देश का भविष्य नशे के अंधकार में न खो जाए: 26 जून – नशा विरोधी अंतरराष्ट्रीय दिवस पर विशेष

The future of the country should not be lost in the darkness of drug addiction: June 26 – Special on International Anti-Drug Day
 
देश का भविष्य नशे के अंधकार में न खो जाए: 26 जून – नशा विरोधी अंतरराष्ट्रीय दिवस पर विशेष

लेखक: डॉ. प्रितम भि. गेडाम  हर वर्ष 26 जून को मनाया जाने वाला "नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस" केवल एक जागरूकता कार्यक्रम नहीं, बल्कि मानवता को एक गहरी चुनौती देने वाले विषय पर वैश्विक चिंता की अभिव्यक्ति है।

देश का भविष्य नशे के अंधकार में न खो जाए: 26 जून – नशा विरोधी अंतरराष्ट्रीय दिवस पर विशेष

नशा: शरीर और समाज के लिए एक विनाशकारी जहर

नशे की शुरुआत आमतौर पर शौक के रूप में होती है, लेकिन यह धीरे-धीरे व्यक्ति के मस्तिष्क, सोचने-समझने की शक्ति और सामाजिक विवेक को नष्ट कर देती है। विश्व ड्रग रिपोर्ट 2021 के अनुसार, मादक पदार्थों का सेवन और अपराध के बीच सीधा संबंध है। एक अनुमान के अनुसार, आधे से अधिक अपराध नशे की अवस्था में या नशे की जरूरत को पूरा करने के लिए किए जाते हैं।

आज यह विष समाज की जड़ों तक पहुंच चुका है — स्कूली बच्चे नशे की गिरफ्त में हैं, अभिभावकों की अनदेखी और सोशल मीडिया व फिल्म जगत का दुष्प्रभाव इस संकट को और गहरा बना रहा है।

 भारत में नशे की भयावह स्थिति

भारत में नशे के सबसे अधिक उपयोग में आने वाले पदार्थों में शराब, गांजा, हेरोइन, कोकेन, तंबाकू, दर्द निवारक दवाएं, सॉल्वेंट्स और सिंथेटिक ड्रग्स शामिल हैं। छोटे बच्चे तक इनहेलेंट्स (गोंद, व्हाइटनर, पेट्रोल आदि) का सेवन करते पाए जा रहे हैं। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक, 10 से 17 वर्ष की उम्र के 1.58 करोड़ बच्चे किसी न किसी नशीली आदत के शिकार हैं।

केरल, जिसे देश का सबसे शिक्षित राज्य माना जाता है, वहां 2024 में 27,701 मादक पदार्थों के मामले दर्ज किए गए, जो पंजाब से तीन गुना ज्यादा हैं। हर जिला प्रभावित है और कई हत्या जैसे अपराध भी नशे की पृष्ठभूमि से जुड़ चुके हैं

 आर्थिक और स्वास्थ्य पर असर

  • WHO के अनुसार, हर साल 33 लाख मौतें शराब से जुड़ी होती हैं।

  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों की आर्थिक लागत 2017-18 में 27.5 बिलियन डॉलर आंकी गई।

  • शराब और ड्रग्स के दुरुपयोग से जुड़ी बीमारियों के कारण 2050 तक 258 मिलियन जीवन वर्ष नष्ट होने की आशंका है।

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि यह केवल स्वास्थ्य या नैतिकता का सवाल नहीं, बल्कि देश की आर्थिक, सामाजिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा विषय है।

 इस वर्ष की थीम: "जंजीरों को तोड़ना"

संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित 2025 की थीम — "जंजीरों को तोड़ना: सभी के लिए रोकथाम, उपचार और पुनर्प्राप्ति" — इस बात पर बल देती है कि नशे के खिलाफ लड़ाई केवल कानून या पुलिस की नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की साझी जिम्मेदारी है।

 अभिभावकों की भूमिका सबसे अहम

नशे से लड़ाई घर से शुरू होती है। अभिभावकों को बच्चों की गतिविधियों, संगत और व्यवहार पर संवेदनशील नजर रखनी चाहिए। बच्चों के साथ संवाद बढ़ाना, उन्हें भरोसे और स्नेह का माहौल देना और उनके भीतर नैतिक मूल्यों की नींव मजबूत करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।

  • बच्चों को तकनीक, सोशल मीडिया और आभासी दुनिया से सीमित करें।

  • स्पोर्ट्स, कला, और रचनात्मक गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करें।

  • पारिवारिक मूल्यों और इंसानियत का पाठ घर में ही दें।

 समाज और सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी

सरकार, गैर-सरकारी संस्थाएं, विद्यालय, मीडिया, स्वास्थ्य सेवाएं — सभी को मिलकर नशे के विरुद्ध एक सशक्त और समन्वित अभियान चलाना होगा।
इसमें शामिल हैं:

  • स्कूलों और कॉलेजों में ड्रग-फ्री कैंपस की नीति

  • पुनर्वास केंद्रों की संख्या और गुणवत्ता में सुधार

  • सोशल मीडिया व सिनेमा में नशे के ग्लैमराइजेशन पर रोक

  • युवाओं के लिए काउंसलिंग और हेल्पलाइन सेवाएं

 अब वक्त है चेतने का...

देश के युवाओं को बचाना है तो नशे के विरुद्ध सिर्फ नारा नहीं, ठोस कार्यवाही जरूरी है। जो पीढ़ी नशे के दलदल में गुम हो जाएगी, वह राष्ट्र निर्माण में कैसे भागीदार बनेगी? हमें यह तय करना होगा कि हम एक नशामुक्त भारत के स्वप्न को साकार करेंगे, या आंख मूंदकर अगली पीढ़ी को अंधकार के हवाले कर देंगे।

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