स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका: नकारात्मकता से रचनात्मकता की ओर

(सत्य शील अग्रवाल - विनायक फीचर्स)
किसी भी लोकतान्त्रिक राष्ट्र के लिए एक सक्रिय और मजबूत विपक्ष अपरिहार्य है, यह एक स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है। हालांकि, भारत में विपक्षी दलों की कार्यशैली अक्सर अत्यधिक नकारात्मक दिखाई देती है। आलोचना का उद्देश्य सरकार को आईना दिखाना होता है, लेकिन जब यह आलोचना केवल विरोध के लिए विरोध बन जाती है, तो यह देश और समाज दोनों के हितों के लिए घातक सिद्ध होती है।
नकारात्मक राजनीति: राष्ट्रहित बनाम सत्ता लालच
वर्तमान में विपक्षी दलों का एकमात्र उद्देश्य सत्तारूढ़ पार्टी के सभी क्रियाकलापों का विरोध करना बन गया है। इस नीति के चलते वे अक्सर देश के हितों की अनदेखी कर देते हैं। सत्ता के लालच में अंधे होकर वे यह भी ध्यान नहीं रखते कि उनके वक्तव्य देश या समाज के हित में हैं या नहीं।
-
भ्रमित करने का प्रयास: ऐसी पार्टियाँ जनता को भ्रमित करके वोट प्राप्त करने की चालें चलती हैं, लेकिन आज की जनता पढ़ी-लिखी और जागरूक है। जो लोग जनता को मूर्ख समझते हैं, वे अंततः स्वयं भ्रमित हो जाते हैं।
-
देश का अपमान: कोई भी देशवासी या नेता जब दूसरे देश में जाकर अपने देश की कमियाँ गिनाता है या उसका अपमान करता है, तो उसे देश का हितैषी नहीं कहा जा सकता। नेताओं को समझना होगा कि देश की उन्नति में ही उनका भी भला है, और कानून व्यवस्था बिगड़ने का प्रभाव देश के प्रत्येक नागरिक पर पड़ता है। प्रत्येक नेता को अपने स्वार्थ से पहले सुरक्षित राष्ट्र के लिए प्रयास करना चाहिए।
विपक्ष की आदर्श भूमिका: समीक्षा और सुधार
विपक्ष की वास्तविक और सकारात्मक भूमिका यह होनी चाहिए कि वह सत्तारूढ़ दल के कार्यों की निरंतर समीक्षा करे। यदि सत्ता पक्ष के कार्य कहीं भी देश और समाज के हितों के विरुद्ध हों, तो विपक्ष को उन्हें जनता के समक्ष लाना चाहिए और सरकार को अपनी कार्यशैली में सुधार के लिए मजबूर करना चाहिए।
दुर्भाग्य से, भारतीय विपक्ष अक्सर सरकार द्वारा देश और समाज के हित में किए जा रहे अच्छे कार्यों में भी अड़ंगा डालता है और जनता को भ्रमित करने का प्रयास करता है। सरकार के प्रत्येक अच्छे कार्य का विरोध करना देश और समाज के प्रति गैर-जिम्मेदारी है। सही कदम को सही कहना सीखना होगा, तभी देश का सही विकास और उन्नति हो सकती है। किसी भी पार्टी का व्यक्ति यदि कोई अच्छा कार्य करता है, तो उसकी तारीफ करने में झिझक नहीं होनी चाहिए। यह सकारात्मक दृष्टिकोण जनता के बीच भी एक अच्छा संदेश देता है।
सत्ता प्राप्ति का मार्ग: क्षमता सिद्ध करना
यदि किसी पार्टी को सत्ता प्राप्त करनी है, तो उसे केवल सत्तारूढ़ दल की आलोचना करने या प्रधानमंत्री को गालियाँ देने से जनसमर्थन नहीं मिलेगा। उन्हें जनता को यह विश्वास दिलाना होगा कि वे:
-
वर्तमान सरकार से कहीं अधिक जनहित में कार्य कर सकते हैं।
-
उनके शासनकाल में जनता को अधिक सुविधाएँ मिलेंगी।
-
वे संतोषजनक कानून व्यवस्था प्रदान करके जनता के लिए अधिक सुख-शांति सुनिश्चित कर सकते हैं।
-
वे भ्रष्टाचार पर अंकुश, न्याय व्यवस्था में सुधार, और बेरोजगारी, महंगाई तथा बढ़ती आबादी जैसी समस्याओं पर तेज़ी से अंकुश लगा सकते हैं।
विपक्षी दलों को अपनी नीतियों और कथनी को किसी राज्य में सरकार बनाकर सिद्ध करना होगा, तभी वे केंद्र या राज्यों में सत्ता प्राप्त करने की क्षमता सिद्ध कर सकते हैं।
मीडिया की ज़िम्मेदारी: टीआरपी से ऊपर जनहित
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ माने जाने वाले मीडिया को भी अपनी भूमिका सकारात्मक रखनी होगी। उन्हें केवल कवरेज और टीआरपी बढ़ाने की मानसिकता से परे हटकर कार्य करना चाहिए।
गुंडे-मवाली या देशद्रोही नारे देने वाले नेताओं के इंटरव्यू दिखाना और अराजक तत्वों को बढ़ावा देना जनता को भ्रमित करता है। मीडिया को जनहित का ध्यान रखते हुए अपने माध्यम का उपयोग करना चाहिए। सरकार के गलत कार्यों की जमकर आलोचना होनी चाहिए, लेकिन साथ ही जनहितकारी कार्यों की सराहना भी करनी चाहिए, ताकि जनता तक सही और संतुलित संदेश पहुँच सके।
