बुलेट ट्रेन की रफ्तार में शामिल है बेटियों की ताकत

The speed of the bullet train includes the strength of daughters
 
Djejejje

जब भारत की पहली बुलेट ट्रेन मुंबई से अहमदाबाद के बीच 508 किलोमीटर की दूरी महज तीन घंटे से भी कम समय में तय करेगी, तो उसकी रफ्तार के पीछे सिर्फ अत्याधुनिक तकनीक नहीं होगी — बल्कि उसमें समाहित होगी उन भारतीय बेटियों की मेहनत और संकल्पशक्ति, जिन्होंने अपने कौशल से इस सपने को साकार करने में अहम भूमिका निभाई है।

वडोदरा स्थित एलएंडटी (L&T) की फैक्ट्री में एक ऑल-वुमन टीम दिन-रात लगकर हर महीने 9,000 से अधिक प्रीकास्ट नॉइज़ बैरियर पैनल तैयार कर रही है। ये विशेष पैनल बुलेट ट्रेन ट्रैक के दोनों ओर लगाए जाएंगे, ताकि इसकी तेज रफ्तार में भी ध्वनि प्रदूषण को न्यूनतम रखा जा सके।

इस टीम की खास बात यह है कि इसमें तमिलनाडु, केरल, हैदराबाद और देश के विभिन्न कोनों से आई महिलाएं शामिल हैं — अलग-अलग पृष्ठभूमि होने के बावजूद सभी का एक ही सपना है: देश की प्रगति में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाना।
ये महिलाएं केवल इंजीनियर नहीं हैं, बल्कि भारत के भविष्य की निर्माता हैं। उनके लिए यह प्रोजेक्ट सिर्फ एक नौकरी नहीं, बल्कि एक ऐसा सपना है, जो हर पैनल के साथ आकार ले रहा है।
आज जब देश में महिला इंजीनियरों की संख्या अब भी सीमित है, उस समय यह टीम एक उदाहरण पेश कर रही है कि यदि अवसर और विश्वास मिले, तो महिलाएं न केवल बराबरी करती हैं, बल्कि नेतृत्व भी करती हैं। ये महिलाएं उस पारंपरिक सोच को चुनौती दे रही हैं, जो भारी निर्माण और तकनीकी परियोजनाओं को केवल पुरुषों के दायरे में मानती थी।
जिस दिन बुलेट ट्रेन भारतीय सरज़मीं पर दौड़ेगी, वह दिन केवल तकनीकी प्रगति का नहीं होगा — बल्कि वह उन सशक्त महिलाओं की मेहनत और आत्मविश्वास की भी गूंज होगी। यह महज एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा में एक बड़ा कदम है — जहाँ महिलाएं न केवल सिस्टम चला रही हैं, बल्कि सिस्टम का निर्माण भी कर रही हैं।

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