वाणी मेरी तुम क्या रोकोगे, बात खरी को तुम क्या टोकोगे।

Why can you stop my words, why can you interrupt when I say the truth.
 
Why can you stop my words, why can you interrupt when I say the truth.
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)। नवोदय साहित्यिक एंव सांस्कृतिक संस्था, लखनऊ का, एक बृहद कवि सम्मेलन, भारत महोत्सव, स्मृति उपवन, बँगला बाजार, लखनऊ के उदघाटन दिवस पर,आचार्य ओम नीरव जी की अध्यक्षता में वरिष्ठ कवि डा शिव मंगल सिंह मंगल जी के संचालन में सम्पन्न हुआ।  सरस्वती वंदना प्रतिभा श्रीवास्तव जी द्वारा की गयी।

सभी कवियों, श्रोताओं व भारत महोत्सव के आयोजक मण्डल का आभार, संस्था के संस्थापक कवि अष्ठाना महेश प्रकाश द्वारा। 
सहभागी कवि 
अष्ठाना महेश प्रकाश, 
वाणी मेरी तुम क्या रोकोगे
बात खरी को तुम क्या टोकोगे।

सरवर लखनवी जी,
मंज़िल की जुस्तजू में भटकना बहुत पड़ा
ख़ामोश रह के तुझको पुकारा कभी कभी

आचार्य ओम नीरव जी
प्रति दिन तड़पाती रही, अति दुखदायी नींद|
आते ही सुधि आपकी, मीठी आयी नींद|

शिव नाथ सिंह जी, रायबरेली,
महेन्द्र कुमार विश्वकर्मा जी,  उन्नाव 
अभिषेक अष्ठाना जी, उन्नाव 
दीप चन्द्र गुप्ता डी, फतेहपुर 

राम  शंकर वर्मा जी,
कृपा शंकर श्रीवास्तव जी,
बन्द करना बिल जरूरी, पालना बिल्ली नहीं।

नरेन्द्र भूषण जी,
थी अकड़ हर शख्स है मेरी तरफ

दीन बंधु आर्य जी,
मेरी गुरवत का शिला ये दे रही है

शीला वर्मा मीरा जी,
पकड़ कर के उंगली है हिम्मत दिलाई
जो मेहनत से अपनी है क़िस्मत बनाई
बड़ा मन है बोझिल ये समझो ज़रा तुम
हैं क्यों बेटियां ये अमानत पराई


गोपाल ठहाका जी, हरदोई 
कागा जैसे हो गए हम सबके अब बोल।
कद्दू लम्बे हो गए  लौकी हॅ गई गोल।।

इरशाद राही जी,
बात कुछ भी ना थी बात ही बात में।
कौरबतो में  बहुत फासला हो गया।।

अमर जी विश्वकर्मा जी
कोई शिकवा नहीं है बोसे का।
कत्ल उसने किया भरोसे का।।
उपमा आर्य जी,
पता ज़िन्दगी का कहाँ छोड़ आये।
कहाँ तुम मेहरबां निशा छोड़ आये।।

विभा प्रकाश जी, 

गिरधर खरे जी,

अनुसुभा सिंह जी,
बेटो से कम नहीं है आजकल की बेटियाँ

प्रमोद श्रीवास्तव  जी,
हाय ना समझे। व्यंग ना समझे,ना समझे मगर 

प्रतिभा श्रीवास्तव जी,
इस से बढ़कर दुनिया में कहीं भी

ऋषी श्रीवास्तव जी,
उनके हाथों में माहताब था और। 
हम चिरागों की बात कर आए।।

टेक सिंह गौतम जी,
आपको देखकर कुछ भी देखा नहीं
देखने को बहुत कुछ था देखा नहीं।।

स कुलजीत सिंह जी,
जुदाई का सदमा भुलाता तो जा

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