बिहार में ‘नायक बनाम जननायक’ की जंग — तेजस्वी यादव पर पोस्टर पॉलिटिक्स गरमाई |

"बिहार की सियासत में इस वक्त एक ही सवाल गूंज रहा है — Who is the real hero?पटना की गलियों से लेकर राजनीतिक गलियारों तक, एक पोस्टर ने मचा दी है जबरदस्त हलचल!
आरजेडी ने तेजस्वी यादव को बताया ‘बिहार का नायक’, तो बीजेपी ने उन्हें करार दिया ‘खलनायक’।
कहीं ‘जननायक’ बनने की होड़ है, तो कहीं छवि बचाने की जंग। आखिर ये लड़ाई पोस्टर की है या पावर की? जानिए पूरी कहानी — बिहार की राजनीति के नए ‘नायक’ की!
पटना में आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) दफ्तर के बाहर एक पोस्टर लगा —पोस्टर में लिखा गया था: “बिहार का नायक – तेजस्वी यादव।”बस, इसके बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई।किसी ने तेजस्वी को “जननायक बनने की राह पर बताया,” तो किसी ने उन्हें “खलनायक” कहने में देर नहीं की। पोस्टर में इस्तेमाल हुआ “नायक” शब्द Now it has become the center of political discussion. तेजस्वी यादव फिलहाल बिहार की राजनीति में most famous face On one hand, he is the leader of the opposition, while on the other hand, his popularity among the youth is continuously increasing.वे खुद को बिहार के भविष्य के रूप में पेश कर रहे हैं — एक ऐसे नेता के तौर पर जो बेरोजगारी, शिक्षा और विकास की बात करता है। but now question arises है — क्या वे सिर्फ “नायक” हैं या “जननायक” बनने की कोशिश कर रहे हैं? Political anyalysts ka कहना है कि तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद यादव की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश में हैं, लेकिन अभी भी उन्हें public concerns से जुड़कर अपनी identity strong करनी होगी। आरजेडी के सीनियर नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा कि तेजस्वी को “जननायक” बनने में समय लगेगा।
उन्होंने साफ कहा, “तेजस्वी यादव, लालू यादव की विरासत हैं। वे उनकी राजनीति को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। public leader बनने के लिए जनता के दिल में जगह बनानी होती है — और ये एक दिन में नहीं होता।” उनका कहना है कि तेजस्वी अभी उस दिशा में बढ़ रहे हैं, लेकिन public leader ” कहलाने के लिए उन्हें और struggle करना होगा। तेजस्वी के बड़े भाई तेज प्रताप यादव ने भी इस पर अपनी राय दी।
जब उनसे मीडिया ने पूछा कि राहुल गांधी को “public leader और तेजस्वी को “नायक” कहा जा रहा है, तो उन्होंने कहा — “कर्पूरी ठाकुर जी, लोहिया जी, आंबेडकर जी और महात्मा गांधी जी ये लोग असली जननायक हैं….. जो लोग आज किसी को public leader बता रहे हैं, उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। लालू यादव जी की छत्रछाया राहुल गांधी और तेजस्वी जी दोनों पर है। उन्हें अपने बलबूते कुछ करके दिखाना होगा।” तेज प्रताप के इस बयान से साफ है कि आरजेडी परिवार के भीतर भी इस “जननायक” वाली उपाधि को लेकर मतभेद हैं। पोस्टर लगते ही बीजेपी ने इसे “छवि सुधार अभियान” करार दे दिया।\ बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा — “ये नायक नहीं, खलनायक हैं। विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए ऐसे ड्रामे कर रहे हैं। जब मुद्दे खत्म हो जाते हैं, तो लोग पोस्टरबाजी शुरू कर देते हैं।” बीजेपी के एक अन्य नेता ने कहा, “राहुल गांधी खुद को जननायक बता चुके हैं। अब तेजस्वी को लगा कि वे पीछे न रह जाएं, इसलिए खुद को नायक बता दिया।
ये सब नालायक राजनीति का हिस्सा है।” बीजेपी का कहना है कि विपक्ष केवल “पोस्टर राजनीति” कर रहा है, जबकि जनता असली मुद्दों से जुड़ी बात चाहती है — Like employment, development and law and order.\लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने भी इस विवाद पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा — “आप इतने बड़े हो गए हैं कि खुद को जननायक बताने लगे हैं? मुख्यमंत्री बने भी नहीं हैं और पहले से खुद को ‘जननायक’ कहने लगे हैं। जनता ही तय करेगी कौन नायक है और कौन नहीं।” चिराग पासवान ने कहा कि बिहार की राजनीति में असली public leader वो होता है
Who works for the public without any position or power. इस पूरे विवाद के बीच बिहार के असली “जननायक” की चर्चा भी जोर पकड़ रही है — कर्पूरी ठाकुर। कर्पूरी ठाकुर को बिहार की जनता ने “जननायक” की उपाधि दी थी। He worked for the poor, laborers and deprived sections throughout his life.उन्होंने भूमि सुधारों की शुरुआत की, आरक्षण नीति को लागू किया, और इसके लिए कड़ा विरोध भी झेला। मुख्यमंत्री रहने के बावजूद उन्होंने कभी अपने या अपने परिवार के लिए कुछ नहीं किया। वे जाति की राजनीति से ऊपर उठकर गरीबों और पिछड़ों के हक में काम करते रहे। This is the reasonकि आज भी बिहार की जनता उन्हें “जननायक कर्पूरी ठाकुर” के नाम से याद करती है।
बिहार की राजनीति में Now the politics of posters, slogans and titles has intensified.एक तरफ महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव को “नायक” के रूप में पेश कर रहे हैं, वहीं बीजेपी और एनडीए इसे “खलनायक राजनीति” बता रहे हैं। Political experts say that “आज की राजनीति में image सबसे बड़ा हथियार बन चुकी है। जनता सिर्फ काम नहीं देखती, बल्कि नेता की पहचान और उसके प्रतीक से भी जुड़ जाती है।” तेजस्वी यादव इस समय उस मोड़ पर हैं, जहां उन्हें अपने काम और नेतृत्व दोनों से जनता को यह दिखाना होगा कि वे सिर्फ “लालू यादव के बेटे” नहीं, बल्कि एक “स्वतंत्र नेता” हैं। बिहार में पोस्टर की इस राजनीति ने एक नई बहस को जन्म दिया है — क्या कोई नेता खुद को “जननायक” कह सकता है या जनता ही यह तय करती है? तेजस्वी यादव के लिए यह मौका है कि वे इस बहस को अपने हक में मोड़ें,
लेकिन इसके लिए उन्हें “पोस्टर राजनीति” से आगे बढ़कर Real growth, employment and good governance पर ध्यान देना होगा। क्योंकि कर्पूरी ठाकुर जैसे असली public leader बनने के लिए सिर्फ नारे नहीं, बल्कि जनता के बीच लगातार काम और विश्वास बनाना जरूरी है। ये थी बिहार की ताज़ा राजनीतिक कहानी — “hero vs public leader”। आने वाले चुनाव बताएंगे कि बिहार की जनता किसे अपना असली नायक मानती है — तेजस्वी यादव या फिर कोई और!
