कश्मीर की बदलती तस्वीर: आतंकवाद से लोकतंत्र की ओर

(सुभाष आनंद - विभूति फीचर्स)
हाल ही में एक आतंकी हमले के बाद जब मैं पहलगाम पहुँचा, तो वहां का सन्नाटा बहुत कुछ कह रहा था। जो इलाका कभी पर्यटकों की चहल-पहल से गुलज़ार रहता था, आज खामोश नज़र आ रहा था। स्थानीय लोगों से बातचीत में जो सच सामने आया, वह कश्मीर की बदलती फिजा की कहानी खुद बयान करता है।
लंबे समय तक आतंक के साये में जीने वाले यहां के लोग अब खुद शांति और लोकतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं। महिलाएं और युवा, जो कभी विरोध का चेहरा थे, आज आतंकवाद के खिलाफ खड़े हो चुके हैं। पहले जो भीड़ फौजियों पर पत्थर फेंकती थी, अब वही लोग शांति की बातें कर रहे हैं।
हालांकि कुछ स्वार्थी तत्व अब भी आतंकियों के लिए स्थानीय समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें समाज से वह समर्थन नहीं मिल रहा जो पहले मिला करता था। उनके पहचानने और अलग-थलग करने की प्रक्रिया अब तेज हो चुकी है।
पाकिस्तान के साथ कश्मीर पर बातचीत कोई आसान काम नहीं है। वहां के नेता दोस्ती की बातें तो करते हैं, लेकिन उनका असली रवैया शंकित करता है। पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी लगातार भारत में आतंकियों को घुसपैठ कराने की कोशिश कर रही है।
अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों का भी मानना है कि भारत को अब पाकिस्तान की मीठी बातों में नहीं आना चाहिए।
‘संडे टाइम्स’ के पत्रकार जेम्स कैरी के अनुसार, आतंकवाद में 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हालांकि भारतीय सेना आतंकियों का सफाया कर रही है, फिर भी आतंक की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी चिंता का विषय है।
भारत सरकार को समय रहते सुरक्षा तंत्र को और मज़बूत करना होगा। कश्मीर, इतिहास में कभी भी आतंकी गतिविधियों से पूरी तरह सुरक्षित नहीं रहा है। हाल की घटनाओं में जिस आतंकी संगठन का नाम सामने आया है, उसके तार अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जुड़े हुए हैं, जिससे यह संकट और जटिल हो जाता है।
पाकिस्तानी पत्रकार रफीक अहमद का भी मानना है कि यह हमला शायद पाकिस्तान के लिए आखिरी चेतावनी है। भारत द्वारा की गई जवाबी कार्रवाई ने वहां की सरकार और सेना को हिला दिया है। यहां तक कि कुछ राजनीतिक दल आतंकी नेताओं के अंतिम संस्कार में शामिल होकर यह संकेत दे रहे हैं कि कट्टरपंथ वहां राजनीति का हिस्सा बन चुका है।
पाकिस्तानी अखबार 'आजाद' में प्रकाशित लेख में यह बात कही गई है कि पाकिस्तान अपने ही बनाए आतंकवाद के जाल में उलझ चुका है। अब वहां के लोग और सेना यह समझने लगे हैं कि भारत से टकराव केवल नुकसान ही देगा।
अब कश्मीर में बदलाव साफ दिखाई दे रहा है।
सरकार नौकरियों की भरमार कर रही है, युवा भविष्य संवारने की सोच में लग चुके हैं। कई कट्टरपंथी मौलवियों और नेताओं को अब युवा वर्ग नजरअंदाज करने लगा है। मस्जिदों और मदरसों में भी भाषणों की भाषा में नरमी आई है।
राजनीतिक रूप से भी जम्मू-कश्मीर में सक्रियता बढ़ी है। अब्दुल्ला परिवार की भूमिका को भी लोग सकारात्मक रूप में देख रहे हैं। दूसरी ओर, भारतीय वायुसेना द्वारा आतंकी ठिकानों पर की गई कार्रवाई से पाकिस्तान को अपनी सीमाओं और सीमाओं के पार की नीयत पर पुनर्विचार करना पड़ा है।
पाक सेना की ओर से हुई भारी गोलीबारी के जवाब में भारत ने जो जवाबी कार्रवाई की है, उसने पाकिस्तान को उसकी असली स्थिति दिखा दी है। कूटनीतिक स्तर पर हुए समझौते इस बात की ओर संकेत करते हैं कि अब पाकिस्तान लंबे समय तक भारत के विरुद्ध कोई बड़ा युद्ध लड़ने की स्थिति में नहीं है।
अब यह स्पष्ट हो गया है कि आतंकवाद पाकिस्तान के लिए आत्मघाती साबित हुआ है।
आतंकवाद को बढ़ावा देकर पाकिस्तान ने अपने ही देश को गहरी आर्थिक और सामाजिक खाई में ढकेल दिया है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी यह मानने लगा है कि लोकतंत्र कश्मीर में विजयी हो रहा है।
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ और ‘वॉइस ऑफ अमेरिका’ जैसे प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों ने भारत की इस लोकतांत्रिक जीत को रेखांकित किया है। पाकिस्तान ने न केवल लड़ाई में हार मानी है, बल्कि विकास की दौड़ में भी खुद को पिछड़ा हुआ पाया है।