बांग्लादेश में हिन्दुओं का आर्तनाद और भारत सरकार की भूमिका

The cry of Hindus in Bangladesh and the role of the Indian government
 
The cry of Hindus in Bangladesh and the role of the Indian government
(राकेश अचल-विभूति फीचर्स)  बांग्लादेश में आज हो रहे घटनाक्रम को देखकर मुझे 53  साल पहले की वे घटनाएं याद आ रहीं हैं जो बांग्लादेश बनने के पहले पाकिस्तान के बंगाल में हो रही थीं। उस दौर में भी तत्कालीन पाकिस्तानी सत्ता ने बंगालियों पर बर्बरता की तमाम हदें तोड़ दीं थीं। पीडितों का आर्तनाद सुनकर भारत की तत्कालीन सरकार ने उस समय जो कदम उठाये थे


,उनके बारे में आज कोई सोच भी नहीं सकता,तब भारत के फील्ड मार्शल मानेक शा और प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थी। आज भी बांग्लादेश में परिस्थितियां विकराल हैं और भारत की ओर से ऐसे ही कड़े कदम उठाए जाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इस मामले में भारत सरकार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।


        ये हकीकत है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर ज्यादती बांग्लादेश का आंतरिक मामला है लेकिन जब इस घटनाक्रम से भारत का जन मानस उद्वेलित है तो भारत की सरकार को भी कुछ तो सोचना चाहिए।  मुझे लगता है कि जिस तरह से भारत ने अघोषित रूप से बांग्लादेश की निर्वासित प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत में शरण दी हुई है उसी तरह उसे बांग्लादेशी हिन्दुओं पर ज्यादतियों को लेकर बांग्लादेश की मौजूदा अस्थाई सरकार पर दबाब डालकर हिंसा को रोकने  के  प्रयास करना चाहिए। जरूरी नहीं है कि इसके लिए बांग्लादेश पर हमला किया जाये ,लेकिन बांग्लादेश को कड़ी चेतावनी तो दी ही जा सकती है।


  भारत में चौतरफा धर्मध्वजाएं लेकर मार्च करने वाले जनमानस और धार्मिक नेताओं  को भी इस मुद्दे पर सरकार पर दबाब डालना ही चाहिए । बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के ऊपर जिस तरह का अत्याचार हो रहा है ,वो साफ़ तौर पर सत्ता पोषित है। ये सब करने की हिम्मत बांग्लादेश की सत्ता में कहाँ से आयी होगी इसका अनुमान लगाया जाना चाहिए। असहिष्णुता और नफरत की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती।  आज बांग्लादेश में  सत्तापोषित नफरत फल-फूल रही  है इसीलिए भारत सरकार को इस मामले में कड़ा हस्तक्षेप करना चाहिए।


हैरानी की बात ये है कि भारत की जो सरकार रूस और यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए दखल कर सकती है वो सरकार बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर हो रही ज्यादतियों के मामले में दखल नहीं दे पा रही है। मुमकिन है कि उन्हें आशंका हो कि बांग्लादेश उनसे अपेक्षित सौजन्यता न दिखाए। बांग्लादेश में इस समय सत्ता की बागडोर जिन हाथों में है उन हाथों में शांति का नोबल पुरस्कार भी आ चुका है ,फिर भी वे हाथ अपने यहां साम्प्रदायिक हिंसा को नहीं रोक पा रहे हैं।


साम्प्रदायिक हिंसा बांग्लादेश में हो या किसी और देश में आसानी से रोकी भी नहीं जा सकती । हमारे यहां मणिपुर में तो साम्प्रदायिक हिंसा को डेढ़ साल हो चुके हैं।  हम मणिपुर को नहीं सम्हाल पा रहे तो कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि बांग्लादेश अपने यहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर होने वाली हिंसा को सम्हाल  लेगा ? साल भर पहले तक बांग्लादेश भारत का प्रिय मित्र था। बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती शेख हसीना तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के समय उनके शपथ ग्रहण में शामिल होने दिल्ली भी आयीं थीं , उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी को बांग्लादेश आने का निमंत्रण भी दिया था ,लेकिन वे शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते बांग्लादेश जा नहीं पाये । 
बांग्लादेश में शेख हसीना का तख्ता पलट होने के बाद  अंतरिम सरकार  से भारत की बन नहीं पायी ,उलटे  भारत-बांग्लादेश के संबंधों में कड़वाहट शुरू हुई और अब चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ़्तारी के बाद दोनों देशों के बीच काफ़ी तल्ख़ कूटनीतिक भाषा का इस्तेमाल हो रहा है।


बीते दिनों बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के कानूनी सलाहकार आसिफ नज़रुल  तो कह चुके हैं कि ''भारत को ये समझना होगा कि ये शेख़ हसीना का बांग्लादेश नहीं है'। अब पता नहीं कि भारत आसिफ नजरुल की बात समझा है या नहीं ? बावजूद इसके भारत सरकार ने शेख हसीना को बांग्लादेश की मौजूदा सरकार के सुपुर्द नहीं किया है। रार की  असली वजह शायद यही है।हमें याद रखना चाहिए कि भारत और बांग्लादेश चार हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा लंबी सीमा साझा करते हैं और दोनों के बीच गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रिश्ते रहे हैं। बांग्लादेश की सीमा भारत और म्यांमार से लगती है लेकिन उसकी 94 फ़ीसदी सीमा भारत से लगती है इसलिए बांग्लादेश को 'इंडिया लॉक्ड' देश कहा जाता है। इतना ही नहीं बीते कुछ सालों में बांग्लादेश, भारत के लिए एक बड़ा बाज़ार बनकर उभरा है। दक्षिण एशिया में बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है और भारत एशिया में बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है।


वर्ष 2022-23 में बांग्लादेश भारत का पांचवां सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार बन गया। वित्त वर्ष 2022-23 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 15.9 अरब डॉलर का था।अब भारत के सामने एक ही विकल्प है कि भारत बांग्लादेश को अपना भूभराकर  स्वरूप दिखा। हड़काये ,पाबंदियां लगाए, अंतर्राष्ट्रीय दबाब बनाये ,अन्यथा बांग्लादेश भी पाकिस्तान के बाद भारत का एक स्थाई दुश्मन बन जायेगा। बांग्लादेश की मौजूदा सत्ता का झुकाव इस समय भारत के बजाय चीन की ओर है , तय है कि बांग्लादेश इसीलिए भारत के दबाब में आ नहीं रहा है।

भारत को बांग्लादेश के मौजूदा शासकों को अतीत की याद दिलाना चाहिए। यदि भारत की मौजूदा सरकार बांग्लादेशी हिन्दुओं की हिमायत करने में नाकाम रही तो आप तय मानिए कि बांग्लादेश में हिन्दुओं का कोई खैरख्वाह नहीं बचेगा। पहले से विदेश नीति के मोर्चे पर हिचकोले खा रहे भारत के लिए ये एक मौक़ा है जब वो अपना वजूद प्रमाणित कर सकता है।  देखिये आने वाले दिनों में  बांग्लादेशी हिन्दू राहत की सांस ले पाते हैं या नहीं ?(विभूति फीचर्स)

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