महाराष्ट्र में ही क्यों खोदी गई औरंगज़ेब की कब्र?

औरंगज़ेब का महाराष्ट्र से था कैसा रिश्ता?
क्या वजह थी कि औरंगज़ेब को महाराष्ट्र में ही दफनाया गया था?
औरंगज़ेब का नाम आज भी महाराष्ट्र में क्यों नहीं बर्दाश्त?
 
महाराष्ट्र में ही क्यों खोदी गई औरंगज़ेब की कब्र?
आज की तारीख में हमारा देश भारत दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है... हम तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था हैं... पूरी दुनिया की नज़रें इस वक्त भारत पर टिकी हुई हैं... ये सब कुछ इसलिए हो रहा है क्योंकि हम आजाद हैं... जी हां, ये कह लीजिए कि सदियों तक गुलाम रहने के बाद हमें ये आज़ादी मिली है... हम अंग्रेज़ों के लगभग 200 सालों तक ग़ुलाम रहे और अरब की अलग-अलग सल्तनतों के लगभग 800 सालों तक ग़ुलाम रहे... इन्हीं में से 1 सल्तनत थी मुग़ल सल्तनत... मुगल बादशाहों ने हज्ञारे देश पर सैकड़ों सालों तक शासन किया... मुगल सल्तनत की शुरूआत बाबर ने की थी... आपको बता दें कि औरंगजेब छठे नंबर के मुग़ल शासक थे... जिसने मुगल बादशाह अकबर के बाद सबसे लंबे समय तक शासन किया था... साल 1658 से 1707 लगभग 49 सालों तक औरंगजेब ने सत्ता की बागडोर संभाली थी... वहीं 3 मार्च को मुगल शासक औरंगजेब की मौत हुई थी... इनकी मौत के बाद पूरा मुगल साम्राज्य हिल गया था... औरंगजेब के शासन के बाद मुगलिया सल्तनत धीरे-धीरे अपने पतन की ओर बढ़ने लगा था... हालांकि औरंगजेब को उसकी प्रजा ज़्यादा पसंद नहीं करती थी... जिसके पीछे उसका व्यवहार, उसकी कट्टरपंथी सोच और उसका कठोर किस्म का होना वजह रही.

औरंगजेब आलमगीर मुगल शासक शाहजहां का तीसरे नंबर का बेटा था... औरंगजेब के जन्म के दौरान शाहजहां गुजरात के गवर्नर थे... एक युद्ध में शाहजहां के नाकामयाब होने पर औरंगजेब के दादा यानि कि जहांगीर ने उसे महज़ 9 साल की उम्र में लाहौर की जेल में बंधक बना लिया था... वहीं जहांगीर की मौत के बाद शाहजहां आगरा के राजा बनें तो औरंगजेब अपने माता-पिता के साथ रहने लगे... 

चलिए अब आपको बताते हैं एक ऐसी दिलचस्प घटना जिसके बाद से औरंगज़ेब का लोहा हर कोई मानने लगा... दरअसल साल 1633 में आगरा पर जंगली हाथियों ने हमला कर दिया था, उस वक्त औरंगजेब ने अपनी जान जोखिम में डालकर प्रजा की रक्षा की थी... औरंगजेब ने जंगली हाथियों का हिम्मत से सामना कर उन्हें एक कोठरी में कैद कर दिया था... ये देखकर शाहजहां ने उन्हें सोने से तौला और बहादुर की उपाधि दी थी...

खैर, शाहजहां के चहेते होने के चलते 1636 में औरंगजेब को महज़ 18 साल की उम्र में दक्कन का सूबेदार बनाया गया... वहीं 1637 में उन्होंने सफविद की राजकुमारी दिलरास बानू बेगम से निकाह किया... औरंगजेब की एक बहन की 1644 में मौत हो गई... इस दौरान औरंगजेब कई हफ्तों के बाद आगरा वापस लौटे... जिस बात से उनके पिता शाहजहां को गहरा आघात पहुंचा और उन्हें सूबेदारी के पद से हटा दिया गया... हालांकि इस दौरान औरंगजेब का अपने भाइयों से विवाद भी शुरू हो गया था... शाहजहां का गुस्सा शांत होने पर औरंगजेब को 1645 में गुजरात का सूबेदार बनाया गया... गुजरात मुग़ल साम्राज्य का सबसे दौलतमंद प्रोविंस था... वहीं गुजरात में औरंगजेब के अच्छे काम से खुश होकर उसे अफगानिस्तान का भी गवर्नर बना दिया गया था...

चलिए अब जानते हैं कि औरंगज़ेब ने ऐसा क्या किया कि लोग उससे नफरत करने लगे... दरअसल, साल 1656 में शाहजहां काफी बीमार पड़ गए थे... वहीं तीनों भाइयों में सत्ता को लेकर खुलकर विरोध भी शुरू हो गया था... लेकिन बाकि भाइयों से औरंगजेब ज़्यादा ताकतवर था... जिसके चलते उसने अपने पिता शाहजहां को बंदी बनाकर भाइयों को फांसी दे दी और खुद शासक बन गया... औरंगजेब ने अपना राज्य अभिषेक खुद ही करवाया था... भाइयों की हत्या और पिता को बंदी बनाए जाने के चलते उसकी प्रजा औरंगजेब से नफरत करने लगी थी... औरंगजेब ने शाहजहां की भी हत्या का प्रयास किया लेकिन कुछ वफादारों के चलते वो ऐसा नहीं कर सका...

