ग्राम संकल्प सबको मिलकर पूरा करना है, कच्चा माल का पक्का गांव में ही होवे: विमला बहन

चावल।कूटने के मिल लग गए जिससे घर घर चावल जो कूटा जाता था वह बंद होना स्वाभाविक था। इस तरह से धीरे धीरे सारे ग्रामोद्योग एक एक करके डूबते गए। हिंदुस्तान में यह प्रक्रिया बड़ी तेजी से चली।उसे रोकने के लिए सरकार ने 1956 में खादी_ ग्रामोद्योग आयोग भी बनाया। लेकिन उनकी हलचलें अंगुठेभर जल में मछली के फड़फड़ाने जैसी ही है।कारण अरबों रुपए केंद्रित उद्योग और कारखानों पर खर्च हो रहे हैं और उससे बहुत कम खादी ग्रामोद्योग पर खर्च हुए। बाबा विनोबा को प्रथम पंचवर्षीय योजना की पहली बैठक के लिए दिल्ली बुलाया गया था जिसमें शामिल होने बाबा पैदल गए थे। उन्होंने योजना आयोग के सामने यह बात रखी थी
कि गांवों में जो कच्चा माल पैदा होता है,उसका वहीं पक्का करने का इंतजाम होना चाहिए।तभी भारत के गांव टिक सकेंगे. विमला बहन ने कहा कि कच्चा माल खेतों में तैयार करना और उसे पक्का करने के लिए शहर ले जाना। यह योजना गांव के लिए तारक नहीं, बल्कि मारक है। रुई गांव में पैदा होती है,तो कपड़ा भी गांव में ही बनना चाहिए।गन्ना गांव में पैदा होता है तो उससे गुड़ वहीं बनना चाहिए।फिर भले ही उसे सुधरे हुए औजारों से बनाएं।ऐसा नहीं करेंगे तो देश में हर व्यक्ति को रोजगार दिलाना संभव नहीं होगा। लेकिन सरकार में यह सब करने की हिम्मत ही नहीं है और न वह ऐसा करने का मन बना पा रही है।
इसलिए गांव वालों को स्वयं अपनी योजना बनानी चाहिए।ग्रामदान की नींव पर ही ग्रामोद्योग खड़े करने चाहिए।अन्यथा हम गांव में ग्रामोद्योग चलाएंगे,अंबर चरखा चलाएंगे,पर उस सूत का कपड़ा ही इस्तेमाल नहीं करेंगे तो उसे बेचने भी तो शहर ही जाना पड़ेगा और सरकारी मदद भी वगैरह मांगनी पड़ेगी। फिर वह कपड़ा नहीं खप पाएगा।तो सरकार भी इस व्यवसाय को बंद कर देगी। इसलिए हम सब सूत कातकर गांव में ही कपड़ा बनाएंगे और उस कपड़े का हम ही उपयोग करेंगे ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए।तभी ग्रामोद्योग टिक सकेगा।ग्रामोद्योग ग्राम संकल्प पर आधारित होने चाहिए। जब ग्रामोद्योग ग्राम स्वराज्य का एक अंग और संकल्पसिद्धि का साधन मानकर चलाएंगे तभी वे टिक सकेंगे।