पाकिस्तान की चमड़ा फैक्ट्रियों से जहरीले पानी का कहर: कैंसर, विकलांगता और बंजर होती ज़मीनें

Toxic water from Pakistan's leather factories wreaks havoc: cancer, disability and barren land
 
पाकिस्तान की चमड़ा फैक्ट्रियों से जहरीले पानी का कहर: कैंसर, विकलांगता और बंजर होती ज़मीनें
रिपोर्ट: सुभाष आनंद | विनायक फीचर्स
भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव के बीच अब एक और गंभीर मुद्दा चर्चा में है — सतलुज नदी में मिलाया जा रहा जहरीला पानी, जो न केवल भारत के सीमावर्ती गांवों में गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है, बल्कि लोगों की ज़िंदगी और ज़मीन दोनों को बर्बादी की कगार पर पहुंचा चुका है।

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कसूर की फैक्ट्रियों से सतलुज में ज़हर

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित कसूर जिला, जो पहले लाहौर की तहसील हुआ करता था, आज चमड़ा उद्योग का बड़ा केंद्र बन चुका है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार यहां फिलहाल 140 से अधिक चमड़ा फैक्ट्रियां संचालित हो रही हैं। इन फैक्ट्रियों से निकलने वाला रासायनिक कचरा बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे सतलुज नदी में डाला जा रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार चमड़ा साफ करने में प्रयुक्त रसायन — जैसे एसीटिक एनहाइड्राइट, क्रोमियम, और अन्य भारी धातुएं — सीधे पानी में मिल जाने के कारण यह पानी कैंसर, त्वचा रोग, गर्भपात, हड्डियों की कमजोरी और विकलांगता जैसी बीमारियों को बढ़ावा दे रहा है।
सीमा पार असर: भारत के गांवों में तबाही
फिरोजपुर और फाजिल्का जिलों के कई सीमावर्ती गांव इस जहरीले पानी से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। स्ट्रीमलाइन वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष दीवान चंद के अनुसार, गांवों के नलकूपों से जो पानी निकलता है, वह भी अब दूषित हो चुका है।
यही पानी पीने से
बच्चों में जन्म से ही विकलांगता देखी जा रही है,
युवाओं में कैंसर की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं,
पशु-पक्षियों की मृत्यु दर में इज़ाफा हुआ है,
और खेतों की उपज क्षमता समाप्त हो रही है।
स्वास्थ्य शिविर और सरकारी आंकड़े
स्थानीय चिकित्सकों और सिविल सर्जनों की रिपोर्टें इस स्थिति की गंभीरता को प्रमाणित करती हैं।
आंकड़ों के मुताबिक
70 से अधिक बच्चों को हैंडीकैप सर्टिफिकेट जारी किए गए हैं,
37 से अधिक लोग कैंसर से पीड़ित हैं, और इलाज के लिए संघर्ष कर रहे हैं,
गांव तेज रोहिला, गट्टी मस्ते और कई अन्य इलाकों में त्वचा रोगियों की संख्या में भारी इज़ाफा हुआ है।
स्थानीय लोगों की पीड़ा
60 वर्षीय कुलदीप सिंह बताते हैं कि दूषित पानी की वजह से उनके बच्चों के रिश्ते तक नहीं हो पा रहे। गुलाब सिंह की शादी को छह वर्ष हो चुके हैं, लेकिन उनके दोनों बच्चे जन्म से विकलांग हैं। कुसुम बाई कहती हैं, "हम नर्क जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं, लेकिन अपनी ज़मीन छोड़ नहीं सकते।"
सरकारी वादे, ज़मीनी हकीकत
पंजाब सरकार के जल संसाधन मंत्री ब्रह्म शंकर जिंपा ने 2022 में इस मुद्दे को हल करने के लिए पाकिस्तान से संवाद की बात कही थी, लेकिन आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। नीति आयोग के सदस्य तक को ज्ञापन देने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है।
समाधान की ओर पहल कब?
दीवान चंद के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल जल्द ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की तैयारी कर रहा है, ताकि भारत और पाकिस्तान के बीच एक संयुक्त जल पर्यावरण कमेटी का गठन हो सके। लेकिन मौजूदा द्विपक्षीय तनाव को देखते हुए इस पहल को मूर्तरूप देने की संभावना कम ही दिखती है।

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