लखनऊ में तीन दिवसीय बोन्साई कार्यशाला का आयोजन
आजकल बढ़ती भूमि लागत और आवासीय मांग के कारण बड़े बंगले छोटे फ्लैट्स और ऊंची इमारतों से बदलते जा रहे हैं, जिससे प्राकृतिक परिवेश में कमी आ रही है। ऐसे में, बोन्साई का लघु आकार प्रकृति और निवासियों के बीच संबंध बनाए रखने में सहायक होता है। बोन्साई की उत्पत्ति चीन में हुई थी, लेकिन जापान में इसे आधुनिक रूप मिला। इस कला को संपूर्ण रूप देने के लिए नई तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे रेमिफिकेशन, आकार में गति, और जड़ प्रणाली का विकास, जो बोन्साई पौधों को विशेष डिजाइनर लुक प्रदान करता है।
इस कार्यशाला में प्रशिक्षक के रूप में रवींद्रन दामोदरन, वीर चौधरी, और सौमिक दास ने भाग लिया। इसके अलावा जयपुर से आमंत्रित फहद मलिक, जो एक स्व-शिक्षित बोन्साई कलाकार हैं, ने भी कार्यशाला में योगदान दिया। प्रतिभागियों में के के अरोड़ा, रेणु प्रकाश, पद्मा सिंह, बेनु कलसी, सिद्धार्थ सिंह, विधि भार्गव, प्रियांशी, द्रोण सिंह और विधि भार्गव शामिल थे। सभी ने इस कला के प्रति अपने उत्साह और लगन का परिचय दिया, जिससे कार्यशाला सफल रही और बोन्साई की कला को एक नई दिशा मिली।