सोहेलवा के जंगलों में गूँजेगी थारू संस्कृति की धमक

Tharu culture will resonate in the forests of Sohelwa.
 
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बलरामपुर।  उत्तर प्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर बलरामपुर एक नई पहचान गढ़ने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। सोहेलवा वन्यजीव प्रभाग के अंतर्गत स्थित जरवा ईको-पर्यटन स्थल को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए जिला प्रशासन एवं वन विभाग ने एक अनूठी पहल शुरू की है। दारा नाला के तट पर शीघ्र ही एक ईको-फ्रेंडली ‘थारू कैफे’ की स्थापना की जाएगी, जहाँ पर्यटकों को घने जंगलों और वन्यजीवन के बीच विश्राम के साथ-साथ थारू जनजाति के पारंपरिक स्वादों का अनुभव मिलेगा।

स्वाद और परंपरा का अनोखा संगम

थारू कैफे की खासियत यहाँ परोसे जाने वाले पारंपरिक थारू व्यंजन होंगे। इनमें डिकरी (पीठा), घोंघी, देशी घी के छौंके वाली दाल, स्योंढ़ा, पटोला, ढिस्सा, गुलगुला और खजुरिया जैसे व्यंजन शामिल होंगे। इन व्यंजनों के माध्यम से सैलानियों को थारू जनजाति की समृद्ध खान-पान संस्कृति और परंपराओं को नजदीक से जानने का अवसर मिलेगा।
S. Msm

महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनेगा थारू कैफे

कैफे के संचालन की जिम्मेदारी थारू जनजाति की महिलाओं को सौंपी जाएगी। यह पहल स्थानीय महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाएगी और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। जिलाधिकारी विपिन कुमार जैन के अनुसार, कैफे का निर्माण पूर्णतः ईको-फ्रेंडली ढांचे में किया जाएगा, जिसके लिए विशेषज्ञ आर्किटेक्ट्स की सेवाएँ ली जा रही हैं।

धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन का उभरता केंद्र

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के बाद तराई क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अयोध्या आने वाले श्रद्धालु अब शक्तिपीठ देवीपाटन मंदिर (तुलसीपुर) भी बड़ी संख्या में पहुँच रहे हैं। देवीपाटन मंदिर से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जरवा और सोहेलवा का जंगल पर्यटकों के लिए नेचर टूरिज्म का एक उत्कृष्ट विकल्प बनता जा रहा है।
चित्तौड़गढ़ जलाशय पर रात्रि विश्राम की तैयारी
पर्यटन को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए प्रशासन द्वारा चित्तौड़गढ़ जलाशय के समीप पर्यटकों के लिए रात्रि विश्राम की व्यवस्था पर भी कार्य शुरू कर दिया गया है। बाघ, तेंदुआ, हिरन जैसे वन्यजीवों के दीदार और दारा नाला के शांत वातावरण में बिताया गया समय सैलानियों के लिए यादगार अनुभव होगा।
जरवा में प्रस्तावित ‘थारू कैफे’ प्राकृतिक संरक्षण, जनजातीय गौरव और आधुनिक पर्यटन के बीच एक मजबूत सेतु साबित होगा। यह पहल न केवल तराई के इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को गति देगी, बल्कि उत्तर प्रदेश के पर्यटन क्षेत्र में एक नया अध्याय भी जोड़ेगी।

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