खेलो एमपी : मध्यप्रदेश में खेल संस्कृति की नई परम्परा

Khelo MP: New tradition of sports culture in Madhya Pradesh
 
खेलो एमपी : मध्यप्रदेश में खेल संस्कृति की नई परम्परा

(पवन वर्मा – विनायक फीचर्स)  मध्यप्रदेश में खेल अब केवल प्रतिस्पर्धा का माध्यम नहीं रहे, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देने का सशक्त जरिया बनते जा रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और खेल मंत्री विश्वास कैलाश सारंग के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने खेलों को लेकर जो स्पष्ट और दूरदर्शी सोच अपनाई है, उसका सशक्त उदाहरण खेलो एमपी के रूप में सामने आ रहा है। यह आयोजन किसी एक शहर या वर्ग तक सीमित न होकर प्रदेश के कोने-कोने तक खेल संस्कृति को पहुँचाने का प्रयास है।

अब तक खेलों को प्रायः शहरी केंद्रों से जोड़कर देखा जाता रहा—बड़े स्टेडियम, सीमित खिलाड़ी और चुनिंदा खेल। लेकिन अब सरकार का फोकस गांव, कस्बे और ब्लॉक स्तर तक खेलों की पहुँच सुनिश्चित करने पर है। यही कारण है कि खेलो एमपी को प्रदेश का “ओलंपिक” कहा जा रहा है। यह केवल नाम नहीं, बल्कि इसकी संरचना और मंशा में भी स्पष्ट रूप से झलकता है।

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मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही खेलों को युवाओं से जोड़ने को प्राथमिकता दी है। उनका मानना है कि खेल केवल शारीरिक गतिविधि नहीं, बल्कि अनुशासन, नेतृत्व और आत्मविश्वास का निर्माण करते हैं। इसी सोच के तहत प्रदेश सरकार खेलों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से जोड़ने की दिशा में काम कर रही है। खेल मंत्री विश्वास कैलाश सारंग भी लगातार यह दोहराते रहे हैं कि जब भागीदारी बढ़ेगी, तो प्रतिभाएं स्वतः सामने आएंगी।

खेलो एमपी यूथ गेम्स इसी दृष्टिकोण का विस्तार हैं। जनवरी में प्रस्तावित यह आयोजन ब्लॉक स्तर से लेकर राज्य स्तर तक एक सुनियोजित श्रृंखला में आयोजित किया जाएगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसाधनों की कमी या मंच के अभाव में कोई भी प्रतिभाशाली खिलाड़ी पीछे न रह जाए। प्रदेश के सभी 313 ब्लॉकों में प्रतियोगिताओं का आयोजन इस बात का प्रमाण है कि सरकार खेलों को केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि जनआंदोलन के रूप में देख रही है।

खेलो एमपी की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें खेल विभाग और खेल संघ मिलकर कार्य कर रहे हैं। पहले चयन प्रक्रिया और प्रतियोगिताएं अक्सर अलग-अलग दिशाओं में चलती थीं, लेकिन अब आयोजन, चयन और प्रशिक्षण को एक ही धारा में लाने का प्रयास किया गया है। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और राज्य की टीमों के गठन में मजबूती आएगी।

प्रदेश के आठों संभाग—भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, सागर, उज्जैन और शहडोल—को आयोजन से जोड़कर भौगोलिक संतुलन सुनिश्चित किया गया है। आदिवासी अंचलों से लेकर औद्योगिक शहरों तक, हर क्षेत्र की खेल प्रतिभा को सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है। ये वे क्षेत्र हैं जहाँ खेलों के प्रति जुनून तो है, लेकिन अवसरों की कमी रही है।

इस पूरी प्रक्रिया में सांसद खेल महोत्सव का अनुभव भी महत्वपूर्ण रहा है। हाल ही में प्रदेश की हर लोकसभा सीट पर आयोजित इन महोत्सवों में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों से बड़ी संख्या में युवाओं ने भाग लिया। सांसदों की सक्रिय भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया कि खेल अब जनप्रतिनिधियों के एजेंडे का अहम हिस्सा बन चुके हैं। इन आयोजनों से यह भी सिद्ध हुआ कि मध्यप्रदेश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं, आवश्यकता केवल मंच और निरंतरता की है।