औरंगज़ेब एक कट्टर मुसलमान था... जिसके चलते उसने हिंदू प्रजा पर काफी ज़ुल्म किए... वहीं औरंगजेब के शासन काल में हिन्दू त्योहारों को मनाने पर पाबंदी लगा दी... तमाम हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करवा दिया... साथ ही उसने गैर मुस्लिमों पर ज़रूरत से ज्यादा टैक्स लगाकर उन पर मुस्लिम धर्म अपनाने का दबाव बनाया जाने लगा... कश्मीरी लोगों के साथ खड़े होकर जब सिख गुरु तेगबहादुर ने इस बात का विरोध किया तो औरंगजेब ने उन्हें फांसी की सजा दे दी... सती प्रथा को फिर से शुरू करवा दिया था... औरंगजेब के शासन काल में प्रजा पर जुल्म बढ़ने के साथ ही मांस खाना, शराब पीना, वेश्यावृत्ति जैसे कार्य़ बढ़ने लगे...

जब औरंगजेब का जुल्म हद से ज्यादा बढ़ने लगा तो विद्रोह की आवाज उठना भी शुरू हो गई... उसके विजय का रथ पश्चिम में सिक्खों ने और दक्कन में मराठों ने रोक दिया था... बदले में औरंगजेब ने इनपर जुल्मों की बेइंतिहा की थी... इतिहासकार एम अतहर अली दलील देते हैं कि औरंगजेब के पिता शाहजहां के वक्त बादशाह के हिंदू दरबारियों और करीबियों की तादाद जहां 24 फीसदी थी, औरंगजेब के वक्त वो 33 फीसदी हो गई थी... इस तरह से औरंगजेब को डिफेंड करने वाले ये भूल जाते हैं कि सिक्खों के गुरु तेगबहादुर और छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी की हत्या की एक वजह इस्लाम स्वीकार करने की शर्त न माननी थी... आखिर ये कैसे झुठलाया जा सकता है कि दोनों ही वीरों के सामने मौत से बचने के लिए औरंगजेब के सामने झुकने और इस्लाम को कबूल करने की शर्त रखी गई थी... दोनों ने इन शर्तों को नामंजूर कर दिया था... इसीलिए मराठा इतिहास में छत्रपति संभाजी महाराज को धर्मवीर भी कहा जाता है...


औरंगजेब का महाराष्ट्र से पहला संपर्क 1634 में तब होता है जब उसे मुगल शासक शाहजहां दक्कन का सूबेदार बनाकर भेजते हैं और औरंगजेब आज के महाराष्ट्र के खड़की का नाम औरंगाबाद रखता है... इसके कुछ समय बाद वो दिल्ली लौट जाता है और एक बार फिर उसे 1652 में शाहजहां दक्कन का सूबेदार बनाकर भेजता है... लेकिन इस बार वो बीजापुर और गोलकुंडा यानी आज के कर्नाटक की तरफ रुख करता है... 1659 में औरंगजेब दिल्ली की गद्दी पर बैठता है... दुनिया की एक चौथाई आबादी जो कि करीब 15 करोड़ बताई जाती है और साढ़े बारह लाख स्क्वायर मील जमीन पर राज करने वाला अपने वक्त का सबसे अमीर शासक बनता है... लेकिन उसकी महत्वाकांक्षा और गुरुर को पश्चिम में सिक्ख और दक्कन में मराठा ठेस पहुंचाते हैं... 

छत्रपति शिवाजी महाराज से औरंगजेब का झगड़ा तब से था जब वो दक्कन का सूबेदार था... औरंगजेब की नजर जहां दिल्ली की तरफ घूम जाती थी, शिवाजी महाराज बीजापुर और दक्कन के किलों और शहरों को जीत ले जाते थे... मराठों की छापामार और गुरिल्ला नीति ने बड़ी तादाद वाली मुगल सेना को काफी परेशान किया और दक्कन में उलझा दिया, दक्षिण अभियान को कामयाब होने नहीं दिया... औरंगजेब ने शिवाजी महाराज और उनके बेटे संभाजी महाराज को कैद करवा कर आगरा किले में बंद किया... लेकिन वो अपनी चतुराई और बहादुरी से निकल भागे...

