भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन: जहाँ हनुमान जी ने श्रीकृष्ण के जन्म का दिया था आशीर्वाद

पवन वर्मा-विनायक फीचर्स) उज्जैन संपूर्ण पृथ्वी पर एक अद्भुत और प्राचीन नगरी है, जिसका महत्व हर काल में रहा है। यह नगरी भगवान महाकालेश्वर के कारण अत्यंत पूजनीय है। महाकाल की महत्ता और उनके चमत्कारों की अनेक कथाएँ विभिन्न धर्मग्रंथों में विस्तार से मिलती हैं।
महाकाल और भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का वरदान
उज्जैन से जुड़ी एक अनोखी कथा महावीर, परम प्रतापी श्री हनुमान जी से संबंधित है। इस कथा के अनुसार, महाकाल मंदिर के सामने ही श्री हनुमान जी ने एक पाँच वर्षीय बालक की गहन भक्ति से प्रसन्न होकर उसे यह वरदान दिया था कि उसकी नौंवी पीढ़ी में स्वयं भगवान श्री नारायण, श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेंगे। भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में, उज्जैन के महाकालेश्वर का अपना विशिष्ट और अद्भुत महत्व है। यह ज्योतिर्लिंग शिव की उस स्वयंभू ज्योति का प्रतीक है, जो इस धरती पर प्रकट हुई थी।
शिवपुराण में महाकाल के अवतरण की कथा
शिवपुराण में उज्जैन (प्राचीन अवंति नगरी) में भगवान महाकालेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित होने की कथा विस्तार से वर्णित है।
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धर्मनिष्ठ ब्राह्मण: अवंति नगरी में एक श्रेष्ठ ब्राह्मण अपने चार धर्मनिष्ठ पुत्रों—देवप्रिय, प्रियमेधा, सुकृत और सुव्रत—के साथ रहते थे। ये सभी प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा करते थे।
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दूषण असुर का वध: इसी समय, रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक एक क्रूर असुर रहता था, जो वरदान पाकर तपस्वियों और ब्राह्मणों को सताने लगा।
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भगवान का आह्वान: उज्जैन के शिवभक्त ब्राह्मणों ने धैर्य धारण कर पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव से प्रार्थना की। अपने भक्तों की पुकार सुनकर भगवान महादेव तुरंत समाधि छोड़कर पार्थिव लिंग से प्रकट हुए और भयंकर गर्जना करते हुए दूषण राक्षस तथा उसकी सेना को भस्म कर दिया।स्कंद पुराण के अनुसार: "महाकाल: समुत्पन्नो दुष्टानां त्वादृशामहम्। खल त्व ब्राह्मणांना हि समीपाद् दूरतो व्रज॥"
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ज्योतिर्लिंग की स्थापना: दूषण का वध करने के बाद, ब्राह्मणों की प्रार्थना पर भगवान महाकाल ज्योतिर्लिंग स्वरूप में उज्जैन में स्थापित हो गए। माना जाता है कि महाकाल के दर्शन मात्र से मनुष्य को स्वप्न में भी कभी कोई दुख नहीं होता।

राजा चंद्रसेन और ग्वाल बालक श्रीकर की कथा
पुराणों में राजा चंद्रसेन और ग्वाल बालक की कथा महाकाल की कृपा का एक और वृत्तांत है:
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चिंतामणि: उज्जयिनी के प्रतापी राजा चंद्रसेन को शिवभक्ति के कारण महादेव के गण मणिभद्र ने एक चिंतामणि भेंट की थी, जो कल्याण प्रदान करती थी।
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राजाओं का आक्रमण: इस मणि को हासिल करने की लालसा में अन्य राजाओं ने उज्जयिनी पर आक्रमण कर दिया। राजा चंद्रसेन ने निर्विकल्प भाव से महाकाल की आराधना शुरू कर दी।
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बालक की भक्ति: तभी वहाँ से गुज़र रहे एक पाँच वर्षीय ग्वाल बालक (गोप पुत्र) ने राजा की पूजा देखी और स्वयं एक पत्थर को शिवलिंग मानकर भक्तिभाव से पूजा करने लगा। वह बालक इतना लीन हो गया कि उसने भोजन-पानी भी त्याग दिया।
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माता का क्रोध: जब बालक की माँ ने क्रोधित होकर उसके पत्थर के शिवलिंग को उठाकर फेंक दिया, तो बालक मूर्छित होकर 'दैव, दैव' कहकर ज़मीन पर गिर पड़ा।
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चमत्कार: मूर्च्छा टूटने पर बालक ने देखा कि उस स्थान पर इंद्रनील मणि, हीरे और माणिक से सुसज्जित एक दिव्य रत्नमय ज्योतिर्लिंग (महाकाल का सुंदर देवालय) प्रकट हो गया है।
हनुमान जी का आशीर्वाद
यह चमत्कार देखकर आक्रमणकारी राजा भी अपने अस्त्र-शस्त्र त्यागकर राजा चंद्रसेन से मित्रता करने आ गए। उसी समय महाबली हनुमान जी वहाँ प्रकट हुए और गोप पुत्र श्रीकर (जिसे यह नाम हनुमान जी ने ही दिया था) को गले से लगा लिया।हनुमान जी ने सभी राजाओं के बीच यह घोषणा की कि इस गोप पुत्र ने सच्चे मन से भगवान महाकाल को प्राप्त किया है। अंत में उन्होंने गोप पुत्र को आशीर्वाद दिया:अस्य वंशेऽष्टमो भावी नन्दो नाम महायशाः॥ प्राप्स्यते तस्य पुत्रत्वं कृष्णो नारायन स्वयम्।" (श्री शिवमहापुराण, कोटिरूद्र संहिता)अर्थात्: इस गोप पुत्र की आठवीं पीढ़ी में महायशस्वी 'नन्द' नामक गोप का जन्म होगा, और उनके पुत्र के रूप में साक्षात भगवान नारायण ही 'श्रीकृष्ण' के रूप में अवतरित होंगे। इस प्रकार, गोप पुत्र श्रीकर की आठवीं पीढ़ी में नंद नामक गोप हुए, जिनके यहाँ भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। यह कथा महाकाल के ज्योतिर्लिंग के परम कल्याणकारी और भक्त वत्सल स्वरूप को प्रमाणित करती है।
