स्वर्ण का नशा: बिहारी जी की चेतावनी और आज की वास्तविकता

(राकेश अचल – विभूति फीचर्स)
कविवर बिहारीलाल ने सदियों पहले मानव स्वभाव पर गहरी दृष्टि डालते हुए “स्वर्णमद” यानी सोने के नशे के खतरों के बारे में जो कहा था, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उन्होंने अपने प्रसिद्ध दोहे में लिखा—
“कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय,
वा खाए बौराय जग, जा पाए बौराय।”
इस दोहे में ‘कनक’ शब्द का द्विअर्थ प्रयोग किया गया है—यहाँ ‘कनक’ का एक अर्थ धतूरा (एक नशीला फल) है, जबकि दूसरा अर्थ सोना। बिहारी जी का संदेश स्पष्ट था—सोने का नशा धतूरे से भी सौ गुना अधिक प्रभावी होता है। धतूरा खाने वाला व्यक्ति अस्थायी रूप से मदहोश होता है, जबकि सोना पाकर मनुष्य स्थायी रूप से अहंकार और लालच में डूब जाता है।

धनलोलुपता की जकड़न और आज का बाजार
बिहारी जी की यह सीख दुर्भाग्यवश कालजयी होकर भी समाज ने भुला दी है। आज स्वर्ण का आकर्षण पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोने-चांदी की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुकी हैं। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) पर 10 ग्राम सोने का भाव ₹1.20 लाख के पार जा चुका है, जबकि सितंबर में यही दर ₹1,10,951 प्रति 10 ग्राम थी।
विशेषज्ञ बताते हैं कि निवेश और आभूषण दोनों ही रूपों में सोने की बढ़ती मांग ने इस अभूतपूर्व वृद्धि को जन्म दिया है। इंडियन बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन के अनुसार, देशभर में घोषित गोल्ड रेट समान होते हैं, लेकिन ज्वेलरी शॉप पर 3% जीएसटी और मेकिंग चार्ज जोड़ने के बाद कीमतें और भी बढ़ जाती हैं।
चांदी की चमक भी बनी दीवानी
सोने के साथ-साथ चांदी का बाजार भी तेजी से उफान पर है। घरेलू स्तर पर एक किलो चांदी की कीमत ₹1,38,100 तक पहुंच चुकी है, जबकि एमसीएक्स पर 5 दिसंबर एक्सपायरी वाली चांदी का वायदा मूल्य ₹1.42 लाख से ऊपर दर्ज हुआ है। इस साल चांदी ने निवेश के मामले में सोने से भी बेहतर रिटर्न दिया है।
स्वर्ण की पहचान और शुद्धता
भारत में सोने के आभूषणों की कीमत राज्यवार कर, उत्पाद शुल्क और मेकिंग चार्ज के कारण अलग-अलग होती है। आमतौर पर आभूषण 22 कैरेट सोने से बनाए जाते हैं, जबकि कुछ लोग 18 कैरेट का चयन करते हैं। हॉलमार्क के माध्यम से इसकी शुद्धता की पहचान की जाती है—
24 कैरेट पर 999,
23 कैरेट पर 958,
22 कैरेट पर 916,
21 कैरेट पर 875,
और 18 कैरेट पर 750 अंकित रहता है।
स्वर्णमद की लत और वैराग्य की राह
धतूरे का नशा तो औषधियों से उतर सकता है, लेकिन सोने का नशा जीवनभर साथ चलता है। यह लत तब तक नहीं छूटती जब तक व्यक्ति संन्यास न धारण कर ले या फिर जीवन का अंत न हो जाए। सोने से विरक्ति आसान नहीं, क्योंकि यह नशा धीरे-धीरे व्यक्ति को आत्ममुग्ध बना देता है।
लेखक स्वयं स्वीकार करते हैं कि उन्हें यह वैराग्य समय रहते प्राप्त हो गया—“मेरे शरीर पर रत्तीभर भी सोना नहीं है।”
भारत: स्वर्ण भंडार का देश
विश्वसनीय अनुमानों के अनुसार, भारतीय जनता के पास ही सबसे अधिक सोना संचित है—करीब 25,000 टन, जिसमें मंदिरों का स्वर्ण भी शामिल है। यह मात्रा कई देशों की सरकारों के भंडार से कहीं अधिक है।धन, वैभव और स्वर्ण की इस दौड़ में शायद बिहारी जी का यह दोहा आज भी हमें आईना दिखाने के लिए पर्याप्त है— धन का नशा किसी भी विष से अधिक घातक है, क्योंकि यह इंसान को विवेकहीन बना देता है।
