इस दिवाली जलाएं एक दिया उम्मीदों का: लोकल खरीदें, पटरी विक्रेताओं से करें खरीदारी, न करें मोलभाव

This Diwali, light a lamp of hope: buy local, shop from street vendors, and don't haggle.
 
This Diwali, light a lamp of hope: buy local, shop from street vendors, and don't haggle.

(संजीव शर्मा द्वारा एक प्रेरणादायक अपील)

मोबाइल फोन में ऑनलाइन लाइटिंग, सजावट या कपड़ों की तलाश में समय बर्बाद करने के बजाय, इस बार सपरिवार घर से बाहर निकलिए। सड़क किनारे दिए बेचती बूढ़ी माँ की आँखों में पलती उम्मीदों की रोशनी देखिए, या रंगोली के रंग फैलाती नन्हीं बालिका के चेहरे के भावों को महसूस कीजिए।

क्या इस बार हम ऐसे ही किसी व्यक्ति या परिवार के घर में आशा का एक दिया नहीं जला सकते? हमें बस इतना करना है: इस दिवाली अपनी खरीदारी स्थानीय (लोकल) और विशेष रूप से पटरी पर बाज़ार सजाने वाले छोटे विक्रेताओं से करें और अपने बच्चों में भी यही आदत डालें। रोशनी, खुशहाली और समृद्धि का यह पर्व सामुदायिक एकजुटता और आर्थिक सहयोग का भी एक बड़ा अवसर है।

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मोलभाव क्यों रोकें? मेहनत का सम्मान करें

दीपावली की खरीदारी के लिए बाज़ारों में निकलते समय, अपनी आदत में एक छोटा-सा बदलाव लाएँ: बिना मोलभाव के लोकल विक्रेताओं से खरीदारी करें।

  • आजीविका का आधार: पटरी बाज़ार के लिए हर बिक्री न केवल आजीविका का साधन है, बल्कि परिवार के पोषण, बच्चों की पढ़ाई और त्योहार की तैयारी का आधार भी है।

  • मुनाफे पर प्रभाव: एक छोटे विक्रेता के लिए, 10-20 रुपये की कीमत कम करना भी उनके दिन के कुल मुनाफे को प्रभावित कर सकता है। दिवाली जैसे व्यस्त मौसम में, जब उनकी बिक्री साल भर की कमाई का बड़ा हिस्सा होती है, मोलभाव उनके लिए बोझ बन जाता है।

  • विडंबना: हम 700 रुपये का पिज़्ज़ा या 300 रुपये की कॉफी बिना मोलभाव के खरीद लेते हैं, लेकिन साल में एक बार मिट्टी के दर्जन भर दिए खरीदने के लिए मोलभाव में कोई कसर नहीं छोड़ते। मल्टीप्लेक्स में 400 रुपये का पॉपकॉर्न चुपचाप ले लेते हैं, लेकिन स्थानीय झालर या तोरण खरीदते समय अमेरिका-चीन जैसा व्यापारिक समझौता करने की कोशिश करते हैं।

बिना मोलभाव के खरीदारी करके आप उनकी मेहनत का सम्मान करते हैं और उन्हें त्योहार की सच्ची खुशी देते हैं।

ऑनलाइन खरीदारी का बढ़ता खतरा

हमें इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि देश में बढ़ती ऑनलाइन खरीदारी स्थानीय बाजारों, किराना दुकानों, पटरी विक्रेताओं और छोटे रिटेलरों पर गहरा प्रभाव डाल रही है:

  • बाज़ार का रूपांतरण: 2025 तक, भारतीय ई-कॉमर्स बाज़ार का मूल्य लगभग 10 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है। 2028 तक कुल रिटेल बाज़ार में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी 8% से बढ़कर 14% हो जाएगी, जिससे ऑफलाइन रिटेल का हिस्सा घट जाएगा।

  • रोज़गार पर असर: ऑनलाइन खरीदारी के कारण छोटे रिटेलरों की बिक्री में 15-20% की गिरावट दर्ज की गई है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022-2024 के बीच 1-2 लाख छोटे स्टोर बंद हो चुके हैं। रिटेल सेक्टर भारत में 4 करोड़ से अधिक लोगों को रोज़गार देता है, लेकिन ई-कॉमर्स की वृद्धि से 5-7 लाख नौकरियाँ प्रभावित हुई हैं, जिनमें मुख्य रूप से पटरी विक्रेताओं से जुड़ी रोज़गार शामिल है।

लोकल ही है संस्कृति की रीढ़

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करते थे, इसे वह आत्मनिर्भरता का जरिया मानते थे। लोकल और पटरी विक्रेता वास्तव में भारतीय बाज़ारों की रीढ़ हैं।

ये वे लोग हैं जो हस्तनिर्मित दीये बनाते हैं, सजावटी सामान तैयार करते हैं और हमारी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखते हैं। इनके उत्पाद न केवल अक्सर पर्यावरण के लिए बेहतर होते हैं, बल्कि इन विक्रेताओं से खरीदारी करके आप न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं, बल्कि बड़े कॉरपोरेट्स पर निर्भरता को भी कम करते हैं।

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