Which railway tracks are blocked by farmers ? : एक बार फिर सड़को पर उतरेंगे किसान, पंजाब के कई रेलवे ट्रैक पर होगा आंदोलन, मांग नहीं हुई पूरी तो 8 मई को नाकाबन्दी की चेतवानी

 
Are trains affected by farmer protests ?

एक बार फिर से देश में किसान आंदोलन की हलचल तेज हो गई है। पंजाब और हरियाणा के किसान अपनी मांगों को लेकर फिर से सड़कों और रेलवे ट्रैक पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं। जी हां, किसान यूनियनों ने ऐलान कर दिया है कि 7 मई 2025 को वो रेल रोको आंदोलन करेंगे, और अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो 8 मई से नाकाबंदी की भी चेतावनी दी गई है। लेकिन सवाल ये है कि आखिर किसान ऐसा क्यों करने जा रहे हैं? उनकी मांगें क्या हैं? और इस आंदोलन का असर आप और हमारे जैसे आम लोगों पर क्या होगा ? इस वीडियो में हम इस पूरे मामले को गहराई से समझेंगे, किसानों की मांगों को डिकोड करेंगे, और जानेंगे कि ये आंदोलन देश की सियासत को कैसे influence  कर सकता है। तो चलिए, शुरू करते हैं!

पिछले कुछ सालों से किसान आंदोलन देश की सुर्खियों में रहा है। 2020-21 में तीन agricultural laws के against  शुरू हुआ आंदोलन हो या फिर 2024 में शंभू और खनौरी बॉर्डर पर चला किसान आंदोलन  किसानों ने हर बार अपनी मांगों को लेकर सरकार को कड़ी चुनौती दी है। अब एक बार फिर से संयुक्त किसान मोर्चा  और किसान मजदूर मोर्चा जैसे organizations ने 7 मई 2025 को देशभर में रेल रोको आंदोलन का ऐलान किया है। 
 
इस आंदोलन को lead कर रहे किसान नेता सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह डल्लेवाल ने साफ कहा है कि केंद्र सरकार उनकी मांगों को लगातार नजरअंदाज कर रही है। पंढेर ने हाल ही में पंजाब के 13 हजार गांवों से लोगों को इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की है। उन्होंने कहा कि दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक पंजाब के सभी प्रमुख रेलवे ट्रैक जाम किए जाएंगे। अगर सरकार ने उनकी बात नहीं मानी, तो 8 मई से नाकाबंदी शुरू हो सकती है।  
लेकिन ये आंदोलन अचानक से क्यों शुरू हो रहा है? दरअसल, किसानों का कहना है कि उनकी मांगें वही हैं, जो पिछले कई सालों से अनसुनी पड़ी हैं। आइए, उनकी मांगों पर एक नजर डालते हैं।  

किसानों की मांगें कोई नई नहीं हैं। ये वही मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर वो सालों से सड़कों पर हैं। इन मांगों को एक-एक करके समझते हैं:  
एमएसपी की कानूनी गारंटी: किसानों की सबसे बड़ी मांग है कि सभी फसलों पर MSP की कानूनी गारंटी दी जाए। उनका कहना है कि बिना एमएसपी के उनकी फसलें घाटे में बिकती हैं, जिससे उनकी financial condition खराब हो रही है। एक assessment के according , 2022 में एमएसपी न मिलने से किसानों को 15 लाख करोड़ और 2023 में लगभग 8. 5  लाख करोड़ का नुकसान हुआ।  

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करना: किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं, जिसमें फसलों की लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देना शामिल है।  किसानों का कहना है कि कर्ज के बोझ तले दबे होने की वजह से हर दिन करीब 50 किसान और मजदूर suicide कर रहे हैं। वो चाहते हैं कि उनका पूरा कर्ज माफ किया जाए।  

 2021 में लखीमपुर खीरी में हुए हिंसक प्रदर्शन में चार किसानों की मौत हो गई थी। किसानों का आरोप है कि इस मामले में अभी तक दोषियों को सजा नहीं मिली।  2024 में शंभू बॉर्डर पर आंदोलन के दौरान कई किसान नेताओं को arrest  किया गया था, जिनमें नवदीप सिंह जलवेड़ा जैसे नाम शामिल हैं। किसान इनकी तुरंत रिहाई की मांग कर रहे हैं।  

साथ ही किसानों पर दर्ज मामले वापस लेना: दिल्ली और अन्य जगहों पर आंदोलन के दौरान कई किसानों पर केस दर्ज किए गए। किसान चाहते हैं कि इन मामलों को वापस लिया जाए।  

इन मांगों को लेकर किसानों ने कई बार Central government से बातचीत की कोशिश की, लेकिन उनका कहना है कि सरकार सिर्फ Assurance देती है, कोई ठोस कदम नहीं उठाती।  

