भगत सिंह के साथी श सुखदेव के जन्मदिन दिवस पर दि पुष्पांजलि :खोसला

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिये जब योजना बनी तो साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा राजगुरु का पूरा साथ दिया था। यही नहीं, सन् 1929 में जेल में कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किये जाने के विरोध में राजनीतिक बन्दियों द्वारा की गयी व्यापक हड़ताल में बढ़-चढ़कर भाग भी लिया था।
गान्धी-इर्विन समझौते के सन्दर्भ में इन्होंने एक खुला पत्र गान्धी के नाम अंग्रेजी में लिखा था जिसमें सुखदेव ने महात्मा गांधी द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियों को नकारे जाने का विरोध किया था। इसमें सुखदेव ने साफ शब्दों में अपने विचार व्यक्त करते हुए गांधीजी को इस बात से अवगत कराया था कि उनका उद्देश्य केवल बड़ी-बड़ी बातें करना ही नहीं, बल्कि सच यह है कि देशहित के लिए क्रांतिकारी किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसे में गांधीजी यदि जेल में बंद कैदियों की पैरवी नहीं कर सकते तो उन्हें इन क्रांतिकारियों के खिलाफ नकारात्मक माहौल बनाने से भी बचना चाहिए।
उनका उत्तर यह मिला कि निर्धारित तिथि और समय से पूर्व जेल मैनुअल के नियमों को दरकिनार रखते हुए 23 मार्च 1931 को सायंकाल 7 बजे सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह तीनों को लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी पर लटका कर शहीद कर डाला गया। इस प्रकार भगत सिंह तथा राजगुरु के साथ सुखदेव भी मात्र 23वर्ष की आयु में शहीद हो गये। कौशल ने सभी भारतवासियों से निवेदन किया की गरम दल क्रांतिकारी वीरों की गाथाएं पड़े और इन पर दिखाए हुए मार्ग पर चलें इन्होंने भारत माता को आजाद करने के लिए हिंदू, मुस्लिम ,सिख ,इसाई एकजुट होकर लड़ाई लड़ी आज फिर वक्त है पाकिस्तान से एकजुट होकर लड़ने का जय हिंद जय भारत