घुसपैठियों का समर्थन भी राष्ट्रद्रोह से कम नहीं

Supporting infiltrators is no less than treason.
 
Supporting infiltrators is no less than treason.
(डॉ. सुधाकर आशावादी – विनायक फीचर्स)
देश की राजधानी से लेकर सीमावर्ती इलाकों तक अवैध घुसपैठियों की लगातार बढ़ती संख्या चिंता का गंभीर विषय बन चुकी है। यदि समय रहते इस पर कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या आने वाले समय में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकती है।

Doctor sudhankar ashawadi

भारत पहले से ही जनसंख्या वृद्धि की विस्फोटक स्थिति से जूझ रहा है। इसके बावजूद सत्ता में बैठे लोग अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते गरीब वर्ग को मुफ्त राशन और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने की होड़ में लगे हैं। इन योजनाओं में कोई स्पष्ट मानक न होने के कारण, कई ऐसे परिवार भी लाभ ले रहे हैं जो वास्तव में गरीब वर्ग में आते ही नहीं।

झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों की पहचान करना भी चुनौतीपूर्ण हो गया है कि वे देश के वैध नागरिक हैं या नहीं। इस स्थिति का फायदा उठाकर विभिन्न शहरों और गाँवों में घुसपैठियों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
यद्यपि केंद्रीय गृह मंत्री ने यह दावा किया है कि गुजरात, असम और राजस्थान में अवैध प्रवेश पर रोक लगाई जा चुकी है, लेकिन पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में, जहाँ गैर-राजग सरकारें हैं, वहाँ घुसपैठियों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किए जाने की बातें सामने आती रही हैं।
बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को लेकर भी प्रशासन की गंभीरता संदिग्ध दिखाई देती है। कुछ सीमावर्ती प्रदेशों की सरकारें तो इन्हें सहनशीलता के नाम पर समर्थन देती दिखती हैं और उनके लिए आधार कार्ड, राशन कार्ड तथा वोटर आईडी बनवाने में सहयोग कर रही हैं। सवाल यह उठता है कि जब भारत का कानून स्पष्ट रूप से अवैध घुसपैठ को अपराध घोषित करता है, तो फिर यह ढिलाई क्यों?
यदि कोई राज्य सरकार घुसपैठियों को संरक्षण देती है या उन्हें अपना वोट बैंक बनाकर केंद्र की कार्रवाई का विरोध करती है, तो क्या उस सरकार को राष्ट्रद्रोह का दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए?
सच्चाई यही है कि बिना सुरक्षा एजेंसियों की चूक के घुसपैठ संभव नहीं होती। इसलिए केंद्र और सीमावर्ती सुरक्षा बलों को भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता। अब समय आ गया है कि देश में रह रहे अवैध घुसपैठियों के खिलाफ सख्त अभियान चलाया जाए और जो भी व्यक्ति या राजनीतिक दल इनके समर्थन में खड़ा हो, उसे भी कानून के दायरे में लाया जाए।
“भय बिनु होई न प्रीत गोसाई” की भावना को ध्यान में रखते हुए, देश की सुरक्षा और एकता के हित में कठोर कार्रवाई अपरिहार्य है।

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