हैं कि आम आदमी को जातीय कार्ड खेलकर वैचारिक बंधुआ बनाया जा सकता है और उनका मत एवं समर्थन प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि कोई भी जाति किसी व्यक्ति या विचार की बंधुआ नहीं हो सकती।

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जातीय जनगणना पर संघ का दृष्टिकोण

जातीय गणना के संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने स्पष्ट किया है कि: संघ जाति आधारित जनगणना के विरुद्ध नहीं है, लेकिन जनगणना राजनीतिक रूप से प्रेरित नहीं होनी चाहिए। इसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों की पहचान करके उनकी प्रगति करना होना चाहिए।

जातीय अलगाव और राष्ट्र का विकास

लेखक का मानना है कि राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में जातीय अलगाव बाधक है। जाति आधारित व्यवस्था राजनीतिक दलों की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में सहायक हो सकती है, लेकिन इतिहास साक्षी है कि राष्ट्र के विकास में यह अवरोधक ही है। जिस देश में 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया' की भावना से विश्व के कल्याण की कामना की जाती है, वहाँ जाति जनगणना यदि आवश्यक हो, तभी कराई जाए। लेकिन इसका मूल उद्देश्य केवल पिछड़े और साधनहीन व्यक्तियों का उत्थान करना होना चाहिए, न कि राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु विघटनकारी तत्वों के मंसूबों को पूरा करना।

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