लक्ष्मी जी कब प्रसन्न होती हैं? सिर्फ पूजा नहीं, चरित्र में छिपा है स्थायी समृद्धि का रहस्य

When is Goddess Lakshmi pleased? The secret to lasting prosperity lies not in worship but in character.
 
When is Goddess Lakshmi pleased? The secret to lasting prosperity lies not in worship but in character.

(रामकुमार तिवारी - विनायक फीचर्स)

हर हिंदू धर्मावलंबी दीपावली के दिन सुख, समृद्धि और वैभव की अभिलाषा लेकर माता लक्ष्मी का पूजन करता है। आतिशबाजी, मिठाई और जगमगाहट से रात आलोकित होती है, मन में धनवान बनने और दरिद्रता दूर करने की तीव्र इच्छा होती है।

लेकिन क्या केवल एक दिन की पूजा, आराधना और आडंबर से ही माता लक्ष्मी को प्रसन्न किया जा सकता है? क्या केवल दीपावली पर भक्ति-भावना दिखा देने से धन-कुबेर बना जा सकता है? इन सवालों का जवाब स्वयं माता लक्ष्मी ने दिया है, जिसका वर्णन पौराणिक ग्रंथों में मिलता है।

माता लक्ष्मी का स्थायी निवास कहाँ है?

एक बार रुक्मिणी जी ने माता लक्ष्मी से पूछा कि वे कहाँ विराजमान रहती हैं और कहाँ नहीं। माता लक्ष्मी ने इसका उत्तर देते हुए स्पष्ट किया कि उनका निवास आडंबर में नहीं, बल्कि मानवीय गुणों और सद्चरित्र में है।

जहाँ लक्ष्मी जी रहती हैं:

  • पुरुषों में: मैं सुंदर, मधुरभाषी, चतुर, कर्तव्य में लीन, क्रोधहीन, भगवत परायण, कृतज्ञ, जितेंद्रिय और बलशाली पुरुषों के पास रहती हूँ। मैं स्वधर्म का आचरण करने वाले, धर्म की मर्यादा जानने वाले, दीन-दुखियों की सेवा करने वाले, आत्मविश्वासी, क्षमाशील और समर्थ पुरुषों के साथ बनी रहती हूँ।

  • स्त्रियों में: जो स्त्रियाँ पति परायणा, सत्यवादी, निष्कपट, सरल स्वभाव संपन्न तथा सत्याचरण परायणा हैं, वे मुझे पसंद हैं। मैं सदा हंसमुख, सौभाग्ययुक्त, गुणवती और कल्याण कामनी स्त्रियों के पास रहना पसंद करती हूँ।

  • उद्योग: सबसे महत्वपूर्ण यह कि, 'उद्योगिनं पुरूषसिंह मुपैति लक्ष्मी:'—अर्थात उसी पुरुष को लक्ष्मी प्राप्त होती है, जो उद्योग परायण होता है।

जहाँ लक्ष्मी जी कभी नहीं ठहरतीं:

माता लक्ष्मी उन स्थानों और व्यक्तियों का त्याग करती हैं जो निम्न अवगुणों से युक्त होते हैं:

  • अनैतिक आचरण: मिथ्यावादी, धर्मग्रंथों को कभी न देखने वाला, पराक्रम से हीन, सत्य से हीन, धरोहर छीनने वाला, विश्वासघाती, कृतघ्न पुरुष।

  • नकारात्मकता: चिंताग्रस्त, भय में डूबे हुए, पातकी, कर्जदार, अत्यंत कंजूस, दीक्षाहीन, शोकग्रस्त, मंदबुद्धि और स्त्री के गुलाम।

  • आलस्य और दुर्गुण: कटुभाषी, कलह प्रिय, अकर्मण्य, आलसी, नास्तिक, उपकार को भुला देने वाले, चोर, ईर्ष्या, द्वेष और डाह रखने वाले।

  • अस्वच्छता: गंदे वस्त्र पहनने वाले, शरीर को स्वच्छ न रखने वाले, और सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सोने वाले व्यक्तियों को लक्ष्मी जी त्याग देती हैं।

सच्ची लक्ष्मी पूजा का संकल्प

धार्मिक ग्रंथों के इस विवरण का सार यह है कि केवल दीपावली पर पूजन कर लेना ही पर्याप्त नहीं है। स्थायी समृद्धि और वैभव के लिए हमें माता लक्ष्मी को प्रिय गुणों को अपने चरित्र और दैनिक क्रियाओं में अपनाने का संकल्प लेना चाहिए, और अप्रिय अवगुणों को सदा के लिए त्याग देना चाहिए।

  • धन का सदुपयोग: माता लक्ष्मी की प्रसन्नता तब बढ़ती है जब धन का सदुपयोग समाज, व्यक्ति और देश हित में होता है। धर्मशाला में प्याऊ बनवाना, वृक्ष लगाना, स्कूल, अस्पताल, वृद्धाश्रम आदि के लिए दान देना सच्ची लक्ष्मी पूजा है।

  • दुरूपयोग से बचें: धन का दुरुपयोग, शान-शौकत, दिखावा, विलासिता, कंजूसी, बुरे कार्यों में खर्च या धनवान होकर निर्धन पर अत्याचार करना माता लक्ष्मी का अपमान है।

अटल सत्य: हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि पुण्य से कमाया धन ही जीवन में सुख-समृद्धि देता है; पापयुक्त धन एक दिन सर्वनाश करता ही है।

इसलिए, 'भव क्रियापरो नित्यम्'—अर्थात, हे पुरुषों! तुम सदा सद्कर्म में तत्पर रहो, खाली मत बैठो, और लक्ष्मी माता के निवास के अनुकूल वातावरण निर्मित करो। धन हो तो व्यापार करो, थोड़ा हो तो खेती करो, कुछ न हो तो नौकरी करो, परंतु भीख कभी नहीं मांगनी चाहिए, क्योंकि सुपात्र के यहां माता लक्ष्मी स्वयं चलकर अवश्य आती हैं।

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