कल्पवृक्ष का अलौकिक रहस्य और औषधीय शक्ति

समुद्र मंथन के समय निकले 14 बहुमूल्य रत्नों में से एक पारिजात वृक्ष है, जिसे प्राचीन ग्रंथों में कल्पवृक्ष भी कहा गया है। यह दिव्य वृक्ष न केवल अपनी अलौकिक सुगंध के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि हिंदू पौराणिक कथाओं में भी इसका विशेष स्थान है।
पौराणिक महत्व और स्वर्ग की कथा
पारिजात वृक्ष मूल रूप से देवराज इंद्र के नंदन वन (स्वर्ग के बगीचे) में स्थित था। पौराणिक मान्यता है कि स्वर्ग में केवल देव नर्तकी उर्वशी को ही इसे छूने का अधिकार प्राप्त था। कहा जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठने या इसे छूने मात्र से व्यक्ति की थकान दूर हो जाती है और नई ऊर्जा का संचार होता है।
इस वृक्ष से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा यह है कि देव मुनि नारद ने इसके अलौकिक पुष्प भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को भेंट किए। इन अद्भुत फूलों को देखकर सत्यभामा ने हठपूर्वक श्रीकृष्ण से इस वृक्ष को स्वर्ग से लाकर अपनी वाटिका में रोपित करने की माँग की।
जब श्रीकृष्ण ने नारद मुनि को पारिजात लाने के लिए स्वर्ग लोक भेजा, तो इंद्र ने इंकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, भगवान श्रीकृष्ण ने गरूड़ पर सवार होकर इंद्र पर आक्रमण कर दिया और पारिजात को प्राप्त कर लिया। यह वृक्ष सत्यभामा की वाटिका में रोपित किया गया, लेकिन मान्यतानुसार इसके पुष्प श्रीकृष्ण की दूसरी पत्नी रुक्मिणी की वाटिका में गिरते थे।
पारिजात की अनूठी पहचान और लाभ
पारिजात एक पुष्प देने वाला वृक्ष है, जो लगभग 10 से 15 फीट ऊँचा होता है और 1,000 से 5,000 वर्षों तक जीवित रह सकता है।
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पुष्प की विशेषता: इसकी सबसे बड़ी पहचान इसके सफेद फूल और केसरिया डंडी है।
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खिलने का समय: इसके सुगंधित फूल रात में खिलते हैं और भोर होते ही वृक्ष से टूटकर पृथ्वी पर बिखर जाते हैं।
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तोड़ने की मनाही: पारिजात के केवल वे ही फूल उपयोग में लाए जाते हैं, जो वृक्ष से स्वयं टूटकर गिर जाते हैं—इसे तोड़ना पूरी तरह वर्जित है।
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आध्यात्मिक ऊर्जा: इस वृक्ष की सुगंध आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को भगाती है और घर के वातावरण को आध्यात्मिक बनाती है।
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राज्य पुष्प: पारिजात पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प भी है।
स्वास्थ्य एवं औषधीय उपयोग
पारिजात का पुष्प केवल मन को ही प्रसन्न नहीं करता, बल्कि तन को भी शक्ति देता है। इसके अलौकिक फूलों को एक कप गर्म पानी में डालकर पीने से अद्भुत ताजगी मिलती है। यह वृक्ष कई रोगों को दूर करने में सहायक एक अत्यंत लाभकारी औषधि भी है।
साइटिका (गृध्रसी) का सफल उपचार
साइटिका (जिसे रिंगण बाय भी कहते हैं) का सफल इलाज पारिजात के पत्तों के काढ़े से किया जाता है, जो कूल्हे से लेकर एक पैर के पंजे तक होने वाले असहनीय दर्द को कम करता है।
उपयोग विधि
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पत्ते: पारिजात (हरसिंगार) के 10-15 कोमल पत्तों को लें जो कटे-फटे न हों।
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काढ़ा बनाना: पत्तों को धोकर थोड़ा सा कूट या पीस लें। इसे लगभग 200-300 ग्राम पानी (2 कप) में चाय की तरह धीमी आँच पर उबालें।
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सेवन: काढ़े को छानकर गर्म-गर्म ही पी लें। पहली खुराक से ही लगभग 10% लाभ महसूस हो सकता है।
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परहेज: इस काढ़े को पीने से 15 मिनट पहले और 1 घंटा बाद तक ठंडा पानी, दही, लस्सी और अचार का सेवन बिल्कुल न करें।