सांसद खेल महोत्सव ने खेलो एमपी जैसे बड़े आयोजन के लिए मजबूत आधार तैयार किया है। लोकसभा स्तर पर मिले उत्साह को अब राज्य स्तर पर एक व्यवस्थित ढांचे के रूप में आगे बढ़ाया जा रहा है। खेलो एमपी उसी अनुभव को नीति और योजना के साथ विस्तार देने का प्रयास है।प्रदेश सरकार ने इस बार पारंपरिक खेलों को भी विशेष महत्व दिया है। पिट्ठू और रस्साकशी जैसे खेल केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामूहिकता और टीम भावना के प्रतीक हैं। इन्हें राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में शामिल करना सांस्कृतिक जुड़ाव को दर्शाता है। साथ ही क्रिकेट जैसे लोकप्रिय खेल को औपचारिक रूप से शामिल कर युवाओं की रुचि और भागीदारी को और बढ़ाया गया है।

खेल मंत्री विश्वास कैलाश सारंग का जोर इस बात पर है कि खिलाड़ी किसी भी स्तर पर खुद को अकेला न महसूस करें। नोडल अधिकारियों की नियुक्ति, बेहतर व्यवस्थाएं और अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजन की तैयारी इसी दिशा में उठाए गए ठोस कदम हैं। सरकार यह संदेश दे रही है कि खिलाड़ी केवल प्रतियोगिता के दिन नहीं, बल्कि पूरे सफर में सिस्टम का अभिन्न हिस्सा है।

यह सक्रियता केवल राज्य तक सीमित नहीं है। 25 दिसंबर को सांसद खेल महोत्सव के समापन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वर्चुअल संबोधन इस पहल को राष्ट्रीय संदर्भ प्रदान करेगा। यह संबोधन उस नीति का प्रतीक है जिसमें खेलों को राष्ट्र निर्माण से जोड़ा जा रहा है। केंद्र और राज्य, दोनों स्तरों पर खेलों को लेकर एक समान सकारात्मक सोच दिखाई दे रही है, जिसे मध्यप्रदेश जमीन पर उतारने का प्रयास कर रहा है।

खेलो एमपी और सांसद खेल महोत्सव यह संकेत देते हैं कि खेल अब केवल पदक जीतने का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और युवाओं को नशे व निष्क्रियता से दूर रखने का प्रभावी साधन बनते जा रहे हैं। गांवों में आयोजित प्रतियोगिताएं खेल मैदानों को संवाद और सहभागिता के केंद्र में बदल रही हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सक्रियता से स्पष्ट है कि सरकार खेलों को दीर्घकालिक निवेश के रूप में देख रही है। बुनियादी ढांचे, आयोजन और प्रतिभा खोज—तीनों स्तरों पर एक साथ काम किया जा रहा है। खेल मंत्री विश्वास कैलाश सारंग भी इसे केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि प्रदेश की खेल नीति की दिशा तय करने वाला कदम बताते रहे हैं।

मध्यप्रदेश में खेलों का यह नया दौर अभी आकार ले रहा है। सांसद खेल महोत्सव से लेकर खेलो एमपी तक, यह सिलसिला संकेत देता है कि आने वाले समय में प्रदेश राष्ट्रीय खेल मानचित्र पर अपनी अलग पहचान बनाने की ओर बढ़ रहा है। युवाओं की भागीदारी, जनप्रतिनिधियों की सक्रियता और सरकार की स्पष्ट मंशा—तीनों मिलकर ऐसा वातावरण बना रहे हैं जहाँ खेल शौक नहीं, बल्कि भविष्य का रास्ता बन सकते हैं।  25 दिसंबर को प्रधानमंत्री का वर्चुअल संबोधन इस पूरी पहल को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करता है। यह स्पष्ट संदेश देता है कि खेल अब हाशिये का विषय नहीं रहे। मध्यप्रदेश इसी सोच के साथ आगे बढ़ रहा है और खेलो एमपी उसी दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है।

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