अमेरिका का दोहरा रवैया: भारत पर 50% टैरिफ, लेकिन चीन को राहत – आखिर क्यों?
आज हम बात करेंगे एक ऐसे मुद्दे की जो भारत, अमेरिका और चीन के बीच चर्चा का केंद्र बना हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने के लिए भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया, लेकिन चीन को 90 दिन की राहत दे दी। आखिर क्यों? और अमेरिकी Foreign Minister मार्को रुबियो ने इस दोहरे रवैये का क्या कारण बताया? चलिए, इसकी पूरी कहानी समझते हैं।
बात शुरू होती है रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से, जब रूस पर कई देशों ने economic sanctions लगाए। इन प्रतिबंधों के बावजूद, भारत और चीन दोनों रूस से सस्ता तेल खरीद रहे हैं। लेकिन हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% से बढ़ाकर 50% टैरिफ लगा दिया, क्योंकि भारत रूस से तेल खरीद रहा है। दूसरी ओर, चीन, जो रूस से भारत से भी ज्यादा तेल खरीदता है, उसे न सिर्फ टैरिफ में राहत दी गई, बल्कि 90 दिन का और समय भी दिया गया।
ट्रंप का कहना है कि भारत रूस से तेल खरीदकर उसे खुले बाजार में बेचता है और मुनाफा कमाता है, जिससे रूस की "युद्ध मशीन" को फायदा होता है। लेकिन सवाल ये है - अगर यही तर्क है, तो चीन को क्यों छूट दी जा रही है? आखिर अमेरिका का ये दोहरा रवैया क्यों? इस सवाल का जवाब देने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो सामने आए।
17 अगस्त 2025 को बात करते हुए मार्को रुबियो ने इस नीति को समझाने की कोशिश की। उनका कहना था कि चीन रूस से जो तेल खरीदता है, उसे रिफाइन करके वैश्विक बाजार में बेचता है। अगर चीन पर सेकेंडरी टैरिफ लगाया गया, तो global oil की कीमतें बढ़ जाएंगी, क्योंकि दुनिया के कई देश इस तेल पर निर्भर हैं। रुबियो के मुताबिक, इससे न सिर्फ common consumers को नुकसान होगा, बल्कि यूरोपीय देश भी नाराज होंगे, जो पहले ही 100% टैरिफ के प्रस्ताव के खिलाफ हैं।
लेकिन ये तर्क भारत के साथ क्यों लागू नहीं होता? भारत भी रूस से तेल खरीदकर अपनी energy needs को पूरा करता है और अपनी economy को stable रखता है। फिर भारत पर 50% टैरिफ क्यों ? क्या ये सिर्फ आर्थिक नीति है, या इसके पीछे कोई और geopolitical game चल रहा है? कई लोग मानते हैं कि अमेरिका भारत को रूस से दूरी बनाने के लिए दबाव डाल रहा है, जबकि चीन के साथ उसका रवैया नरम है।
ये पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने भारत के साथ सख्ती और चीन के साथ नरमी दिखाई है। ट्रंप ने पहले भी भारत पर high tariff की धमकी दी थी, और अब इसे 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया गया। इसका सीधा असर भारत की economy पर पड़ सकता है। oil import महंगा होने से भारत में ईंधन की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका बोझ आम जनता पर पड़ेगा। साथ ही, भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में भी तनाव बढ़ सकता है। वहीं, चीन को राहत देने का फैसला कई सवाल खड़े करता है। सोशल मीडिया पर लोग इसे अमेरिका का "डबल स्टैंडर्ड" बता रहे हैं। कुछ का कहना है कि अमेरिका चीन को इसलिए छूट दे रहा है, क्योंकि वो global economy में उसकी बड़ी भूमिका को नजरअंदाज नहीं कर सकता। लेकिन भारत के साथ ऐसा क्यों नहीं ? क्या भारत को कमजोर साझेदार समझा जा रहा है, या ये अमेरिका की रणनीति है भारत को रूस से दूर करने की ?
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने तहलका मचा रखा है। लोग ट्विटर पर कह रहे हैं कि अमेरिका भारत के साथ भेदभाव कर रहा है। लेकिन सवाल ये है कि क्या भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को खतरे में डालकर अमेरिका की बात माने ? इस विवाद ने भारत में भी बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे ट्रंप की भारत विरोधी नीति बता रहे हैं, तो कुछ इसे global geopolitics का हिस्सा मानते हैं। लेकिन एक बात साफ है - ये मुद्दा सिर्फ तेल और टैरिफ का नहीं, बल्कि भारत की sovereignty और आर्थिक हितों का भी है।
तो ये था "रूस से तेल खरीदने" पर भारत और चीन के प्रति अमेरिका के दोहरे रवैये की पूरी कहानी । ट्रंप का भारत पर 50% टैरिफ और चीन को राहत देना कई सवाल खड़े करता है। क्या ये सिर्फ आर्थिक नीति है, या इसके पीछे कोई बड़ा geopolitical game है? भारत को अब अपनी रणनीति पर सोचने की जरूरत है - न सिर्फ तेल आयात को लेकर, बल्कि global platform पर अपनी situation को मजबूत करने के लिए भी। आप इस बारे में क्या सोचते हैं? क्या भारत को रूस से तेल खरीदना जारी रखना चाहिए, या अमेरिका के दबाव में अपनी नीति बदलनी चाहिए? कमेंट में अपनी राय जरूर बताएं।
