वीर निर्वाण संवत 2552 महावीर स्वामी का मोक्ष प्रदाता ज्योति पर्व — दीपावली
Veer Nirvana Samvat 2552 Mahavir Swami's festival of salvation—Diwali
Sun, 19 Oct 2025

(इंजी. अरुण कुमार जैन – विभूति फीचर्स)
दीपावली का नाम आते ही भारतीयों के मन में प्रेम, उल्लास और अपनत्व की रंगीन छटा बिखर जाती है। घरों की सफाई, रंग-रोगन, दीवारों पर सजावट, गोबर से लिपाई-पुताई, नई सजावट, मिठाइयों की खुशबू और दीपों की जगमगाहट — सब मिलकर इस पर्व को विशेष बना देते हैं। यही दीपावली जैन समाज के लिए और भी पवित्र बन जाती है, क्योंकि यह दिन भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष प्राप्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन जैन अनुयायी प्रातःकाल मंदिरों में जाकर निर्वाण कांड का पाठ करते हैं, निर्वाण लाडू चढ़ाते हैं और प्रभु महावीर के प्रधान गणधर गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने की खुशी में दीप प्रज्वलित करते हैं। जैन परंपरा में दीपावली केवल प्रकाश का त्योहार नहीं, बल्कि मोक्ष, ज्ञान और अहिंसा की ज्योति का पर्व है।
भगवान महावीर का जीवन और संदेश
भगवान महावीर स्वामी का जन्म लगभग 2624 वर्ष पूर्व वैशाली के कुंडलपुर में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर हुआ था। उनके जन्म से पहले रानी त्रिशला ने 16 शुभ स्वप्न देखे, जो संकेत थे कि यह बालक विश्व को धर्म, अहिंसा और सत्य का मार्ग दिखाएगा।
राजसी वैभव में पले-बढ़े वर्धमान महावीर ने मात्र 32 वर्ष की आयु में संपूर्ण सांसारिक मोह त्यागकर संन्यास ले लिया। उन्होंने 12 वर्षों तक कठोर तप और ध्यान किया — जंगलों, श्मशानों और निर्जन स्थलों में निडरता से विचरण करते हुए उन्होंने अहिंसा, संयम और आत्मशुद्धि के मार्ग का अनुसरण किया।
इस तपस्या के दौरान वे हिंसक पशुओं, डाकुओं और दुर्जनों से मिले, लेकिन अपनी करुणा और धैर्य से उन्होंने सबके हृदय बदल दिए। उन्होंने संसार को सिखाया कि सच्चा बल त्याग, क्षमा और करुणा में निहित है।
ज्ञान और देशना
12 वर्ष की कठोर साधना के बाद भगवान महावीर को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। राजगृह के विपुलाचल पर्वत पर उनकी प्रथम समवसरण सभा आयोजित हुई, जहाँ सभी जीव – देव, मनुष्य और पशु – अपनी-अपनी भाषा में उनकी दिव्य वाणी को समझ पाते थे। उनके शिष्य गौतम गणधर स्वामी के माध्यम से जैन दर्शन की देशना पूरे विश्व में फैली।
भगवान महावीर ने 30 वर्षों तक पूरे भारत में भ्रमण कर अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, और आत्मसंयम का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि आत्मा की शुद्धि ही मोक्ष का पथ है, और मनुष्य अपने कर्मों से ही बंधन या मुक्ति प्राप्त करता है।
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मोक्ष प्राप्ति और दीपावली का महत्व
कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन, आज से 2552 वर्ष पूर्व, भगवान महावीर ने पावापुरी (बिहार) में मोक्ष पद प्राप्त किया। उनके मोक्ष के साथ ही उनके प्रमुख शिष्य गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। जैन अनुयायी इस क्षण को मोक्ष कल्याणक दिवस के रूप में मनाते हैं।
किंवदंती है कि जब प्रभु महावीर का अंतिम संस्कार हुआ, तो उनके अनुयायियों ने उस पवित्र धरा की धूल अपने साथ ले जाने की इच्छा की। परिणामस्वरूप वह स्थल एक विशाल सरोवर में परिवर्तित हो गया, जिसे आज पावापुरी जल मंदिर के रूप में जाना जाता है। वहाँ आज भी दीपावली की भोर में हजारों भक्त निर्वाण लाडू चढ़ाते हैं और श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।
राजस्थान के श्री महावीर जी तीर्थ में भी श्रद्धालु इस दिन प्रभु की आराधना करते हैं। कहा जाता है कि वहाँ स्थापित महावीर स्वामी की मूर्ति के दर्शन मात्र से मन को असीम शांति और आत्मिक बल की अनुभूति होती है।
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जैन परंपरा में दीपावली का संदेश
जैन समाज दीपावली पर पटाखे नहीं जलाता, क्योंकि यह अहिंसा का पर्व है। इस दिन प्राणियों की रक्षा, मौन साधना, ध्यान और पूजा की जाती है। दीपक जलाकर भक्त महावीर स्वामी और गौतम स्वामी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
यह पर्व केवल धर्म का नहीं, बल्कि प्रेम, करुणा, स्नेह और आत्मज्ञान का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि जब भीतर ज्ञान का दीपक जलता है, तो अज्ञान का अंधकार स्वतः मिट जाता है।
संदेश
दीपावली के पवित्र अवसर पर कामना है कि
संसार के प्रत्येक जीव के मन में प्रेम, मैत्री, सेवा और करुणा की ज्योति प्रज्वलित रहे।
अहिंसा का प्रकाश विश्व में फैले,
और हर हृदय में शांति, सहयोग और सद्भाव की भावना जागृत हो।
ज्योति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!

