बच्चे को दूध ना पिलाने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का अधिक खतरा - डॉ आर के सिंह

Women who do not breastfeed have a higher risk of breast cancer - Dr R K Singh
 
Women who do not breastfeed have a higher risk of breast cancer - Dr R K Singh
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)। फार्मेसिस्ट फेडरेशन द्वारा  Need for social support in recovering from breast cancer विषय पर दो दिवसीय वेबिनार आयोजित किया गया ।  विषेशज्ञ वक्ता के रूप में बोलते हुए जी एस वी एम मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा अधीक्षक एवं वरिष्ठ सर्जन डॉक्टर आर के सिंह ने ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण, उपचार, बचाव बताए और कहा कि जो महिलाएं बच्चों को अपना स्तनपान कराती हैं उन्हें स्तन कैंसर का खतरा कम हो जाता है । इसके साथ ही यह जेनेटिक भी हो सकता है । उन्होंने विस्तार से जांच और उपचार की चर्चा की और विभिन्न प्रश्नों के उत्तर दिए ।


उन्होंने बताया कि विभिन्न कारणों से भारत में, ब्रेस्ट कैंसर के लगभग 60% मामलों का निदान रोग के तीसरे चरण या चौथे चरण में हो पाता है, महिलाएं मामूली लक्षणों को नजरअंदाज कर देती हैं और अपनी घरेलू जिम्मेदारियों के कारण गंभीर होने तक अस्पताल नहीं जातीं, जो चिंताजनक है ।  आंकड़ों के अनुसार 0.5 से 1% पुरुषों में भी स्तन कैंसर हो सकता है ।

ब्रेस्ट कैंसर के मरीज को अकेले नहीं छोड़ना है,  उसे अकेलापन महसूस नहीं होना चाहिए, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक संबल देकर स्तन कैंसर के मरीज की जिंदगी को बचाया या बढ़ाया जा सकता है । परिवार में कैंसर का इतिहास, हार्मोनल असंतुलन, मोटापा या अस्वास्थ्यकर जीवनशैली के साथ बढ़ती उम्र इस रोग के प्रमुख कारक (रिस्क फैक्टर) होते हैं ।

उत्तर प्रदेश राज्य फार्मेसी परिषद के पूर्व चेयरमैन और फार्मेसिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष सुनील यादव ने स्तन कैंसर जागरूकता माह के दौरान आज वैज्ञानिक समिति की वेब मीटिंग में कहा कि जागरूकता ही बचाव है वास्तव में ये बात स्तन कैंसर के मामले में बहुत ही सटीक है । अगर समय रहते निदान हो गया तो ज्यादातर यह पूरी तरह ठीक हो जाता है । वैज्ञानिक समिति के चेयरमैन प्रो हरलोकेश ने बताया कि अक्टूबर माह ' ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता माह' के रूप में मनाया जाता है और इस वर्ष की थीम है "No One should face breast Cancer Alone" यह विषय इन मरीजों को चिकित्सीय, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सहायता की आवश्यकता पर बल देता है । उत्तर प्रदेश वैज्ञानिक कमेटी के अध्यक्ष प्रो संजय यादव ने बताया कि भारत में भी ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता माह विशेष रूप से इस महत्वपूर्ण स्वास्थ्य मुद्दे पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। 
  
महामंत्री अशोक कुमार ने बताया कि फेडरेशन के आह्वान पर फार्मेसी शिक्षण संस्थाओं द्वारा नुक्कड़ नाटक, ग्रामीण गोष्ठी, पोस्टर, लेखन प्रतियोगिता आदि अनेक कार्यक्रमों का आयोजन कर जागरूकता फैलाई जा रही है ।
डॉ राम मनोहर लोहियाअवध विश्विद्यालय अयोध्या के प्रवक्ता प्रो विष्णु ने संचालन किया और अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि महिलाओं को नियमित रूप से स्वयं अपने स्तनों की जांच करनी चाहिए, जिससे किसी भी असामान्य बदलाव का जल्द से जल्द पता लगाया जा सके। यह परीक्षा माहवारी के बाद के कुछ दिनों में की जा सकती है, जब स्तन सामान्य रूप से कम संवेदनशील होते हैं।
 स्तन में या बगल में कोई गांठ महसूस होना ब्रेस्ट कैंसर का प्रारंभिक संकेत हो सकता है। स्तन की त्वचा में बदलाव, त्वचा में डिंपल पड़ना, लालिमा, या स्तन की त्वचा का मोटा होना ध्यान देने योग्य लक्षण हैं। निप्पल का अंदर की ओर मुड़ना, निप्पल से असामान्य स्राव (खून या दूध जैसा), या निप्पल के आसपास की त्वचा में बदलाव भी कैंसर का संकेत हो सकता है। यदि एक स्तन का आकार दूसरे से अलग हो रहा हो, तो यह असामान्य हो सकता है। सामान्यत: 20 वर्ष की आयु से हर तीन साल और 40 वर्ष की आयु के बाद हर साल चिकित्सक से जांच कराया जाना चाहिए।

