क्या नेहरू की गलती से बना PoK? अमित शाह के बयान से उठे राजनीतिक और ऐतिहासिक सवाल
आज हम बात करेंगे एक ऐसे statement की, जिसने भारतीय संसद में तूफान ला दिया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा, "नेहरू की गलती की वजह से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) बना, और सरदार वल्लभभाई पटेल ने इसका विरोध किया था।" ये बयान न सिर्फ राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना, बल्कि इसने इतिहास के उन पन्नों को भी खोल दिया, जो आज तक controversial हैं।
तो, क्या वाकई नेहरू की नीतियों की वजह से PoK बना ? सरदार पटेल की क्या थी भूमिका ? और इस बयान का आज के राजनीतिक माहौल में क्या मतलब है? चलिए, इसे डिटेल से समझते हैं। अगर आप इतिहास, राजनीति, और भारत के अहम मुद्दों में interest रखते हैं, तो इस वीडियो को लास्ट तक देखें, लाइक करें, और चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें
6 दिसंबर 2023 को, संसद के winter session में, जम्मू-कश्मीर आरक्षण विधेयक और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पर चर्चा हो रही थी। इस दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की समस्या नेहरू की गलतियों की वजह से हुई। जब हमारी सेना जीत रही थी, तब नेहरू ने समय से पहले सीजफायर कर दिया। अगर तीन दिन और इंतजार किया होता, तो PoK आज भारत का हिस्सा होता।
शाह ने ये भी कहा कि नेहरू ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर एक और भूल की, जिसका खामियाजा भारत आज तक भुगत रहा है। उन्होंने दावा किया कि सरदार वल्लभभाई पटेल, जो उस समय गृह मंत्री थे, ने इस सीजफायर का विरोध किया था, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। इस बयान के बाद सदन में हंगामा मच गया। कांग्रेस सांसदों ने इसका कड़ा विरोध किया और "शेम-शेम" के नारे लगाए। कुछ सांसदों ने सदन से वॉकआउट भी किया। लेकिन शाह ने अपनी बात को और मजबूती से रखते हुए कहा कि PoK भारत का अभिन्न हिस्सा है और इसके लिए 24 सीटें जम्मू-कश्मीर विधानसभा में आरक्षित की गई हैं।
तो, आइए समझते हैं कि PoK बना कैसे? 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद, जम्मू-कश्मीर एक रियासत थी, जिसके शासक महाराजा हरि सिंह थे। पाकिस्तान ने कबायली हमलावरों के साथ मिलकर अक्टूबर 1947 में कश्मीर पर हमला कर दिया। महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय का फैसला किया और भारत ने अपनी सेना भेजी। 1947-48 के युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी कबायलियों और सेना को पीछे धकेलना शुरू किया। लेकिन 1 जनवरी 1948 को, नेहरू सरकार ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने का फैसला किया, जिसके बाद UN ने सीजफायर की मांग की। 1 जनवरी 1949 को सीजफायर लागू हुआ, जिसके तहत कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया, जिसे आज हम PoK कहते हैं।
अमित शाह का दावा है कि अगर नेहरू ने सीजफायर के लिए जल्दबाजी न की होती, तो भारतीय सेना पूरे कश्मीर को वापस ले सकती थी। उन्होंने यह भी कहा कि नेहरू ने यह फैसला तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन की सलाह पर लिया था।
लेकिन क्या सरदार पटेल ने वाकई इसका विरोध किया था? इतिहासकारों के अनुसार, सरदार पटेल ने कश्मीर मुद्दे को शुरू में प्राथमिकता नहीं दी थी, क्योंकि उनका फोकस भारत की अन्य रियासतों को एकजुट करने पर था। हालांकि, कुछ sources का कहना है कि पटेल ने सीजफायर और UN में मामला ले जाने के फैसले पर असहमति जताई थी।
सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन्हें "भारत का लौह पुरुष" कहा जाता है, उन्होंने 562 रियासतों को भारत में विलय कराने में अहम भूमिका निभाई। हैदराबाद और जूनागढ़ जैसे क्षेत्रों को भारत में शामिल करने के लिए उन्होंने कड़ा रुख अपनाया।
कश्मीर के मामले में, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पटेल नेहरू की तुलना में अधिक सख्त नीति अपनाना चाहते थे। कुछ दस्तावेजों के अनुसार, पटेल का मानना था कि कश्मीर का मसला सैन्य कार्रवाई से हल किया जाना चाहिए, न कि कूटनीतिक तरीके से। लेकिन चूंकि कश्मीर का मामला नेहरू के पास था, इसलिए पटेल की राय को प्राथमिकता नहीं दी गई।
हालांकि, यह भी सच है कि पटेल और नेहरू के बीच कई मुद्दों पर मतभेद थे, लेकिन दोनों ने मिलकर भारत के एकीकरण के लिए काम किया। अमित शाह का बयान इस ऐतिहासिक मतभेद को उजागर करता है, लेकिन इसे पूरी तरह से तथ्य मानना मुश्किल है, क्योंकि इस पर अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं।
अमित शाह के इस बयान पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने की कोशिश है। कांग्रेस का कहना है कि नेहरू ने उस समय के हालात को देखते हुए UN में मामला ले जाने का फैसला किया, क्योंकि भारत एक नवस्वतंत्र देश था और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन जरूरी था।
कांग्रेस ने यह भी कहा कि शाह का बयान नेहरू और कांग्रेस की विरासत को बदनाम करने की साजिश है। पार्टी ने दावा किया कि नेहरू ने कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। इसके अलावा, विपक्षी दलों ने शाह के बयान को राजनीतिक स्टंट करार दिया और कहा कि यह मौजूदा सरकार की नाकामियों से ध्यान हटाने की कोशिश है।
अमित शाह का यह बयान सिर्फ इतिहास की बहस तक सीमित नहीं है। यह वर्तमान सरकार की कश्मीर नीति को भी रेखांकित करता है। 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद, सरकार ने दावा किया कि यह कश्मीर को पूरी तरह भारत में एकीकृत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। शाह ने अपने भाषण में यह भी कहा कि PoK भारत का अभिन्न हिस्सा है और इसे वापस लेने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।
यह बयान BJP की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें वह कांग्रेस की ऐतिहासिक नीतियों को निशाना बनाकर अपनी राष्ट्रवादी छवि को मजबूत करना चाहती है। दूसरी ओर, विपक्ष इसे इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाता है। PoK आज भी एक संवेदनशील मुद्दा है। भारत इसे अपना हिस्सा मानता है, जबकि पाकिस्तान इसे अपने नियंत्रण में रखता है। इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच तनाव बना रहता है।
तो अमित शाह का यह बयान न सिर्फ इतिहास के एक पुराने घाव को कुरेदता है, बल्कि यह आज के राजनीतिक माहौल में भी एक बड़ा मुद्दा बन गया है। नेहरू की नीतियों और पटेल के विरोध को लेकर अलग-अलग दावे हैं, लेकिन सच यह है कि इतिहास हमेशा जटिल होता है और इसे एक ही रंग में नहीं देखा जा सकता। आप इस बयान के बारे में क्या सोचते हैं? क्या वाकई नेहरू की गलती की वजह से PoK बना? या यह सिर्फ एक राजनीतिक बयान है? अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
