त्रिभाषिक गीता अनुवाद का विमोचन: सामाजिक समरसता की दिशा में ऐतिहासिक पहल

Release Gita translation of translation: Historical initiative towards social harmony
 
Release Gita translation of translation: Historical initiative towards social harmony
लखनऊ डेस्क (आर. एल. पाण्डेय)।
उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब में आयोजित एक विशेष समारोह में "श्रीरामद्भगवद्गीता" के संस्कृत, हिंदी और उर्दू अनुवाद का लोकार्पण किया गया। यह अनुवाद दाराशिकोह लखनवी के नाम से ख्यात मेराज अहमद अंसारी द्वारा तैयार किया गया है। कार्यक्रम का आयोजन भारतीय परंपरा और राष्ट्रवाद अध्ययन केंद्र के तत्वावधान में किया गया।

हर भाषा में गीता का संदेश – समरस समाज की नींव

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पंडित सुभाष मिश्रा (आदि शक्ति माँ सिद्ध पीठ) ने कहा, "भगवद्गीता का ज्ञान जब हर समुदाय की भाषा में सहजता से उपलब्ध होगा, तब सामाजिक समरसता और परस्पर समझ को एक नई ऊर्जा मिलेगी।"

विशिष्ट अतिथि नवाब असद साहब, जो नवाब मोहम्मद अली शाह की तीसरी पीढ़ी से संबंध रखते हैं, ने इसे "भारत की साझी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का एक सुंदर प्रयास" बताया।

अनुवादक की दृष्टि: संवाद का माध्यम बने गीता

मेराज अहमद अंसारी ने त्रिभाषिक गीता अनुवाद के पीछे अपनी प्रेरणा साझा करते हुए कहा कि इस कार्य का उद्देश्य भारतीय मुसलमानों को सनातन संस्कृति की गहराई से जोड़ना है। उनके अनुसार, "गीता किसी एक धर्म की संपत्ति नहीं, बल्कि हर जिज्ञासु और आत्मज्ञान की तलाश में लगे व्यक्ति के लिए है।"

 बहुसांस्कृतिक सहभागिता

समारोह में सैयद कासिम मेहदी, हाफिज अनीस साहब सहित कई प्रतिष्ठित वक्ताओं ने विचार साझा किए और इस पहल को भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक बताया।

कार्यक्रम में लखनऊ की कई धार्मिक, सामाजिक और बौद्धिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, पत्रकार और साहित्यप्रेमी शामिल हुए, जिन्होंने इस सांस्कृतिक सेतु निर्माण की दिशा में हुए प्रयास की सराहना की।

 एकात्मता का संदेश

यह त्रिभाषिक अनुवाद न केवल गीता के ज्ञान को अधिक लोगों तक पहुंचाएगा, बल्कि भाषाई और धार्मिक विविधता में एकता को भी सशक्त बनाएगा।

Tags