प्रोफेसर डॉ अजय शुक्ला ने निदान की जानकारी देते हुए बताया कि मैमोग्राफी (Mammography) से  ब्रेस्ट कैंसर के शुरुआती लक्षणों का पता लगाने के लिए किया जाता है। मैमोग्राफी से छोटे गांठों और असामान्यताओं का पता चल सकता है, जो हाथ से महसूस नहीं की जा सकतीं।  40 साल की उम्र के बाद विशेषज्ञों द्वारा नियमित रूप से मैमोग्राफी कराने की सलाह दी जाती है, खासकर अगर परिवार में कैंसर का इतिहास हो।अगर मैमोग्राफी में कोई असामान्य परिणाम आते हैं, तो चिकित्सक अल्ट्रासाउंड या एमआरआई की सलाह दे सकते हैं। ये जांचें गांठ की स्थिति तथा उसके  प्रकार का और स्पष्ट पता लगाने में मदद करती हैं। कोई गांठ या असामान्यता पाई जाती है, तो चिकित्सक बायोप्सी का सुझाव दे सकते हैं। इसमें गांठ से एक छोटा सा नमूना निकालकर लैब में जांच की जाती है कि यह कैंसरग्रस्त कोशिकाएं हैं या नहीं।

डॉ वंदना यादव, असिस्टेंट प्रोफेसर, फार्मेसी संकाय, महर्षि विश्विद्यालय लखनऊ ने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर की नई दवा के लिए उनका अनुसंधान चल रहा है । प्रो डॉ वंदना एक प्रचलित मिथ के बारे में  भी बताया कि महिलाओं को न केवल कैंसर से मौत और संक्रमण का डर होता है, बल्कि उन्हें यह भी डर होता है कि अगर लोगों को उनके कैंसर के बारे में पता चल गया तो उनकी और उनके परिवार की प्रतिष्ठा को नुकसान होगा, एक व्यापक धारणा है कि कैंसर, विशेष रूप से निजी अंगों (स्तन और जननांग) में, "बुरे" और "अनैतिक व्यवहार" से जुड़ा हुआ है जो गलत है इस बारे में सामाजिक जागरूकता की जरूरत है ।

अध्यक्ष सुनील यादव ने बताया कि अच्छी मार्गदर्शक पुस्तिकायें, निदान के लिए उपयुक्त उपकरण का विकास और उपयोग, उचित कार्यान्वयन और पर्याप्त मानव संसाधनों की उपलब्धता से मरीजों की स्क्रीनिंग ससमय किया जाना आसान हो सकेगा। हम सभी का कर्तव्य है*समय पर जांच और निदान,जागरूकता अभियान चलाएं । प्रारंभिक लक्षणों को नज़रअंदाज न करें, यदि लक्षण दिखाई देते हैं, तो जल्द से जल्द चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। इसके साथ ही ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित महिलाओं को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक सहयोग/ समर्थन की भी आवश्यकता होती है। परिवार और समाज का सहयोग उन्हें इस कठिनाई से उबरने में मदद कर सकता है।

आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल लगभग 1.6 लाख नए ब्रेस्ट कैंसर के मामले सामने आते हैं। यह संख्या तेजी से बढ़ रही है, और वर्ष 2025 तक इसके मामलों में और वृद्धि की आशंका है।हर साल लगभग 87,000 महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर के कारण अपनी जान गंवाती हैं। मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण कैंसर का देर से निदान होना है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में इसका पता उन्नत चरणों में चलता है।भारत में ब्रेस्ट कैंसर के मामलों का विश्व में लगभग 14% हिस्सा है। भारत उन देशों में शामिल है जहां महिलाओं में इस कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

 भारत में ब्रेस्ट कैंसर का औसत आयु 40-50 वर्ष है, जो पश्चिमी देशों की तुलना में कम है, जहां यह औसत 50-60 वर्ष के आसपास है। यह इंगित करता है कि भारत में युवा महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा अधिक है। शहरी क्षेत्रों में ब्रेस्ट कैंसर के मामले अधिक हैं, क्योंकि यहां जीवनशैली से जुड़े जोखिम अधिक होते हैं। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण निदान और इलाज में देरी होती है, जिससे मृत्यु दर अधिक होती है। अगर ब्रेस्ट कैंसर का शुरुआती चरण में निदान हो जाता है, तो 5 साल तक जीवित रहने की दर 80% से अधिक होती है। लेकिन उन्नत चरणों में निदान होने पर यह दर घटकर 20-40% तक आ जाती है।फेडरेशन ने बताया कि माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा शुरू किए गए ' आयुष्मान भारत' योजना से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत निशुल्क इलाज किया जाता है ।इसके अलावा माननीय जनप्रतिनिधि गण एवं माननीय मुख्यमंत्री जी के द्वारा विशेष सहायता देते हुए ऐसे पेशेंट का इलाज कराया जा सकता है। घबराएं नहीं, पूरा समाज कैंसर पेशेंट के साथ खड़ा रहेगा । 
Pharmacist Federation द्वारा विभिन्न जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी सहभागिता की जा रही है ।

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