पाकिस्तान में हिंदू राजपरिवारों की विरासत और उमरकोट का अद्वितीय इतिहास

The legacy of Hindu royal families in Pakistan and the unique history of Umarkot
 
पाकिस्तान में हिंदू राजपरिवारों की विरासत और उमरकोट का अद्वितीय इतिहास

(विवेक रंजन श्रीवास्तव – विभूति फीचर्स)

पाकिस्तान का भूभाग प्राचीन काल से ही हिंदू सभ्यता और संस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। सिंधु घाटी की सभ्यता से लेकर गांधार और सिंध जैसे समृद्ध राज्यों तक, यह क्षेत्र हिंदू राजवंशों की गौरवशाली कहानियों से भरा पड़ा है। लेकिन 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदल गया। अधिकांश हिंदू आबादी भारत आ गई, जबकि कुछ शाही परिवारों ने अपनी मातृभूमि को न छोड़ने का निर्णय लिया। आज इनमें सबसे प्रमुख नाम है सिंध प्रांत के उमरकोट के सोढा राजपूत परिवार का, जिनकी उपस्थिति पाकिस्तान में हिंदू राजपरंपरा के जीवित प्रतीक के रूप में बनी हुई है।

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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पाकिस्तान का वर्तमान क्षेत्र कभी हिंदूशाही वंश (850–1021 ईस्वी) और अन्य हिंदू शासकों के अधीन था। हिंदूशाही वंश के अंतिम राजा त्रिलोचनपाल ने गंधार, काबुल और खैबर पास तक शासन किया। सिंध और आसपास के क्षेत्रों में भी कई हिंदू रियासतें थीं। विभाजन तक पाकिस्तान के हिस्से में आने वाली अधिकांश रियासतें मुस्लिम शासकों की थीं, लेकिन उमरकोट (अमरकोट) इसका अपवाद था, जहां हिंदू सोढा राजपूतों का शासन था।

सोढा राजपूतों का योगदान

सोढा वंश परमार वंश की शाखा माना जाता है और 13वीं शताब्दी से उमरकोट पर शासन कर रहा है। इतिहास गवाह है कि जब हुमायूं निर्वासन में थे, तब 1542 में अकबर का जन्म उमरकोट किले में हुआ, जहां तत्कालीन राणा अमर सिंह ने उन्हें शरण दी थी।
विभाजन के समय इस राजवंश ने भारत जाने से इनकार किया और अपनी पैतृक भूमि तथा वहां की मिश्रित आबादी के प्रति जिम्मेदारी निभाई। इस निर्णय ने उन्हें पाकिस्तान जैसे मुस्लिम राष्ट्र में एक विशिष्ट पहचान प्रदान की।

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

आज भी सोढा परिवार पाकिस्तान में हिंदू समाज की आवाज़ है। राणा चंद्र सिंह, इस परिवार के प्रमुख नेता, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के संस्थापक सदस्यों में से थे और उन्होंने सात बार राष्ट्रीय असेंबली में उमरकोट का प्रतिनिधित्व किया। बाद में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा हेतु उन्होंने ‘पाकिस्तान हिंदू पार्टी’ की स्थापना भी की।
वर्तमान में उनके उत्तराधिकारी कुंवर करणी सिंह सोढा 27वें राणा के रूप में इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। वे थार क्षेत्र के लोगों की संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ हिंदू समुदाय के सशक्तिकरण पर काम कर रहे हैं।

सांस्कृतिक संबंध और चुनौतियाँ

सोढा परिवार ने भारत के कई शाही परिवारों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए, जिससे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक रिश्ते जीवित रहे। हालांकि, पाकिस्तान में हिंदू राजपरिवारों का अस्तित्व आज नाममात्र का ही बचा है। अधिकांश संपत्तियाँ और धार्मिक स्थल या तो नष्ट हो चुके हैं या उपेक्षा का शिकार हैं। सोढा राजवंश को छोड़कर अन्य हिंदू शाही परिवार इतिहास के पन्नों में सिमट चुके हैं।

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