7 मई 2025 को होने वाला रेल रोको आंदोलन पंजाब के कई इलाकों में होगा। किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने बताया कि दिल्ली-अमृतसर, दिल्ली-जम्मू, दिल्ली-जालंधर, और दिल्ली-फिरोजपुर जैसे प्रमुख रेल रूट्स को टारगेट किया जाएगा। पंजाब के 23 से ज्यादा स्थानों पर रेलवे ट्रैक जाम करने की योजना है।  

पिछले रेल रोको आंदोलनों को देखें, तो इनका असर काफी Comprehensive रहा है। उदाहरण के लिए, 15 फरवरी 2024 को हुए रेल रोको आंदोलन में अंबाला-लुधियाना रूट पर कई ट्रेनें रद्द हुई थीं, और यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था। इसी तरह, 18 दिसंबर 2024 को पंजाब में 23 जगहों पर रेलवे ट्रैक जाम किए गए थे, जिससे दिल्ली-अमृतसर रूट पर 50 से ज्यादा ट्रेनें प्रभावित हुई थीं।  

इस बार भी रेलवे अधिकारियों ने कहा है कि हालात के according  ट्रेनों के रूट डायवर्ट किए जाएंगे या कैंसिल किया जाएगा। खासकर पंजाब, हरियाणा, और हिमाचल प्रदेश से गुजरने वाली ट्रेनें सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी। अगर नाकाबंदी शुरू होती है, तो शंभू और खनौरी बॉर्डर पर हाईवे जाम होने से दिल्ली और आसपास के इलाकों में ट्रैफिक की समस्या बढ़ सकती है।  

लेकिन सवाल ये है कि क्या रेल रोको आंदोलन से किसानों की मांगें पूरी होंगी? या फिर ये सिर्फ आम लोगों के लिए परेशानी बढ़ाएगा ?  

इस आंदोलन को लेकर सोशल मीडिया, खासकर X पर, अलग-अलग feedback  देखने को मिल रहे  हैं। कुछ लोग किसानों के हक में हैं, तो कुछ इसे देश के लिए गलत समय बता रहे हैं। X पर कई यूजर्स ने लिखा है कि जब देश बाहरी खतरों से जूझ रहा है, ऐसे में रेल रोको आंदोलन सेना के उपकरणों के परिवहन को प्रभावित कर सकता है। वहीं, किसान नेताओं का कहना है कि उनकी मांगें जायज हैं, और सरकार की अनदेखी ने उन्हें मजबूर किया है। सरवन सिंह पंढेर ने कहा, "हमारा साथी जगजीत डल्लेवाल खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर बैठा है, और उसकी हालत नाजुक है। सरकार को अब नींद से जागना होगा।"  

साथ ही  हरियाणा के Home Minister अनिल विज ने कहा था कि किसान केंद्र से बात करना चाहते हैं, लेकिन सरकार पहले ही कई बार बातचीत के लिए तैयार दिख चुकी है। दूसरी तरफ, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान पर भी सवाल उठ रहे हैं कि वो किसानों के मुद्दों पर खामोश क्यों हैं।  

किसान आंदोलन का इतिहास बताता है कि जब किसान एकजुट होकर सड़कों पर उतरते हैं, तो सरकार को झुकना पड़ता है। 2021 में तीन कृषि कानूनों को वापस लेना इसका सबसे बड़ा example   है। लेकिन मौजूदा आंदोलन की राह इतनी आसान नहीं दिख रही। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक कमेटी बनाई है, जो किसानों और सरकार के बीच बातचीत कराने की कोशिश कर रही है। लेकिन जगजीत डल्लेवाल जैसे नेताओं ने इस कमेटी से बात करने से इनकार कर दिया है।  

अगर 7 मई का रेल रोको आंदोलन और 8 मई की नाकाबंदी होती है, तो इसका असर न सिर्फ rail traffic, बल्कि देश की economy और सियासत पर भी पड़ सकता है। लेकिन किसानों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी, वो पीछे नहीं हटेंगे।  

 किसान आंदोलन एक बार फिर से देश के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है। एक तरफ किसानों की जायज मांगें हैं, तो दूसरी तरफ आम लोगों की परेशानी और देश की सुरक्षा का मुद्दा। सवाल ये है कि क्या सरकार और किसान इसे  खत्म करने के लिए कोई बीच का रास्ता निकाल पाएंगे? या फिर ये आंदोलन और तेज  होगा ?  

आप क्या सोचते हैं? क्या किसानों की मांगें पूरी होनी चाहिए? या फिर इस आंदोलन का समय गलत है? अपनी राय हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं। 

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