सत्ता का शासन क्षणिक है, लेकिन आचार्यों का अनुशासन शाश्वत होता है — रमेश भैया

 
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हरदोई (अम्बरीष कुमार सक्सेना)।
विनोबा सेवा आश्रम के अधिष्ठाता रमेश भैया ने शुक्रवार को एक प्रेरणादायक वार्ता में "अनुशासन पर्व" की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि उपनिषदों में अनुशासन को एक पर्व के रूप में स्वीकार किया गया है। छांदोग्य उपनिषद का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा— "आचार्यात् हि एव विद्या विदिता साघिष्ठं प्राप्यते" — जिसका आशय है कि सच्ची विद्या आचार्य के सान्निध्य में ही प्राप्त होती है।

गुरु की शरण में विद्या का सार

रमेश भैया ने उदाहरण देते हुए कहा कि राम ने वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में और भगवान श्रीकृष्ण ने संदीपनि मुनि के पास जाकर शिक्षा ग्रहण की थी। यहां तक कि कंस वध जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य करने के बाद भी श्रीकृष्ण ने गुरु के पास जाकर विद्याध्ययन करना आवश्यक समझा। यही दर्शाता है कि गुरु का अनुशासन किसी की ख्याति या उपलब्धियों से बड़ा होता है।

गृहस्थ या ब्रह्मचारी — अनुशासन सबका मार्ग

भैया जी ने बताया कि प्राचीन काल में 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन कर विद्यार्थी अपने भविष्य की दिशा तय करते थे — चाहे वे गृहस्थाश्रम में प्रवेश करें या जीवन भर ब्रह्मचारी रहें। गुरु विदाई के समय उन्हें अंतिम उपदेश देते थे — "सत्यं वद, धर्मं चर" — और कहते थे, "एतद अनुशासनम्" — यही है जीवन का अनुशासन, जिसे जीवनभर निभाना होता है।

शासन बनाम अनुशासन: अंतर को समझें

रमेश भैया ने स्पष्ट कहा, “सत्ताधारी शासन करते हैं, पर आचार्य अनुशासन सिखाते हैं।” शासन शक्ति के बल पर चलता है, जबकि अनुशासन आंतरिक जागरूकता से। उन्होंने बताया कि दुनिया भर में शासन की नीतियाँ अस्थायी समाधान देती हैं, जो आगे जाकर नई उलझनों को जन्म देती हैं। जैसे बांग्लादेश का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि समस्या सुलझी भी, लेकिन फिर उलझ भी गई।

शक्ति संतुलन और असंतोष का खेल

उन्होंने वैश्विक राजनीति का उल्लेख करते हुए कहा कि अफगानिस्तान से ज़ांबिया तक लगभग 300 से अधिक देशों में शासन मौजूद है, लेकिन फिर भी दुनिया असंतोष और हिंसा से भरी हुई है। अमेरिका जैसी बड़ी शक्तियाँ गुटबंदी का फायदा उठाकर सत्ता संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती हैं — जिससे शांति नहीं, बल्कि "पावर ऑफ इंबैलेंस" बना रहता है।

भैया जी ने व्यथा व्यक्त करते हुए कहा कि जब तक दुनिया केवल सत्ता और ताकत के संतुलन के भरोसे चलेगी, तब तक सच्ची शांति संभव नहीं है।

आचार्य का अनुशासन: समाधान की राह

उन्होंने सुझाव दिया कि अगर दुनिया को स्थायी समाधान और वास्तविक शांति की ओर ले जाना है, तो उसे आचार्यों के मार्गदर्शन — यानी अनुशासन के पथ — पर चलना होगा। आचार्य न तो पक्षपाती होते हैं, न भयभीत होते हैं, और न ही उनकी वाणी में द्वेष होता है। उनका मार्गदर्शन निःस्वार्थ, स्पष्ट और सबके कल्याण हेतु होता है।

भारत के लिए अनुशासन की आवश्यकता

रमेश भैया ने कहा कि यदि पूरी दुनिया नहीं, तो कम से कम भारत जैसे विशाल और बहुभाषी देश में जनता आचार्यों के अनुशासन का पालन करे, तो एक स्थायी और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण हो सकता है। उन्होंने विश्वास जताया कि भारत में शासन कभी ऐसा कार्य नहीं करेगा जो आचार्यों के अनुशासन के विरुद्ध हो। यदि ऐसा होता है, तो वे उसे सत्याग्रह के माध्यम से चुनौती देंगे।

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