तू जिसे चाहे वो संवरता है कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह में गूँजी साहित्य की आवाज़

एक साथ फाउंडेशन द्वारा लखनऊ के होटल सागर सोना प्रांगण में भव्य कवि सम्मेलन, मुशायरा एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से पधारे प्रतिष्ठित कवि, शायर और साहित्यकारों ने भाग लिया। यह आयोजन शब्दों की शक्ति, संस्कृति की गरिमा और साहित्य के सम्मान का अनुपम उदाहरण बना।
मुख्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति
कार्यक्रम की अध्यक्षता आईपीएस अधिकारी प्रदीप गुप्ता, जस्टिस लोकेश नागर एवं आईपीएस आलोक श्रीवास्तव जी ने की। वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में देश के जाने-माने गीतकार व कवि आलोक श्रीवास्तव जी उपस्थित रहे। मंच की शोभा बढ़ाने वाले अन्य अतिथियों में दीपक वाधवा, ऋतुराज सिंह, नवाज़ मसूद अब्दुल्ला, आनंद शेखर सिंह, दिनेश सहगल, संदीप आहूजा, बेगम शहनाज़ सिदरत, नवल कांत सिंहा और श्रीमती ज्योत्सना श्रीवास्तव प्रमुख रहे।
कविता, शायरी और विचारों की गूंज:
दीप प्रज्वलन के साथ आरंभ हुए इस कार्यक्रम में दिल्ली से पधारीं नमिता नमन ने जब कहा –
हम मुकम्मल ना कर सके जिसको, ढाई अक्षर की वो कहानी थी”
तो पूरा सभागार भावुक हो उठा।
रीवा से पधारे सिद्धार्थ श्रीवास्तव ने जोशीले अंदाज़ में पढ़ा:
जिस घर में दो पीढ़ी जी देश के लिए,
मैं उसी खून से पैदा हुआ, इंकलाब हूँ।”
मोईन अल्वी ख़ैराबादी की पंक्तियाँ –
तुम्हारे वस्ल की किरनें हैं फूटीं,
शब-ए-ग़म की सहर है और मैं हूं।”
तो वहीं आसिम पीरज़ादा ने पढ़ा:
क़ातिल को नवाज़े कोई, बिस्मिल को नवाज़े,
रहबर को कोई, रहज़न-ए-मंज़िल को नवाज़े।”
तारा इक़बाल (रायबरेली) की मार्मिक प्रस्तुति:
कौन गुज़रा है भारी क़दमों से,
दिल पे गहरे निशान हैं किसके?”
राम प्रकाश बेख़ुद ने सामाजिक कटाक्ष करते हुए कहा:
आजकल गमलों में पौधे उग रहे हैं हर तरफ,
इनके हिस्से की ज़मीं भी आदमी ने छीन ली।”
सुनहरी शाम के सितारे
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे ज़िया अल्वी और सम्मानित कवि आलोक श्रीवास्तव के विशेष अनुरोध पर डॉ. श्वेता अज़ल को मंच पर आमंत्रित किया गया। उन्होंने अपनी पंक्तियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया:
“कहकशाँ, चाँद-तारे तेरे हैं,
हर नज़र में नज़ारे तेरे हैं,
तू जिसे चाहे वो संवरता है,
नाम सब ने पुकारे तेरे हैं।”
आलोक श्रीवास्तव ने अपनी प्रसिद्ध रचनाओं से कार्यक्रम को एक नई ऊँचाई दी:
“ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं,
मसरूफ़ हम बहुत हैं, मगर बेख़बर नहीं।”
“मंज़िले क्या हैं, रस्ता क्या है,
हौसला हो तो फ़ासला क्या है।”
ज़िया अल्वी जी की रचना ने समापन को और गहराई दी:
“दावा मोहब्बतों का करो लाख तुम 'ज़िया',
लेकिन अभी कमी है हमारे हिसाब में।”
सम्मान समारोह
दूसरे सत्र में एक साथ फाउंडेशन द्वारा साहित्यिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाली विभूतियों को सम्मानित किया गया। इनमें शामिल रहीं:
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डॉ. अनीता सहगल वसुंधरा
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कनक रेखा चौहान
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श्रीमती ओम सिंह
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प्रो. विभा अग्निहोत्री
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अलका प्रमोद
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डॉ. शोभा बाजपाई
साथ ही, व्यंग्यकार पंकज प्रसून, लेखक डॉ. हिमांशु बाजपई, कुलदीप सिंह और सभी कवियों/शायरों को भी सम्मान प्रदान किया गया।
