104वीं जयंती (10 जून 2025) पर विशेष श्रद्धांजलि संत साहित्यकार हरिलाल कुंज : बहुआयामी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व का स्मरण

 
फ्घ्फ्ग

लेखक – शिवशंकर सिंह पारिजात | स्रोत: विनायक फीचर्स : भागलपुर, जिसे अंगभूमि के नाम से भी जाना जाता है, ने अनेक अद्वितीय रचनात्मक व्यक्तित्वों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक थे संत साहित्यकार हरिलाल कुंज, जिनका जीवन साहित्य, संस्कृति, कला और समाजसेवा के अद्भुत समन्वय का उदाहरण रहा।

erere

जीवन यात्रा की शुरुआत

हरिलाल कुंज का जन्म 10 जून 1921 को बिहार के भागलपुर शहर में हुआ। उन्होंने बाल्यकाल से ही अपनी विलक्षण प्रतिभा से लोगों को प्रभावित किया। मात्र आठवीं कक्षा में रहते हुए, उनकी पहली कहानी ‘अन्ना’ प्रसिद्ध पत्रिका चाँद में छपी, जिसका संपादन स्वयं महादेवी वर्मा कर रही थीं।

 साहित्यिक योगदान

कहानीकार, नाटककार और गीतकार के रूप में हरिलाल कुंज का योगदान उल्लेखनीय रहा। उनकी चर्चित कहानियों में ‘तीन पीर’, ‘प्रेत फोटोग्राफर’, ‘हीरा’ और ‘पारो दादी’ शामिल हैं। नाट्य लेखन में ‘बाबरी मीरा’, ‘चंगेज खां’, ‘विद्रोही संताल’, और ‘राजलक्ष्मी’ जैसे नाटक प्रमुख हैं। साथ ही उन्होंने ‘ब्रजोन्माद’, ‘मेरे नयनों के पानी’, ‘जुदाई कैसी होती है’ जैसे गीतों और पाला-कीर्तन की रचना भी की।

 संपादन कार्य और प्रमुख कृतियाँ

हरिलाल कुंज ने कई महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों का संपादन भी किया जिनमें ‘मीरा बाई’ (लीला कीर्तन), ‘रजनीगंधा’ (काव्य संग्रह), ‘सत्यसंग’ और ‘एक मजदूर कलम का’ शामिल हैं।

 

संस्थापक और सांस्कृतिक सेवाएँ

उन्होंने 1938 में श्री गौरांग संकीर्तन समिति की स्थापना कर भागलपुर में मीरा जयंती मनाने की परंपरा शुरू की, जो लगातार 25 वर्षों तक आयोजित होती रही। इसके अतिरिक्त उन्होंने श्री बालकृष्ण ऑपेरा, वागीश्वरी संगीतालय और द्विजेन्द्र गोष्ठी जैसी संस्थाओं की नींव रखी और सक्रिय भूमिका निभाई।

 कला और फोटोग्राफी में योगदान

हरिलाल कुंज न केवल शब्दों के कलाकार थे, बल्कि चित्रकला और फोटोग्राफी में भी दक्ष थे। उन्होंने भागलपुर में 1938 में ‘चित्रशाला’ नामक स्टूडियो की स्थापना की, जो साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना। यह स्टूडियो न केवल व्यवसायिक केंद्र था बल्कि एक बौद्धिक संगम स्थल के रूप में भी जाना जाता रहा।

 संपर्क और स्मृतियाँ

उनके संपर्क में कई महान विभूतियाँ रहीं, जिनमें डॉ. बलायचंद्र मुखोपाध्याय ‘वनफूल’, गोपाल सिंह नेपाली, दिनकर, बाबा नागार्जुन, पृथ्वीराज कपूर, डॉ. विष्णु किशोर झा, आनन्द शंकर माधवन, पं. इंदु भूषण गोस्वामी और महर्षि मेंही जैसे लोग शामिल हैं।

 प्रेरक संस्मरण

उन्होंने जीवन में कई प्रेरक संस्मरण लिखे, जैसे – ‘महाप्राण निराला’, ‘नटराज पृथ्वीराज कपूर’, ‘मेरे हँसू दा’, ‘उर्वशी का जन्म’, ‘अनुपलाल मंडल’ और ‘जब मैं बच्चा था’, जो साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध हैं।

 समर्पण का जीवन

13 फरवरी 1984 को उनका देहांत हुआ, लेकिन उनका जीवन एक ऐसे युगपुरुष की गाथा है, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी साहित्य, अध्यात्म, कला और संस्कृति के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। आज भी उनकी स्मृति भागलपुर और भारतीय साहित्यिक जगत में आदर के साथ जीवित है।

Tags