हालांकि इतिहासकार यदुनाथ सरकार का कहना है कि एक वक्त ऐसा आया था कि शिवाजी महाराज औरंगजेब के मनसबदार बनने को तैयार हो गए थे... औरंगजेब उन्हें पूरे दक्षिण की कमान देने वाला था... लेकिन वो उन पर पूरी तरह से भरोसा नहीं कर पाया और इस बात को मंजूरी नहीं दी... आगरा की कैद से निकल भागने की घटना के बाद औरंगजेब मराठों के लिए और भी ज्यादा खुन्नस पालने लगा... छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद भी मराठों ने मुगलों के नाक में दम कर के रखा... औरंगजेब से बगावत करने वाले बेटे की शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी से काफी अच्छी बनती थी... ये बात भी औरंगजेब को चुभती थी... संभाजी महाराज ने उसे फारस भागने में मदद भी की थी...

खैर, आगे बढ़ते हैं... मुगल रिकॉर्ड में कहा गया है कि पूछताछ के दौरान संभाजी महाराज ने बादशाह और पैगंबर मोहम्मद का अपमान कर अपने लिए मौत की सजा लिखवाने का काम किया... जबकि उनसे सिर्फ किलों और खजानों को सौंपने को कहा था... मुगल लेखकों ने ये भी लिखा है कि संभाजी महाराज पर बुरहानपुर में मुसलमानों को लूटने, हत्या करने और अत्याचार करने के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई...

वहीं, ठीक इससे उलट, मराठा रिकॉर्ड में जिक्र है कि संभाजी महाराज को औरंगजेब के सामने झुकने और इस्लाम कबूल करने को कहा गया... संभाजी ने इसे नामंजूर कर दिया और कुछ का ये भी कहना है कि संभाजी महाराज ने जैसे को तैसा जवाब देते हुए कहा था कि वो उस दिन इस्लाम कबूल करेंगे जब औरंगजेब अपनी बेटी का हाथ सौंपेगा... इसके बाद 11 मार्च 1689 को संभाजी के शरीर को को बेदर्दी से लोहे के बने बाघ के पंजे से आगे और पीछे से फाड़ कर हत्या की गई... आंखें और जीभ निकाली गई और पुणे के पास भीमा नदी के तट पर तुलापुर में कुल्हाड़ी से काट डाला गया... कुछ अकाउंट्स में ये भी जिक्र है कि संभाजी के शरीर को टुकड़ों में काटकर नदी में फेंका गया था... एक जगह ये भी जिक्र आता है कि उनके शरीर के टुकड़े कुत्तों को खिलाए गए...

औरंगजेब की सेना से जब दक्कन और दक्षिण नहीं संभल रहा था तो औरंगजेब ने दिल्ली छोड़ दिया था और खुद 1683 से दक्कन और दक्षिण की तरफ चल पड़ा था... अपने आखिरी पच्चीस साल वो इसी तरह दिल्ली से दूर रहा... उसकी मौत आज के महाराष्ट्र के अहमदनगर में 3 मार्च 1707 को हुई... उसे खुल्दाबाद में सूफी संत सैयद ज़ैनुद्दीन की कब्र के पास दफनाया गया... 

वैसे बहुत से लोग सोचते होंगे कि औरंगज़ेब की मौत साल 1707 में महाराष्ट्र के अहमदनगर में हुई थी और उनके पार्थिव शरीर को औरंगाबाद क्यों लाया गया था... दरअसल, औरंगज़ेब ने अपनी वसीयत में लिखा था कि मौत के बाद उन्हें उनके गुरु सूफ़ी संत सैयद ज़ैनुद्दीन के पास ही दफ़नाया जाए... इतिहासकार डॉक्टर दुलारी क़ुरैशी बताते हैं कि औरंगज़ेब ने एक वसीयत की थी जिसमें साफ़ लिखा था कि वो ख़्वाज़ा सैयद जैनुद्दीन को अपना पीर मानते हैं... ज़ैनुद्दीन औरंगज़ेब से बहुत पहले ही दुनिया को विदा कह चुके थे... औरंगज़ेब बहुत पढ़ाई भी किया करते थे और ख़्वाजा सैयद जैनुद्दीन सिराज का अनुसरण किया करते थे... इसलिए ही औरंगज़ेब ने कहा था कि मेरा मक़बरा सिराज जी के पास ही होना चाहिए...

जिस तरह रावण में भी कुछ बातें अच्छी थीं उसी तरह औरंगजेब भी अपने वक्त का सबसे अमीर बादशाह होने के बावजूद अन्य मुगल शासकों से उलट शानो-शौकत की बजाए सादगी से जीना और मरना पसंद करता था... उसने खुद की कब्र को बेहद साधारण बनाने की इच्छा जताई थी... औरंगजेब महाराष्ट्र में ही दफन है, मराठों को इसलिए भी संभाजी महाराज की हत्या का वो दर्द और चुभन आज भी याद है... यही वजह है कि हाल ही में औरंगाबाद का नाम छत्रपति संभाजीनगर कर दिया है... जिसे यह पता चलता है कि मराठाओं की औरंगजेब के साथ जंग आज भी जारी है... ऐसा समझा जाता है कि औरंगजेब ने अपनी कब्र महाराष्ट्र में इसलिए भी चुनी थी क्योंकि वो मराठियों के बीच रहकर अपना वर्चस्व अपने मरने के बाद भी दिखाना चाहता था

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