भारत–बांग्लादेश रिश्तों में बढ़ता तनाव: आखिर ढाका क्या चाहता है?
आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे पड़ोसी देश की, जिसके साथ भारत के रिश्ते कुछ साल पहले तक लगभग परफेक्ट थे, लेकिन अब लगातार तनाव बढ़ता जा रहा है। हाँ, हम बात कर रहे हैं बांग्लादेश की। शेख़ हसीना के सत्ता से हटने के बाद से ही भारत-बांग्लादेश रिश्तों में दरार आने लगी है। और अब फरवरी 2026 में होने वाले चुनाव से पहले ये दरार और गहरी हो गई है। तो सवाल ये है – आखिर बांग्लादेश भारत से चाहता क्या है? और चुनाव के बाद क्या हालात और मुश्किल हो सकते हैं? चलिए, स्टेप बाय स्टेप समझते हैं।
पहले थोड़ा बैकग्राउंड समझ लेते हैं। 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में छात्रों के बड़े आंदोलन के बाद शेख़ हसीना को देश छोड़कर भारत आना पड़ा। उसके बाद मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार सत्ता में आई। इस सरकार के आने के बाद से ही भारत के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है। क्यों? क्योंकि बांग्लादेश की नई लीडरशिप का मानना है कि पिछले 15 सालों में शेख़ हसीना ने भारत के साथ बहुत करीबी रिश्ते बनाए थे। और अब वो इसे 'भारत-समर्थक' या 'भारत की पुपेट' कहकर देखते हैं।
अब सबसे बड़ा ट्रिगर क्या बना? 12 दिसंबर 2024 को ढाका में 32 साल के युवा शरीफ़ उस्मान हादी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हादी शेख़ हसीना के खिलाफ आंदोलन में शामिल थे और 12 फरवरी 2026 के चुनाव की तैयारी कर रहे थे। उनकी हत्या के बाद सोशल मीडिया पर अफवाह फैली कि हमलावर भारत भाग गए। बस यहीं से आग भड़क गई। ढाका में Indian High Commission के बाहर भीड़ जमा हो गई। नेशनल सिटिज़न पार्टी के लीडर हसनत अब्दुल्लाह ने Indian High Commissioner को देश से निकालने की मांग की।
यहाँ तक कि चटगांव, राजशाही, खुलना और सिलहट में भारत के सहायक high commissions के बाहर भी प्रदर्शन हुए। इतना कि एक दिन के लिए वीज़ा सेंटर बंद करना पड़ा। भारत ने तुरंत बांग्लादेश को चेतावनी दी – अपने मिशनों की सुरक्षा सुनिश्चित करो। दिल्ली में बांग्लादेश के राजदूत को तलब किया गया। लेकिन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का कहना है कि उनके पास कोई सबूत नहीं है कि हमलावर भारत गए, और भारत को उनके चुनाव में दखल देने की ज़रूरत नहीं है।
अब सबसे बड़ा पॉइंट – शेख़ हसीना। वो अगस्त 2024 से भारत में हैं। बांग्लादेश की अदालत ने उन्हें मौत की सज़ा सुनाई है। अंतरिम सरकार बार-बार भारत से कह रही है – उन्हें extradition करो। भारत ने अभी तक हामी नहीं भरी। इसी वजह से बांग्लादेश में नाराज़गी और बढ़ गई है।
अब 12 फरवरी 2026 को बांग्लादेश में चुनाव होने हैं। भारत का कहना है – हम चाहते हैं कि चुनाव Peaceful, Fair, Inclusive और Reliable हों। 'समावेशी' का मतलब है कि शेख़ हसीना की अवामी लीग को भी चुनाव लड़ने की इजाज़त मिले। लेकिन अंतरिम सरकार ने अवामी लीग पर ही बैन लगा दिया है। भारत को डर है कि अगर बीएनपी या कोई और पार्टी सत्ता में आई, तो वो पुरानी तरह से भारत-विरोधी रुख़ अपना सकती है, क्योंकि बीएनपी की लीडर ख़ालिदा ज़िया के समय भारत के साथ रिश्ते हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं।
अब सुनिए भारत के बड़े एक्सपर्ट्स क्या कह रहे हैं। former foreign secretary निरूपमा राव ने कहा – शेख़ हसीना कोई क्रांतिकारी नहीं थीं, वो एक स्थिर शक्ति थीं। उन्होंने जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी तत्वों को कंट्रोल में रखा। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की। और बांग्लादेश को आर्थिक और भू-राजनीतिक रूप से मज़बूत बनाया।
द हिन्दू के स्टैनली जॉनी ने लिखा – हसीना के पतन से जो खालीपन पैदा हुआ, उसे चरमपंथी तत्व भर रहे हैं। जमात को मुख्यधारा में लाया जा रहा है। अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं। ये क्रांति नहीं, ये काउंटर-रिवोल्यूशन है। जुलाई–अगस्त 2024 में जो हुआ, वह कोई क्रांति नहीं थी, वह एक प्रति-क्रांति (काउंटर-रिवोल्यूशन) थी. ख़ुद देख लीजिए कि 'नया बांग्लादेश' कैसा दिखता है. यूनुस को भूल भी जाएँ, तो चुनाव के बाद आने वाली अगली सरकार को भी नफ़रत और ग़ुस्से से भरी सड़कों के बीच देश को स्थिर करने में भारी मुश्किल होगी. लंबे समय तक अस्थिरता और हिंसा के लिए तैयार रहिए.''
लेकिन बांग्लादेश के analyst यूसुफ़ ख़ान कहते हैं – सारी ज़िम्मेदारी शेख़ हसीना की है। उन्होंने 15 साल तक डर का माहौल बनाया। विपक्ष को कुचला। चुनावों में धांधली की। मीडिया को दबाया। अब जो गुस्सा फूट रहा है, वो उसी का नतीजा है।
तो दोस्तों, सच्चाई ये है कि बांग्लादेश भारत से चाहता है – शेख़ हसीना का extradition मतलब जिसमें एक देश किसी व्यक्ति को दूसरे देश को सौंप देता है ताकि उस पर अनुरोध करने वाले देश में किए गए अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सके, अपने आंतरिक मामलों में दखल न देना, और शायद एक 'न्यूट्रल' रुख़। लेकिन भारत के लिए ये आसान नहीं है। बांग्लादेश हमारा सबसे करीबी पड़ोसी है। हमारे लिए ये देश stable होना बहुत ज़रूरी है। अगर फरवरी 2026 के चुनाव में बीएनपी या कोई नया गठबंधन सत्ता में आया, तो रिश्ते और खराब हो सकते हैं। और अगर instability बढ़ी, तो इसका असर भारत की सुरक्षा, सीमा और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। आपको क्या लगता है – आने वाले समय में भारत-बांग्लादेश रिश्ते सुधरेंगे या और बिगड़ेंगे? कमेंट में ज़रूर बताइए।
