क्या लव-कुश समीकरण में सेंध लगा पाएगी बसपा? नीतीश के जातीय गढ़ में मायावती की नई रणनीति

लव-कुश समीकरण: नीतीश की राजनीतिक नींव
बिहार की राजनीति में ‘लव-कुश समीकरण’ एक मजबूत सामाजिक गठबंधन रहा है, जिसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दो दशकों पहले गढ़ा था। यह समीकरण कुर्मी (नीतीश कुमार का अपना समुदाय) और कोइरी (कुशवाहा) जातियों पर आधारित है। यही गठबंधन नीतीश को 2005 में लालू प्रसाद यादव के शासन को चुनौती देने में सहायक बना। लेकिन अब यह समीकरण कई मोर्चों पर चुनौती झेल रहा है—बीजेपी ने सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बना कुशवाहा समाज को साधने की कोशिश की है, और उपेंद्र कुशवाहा भी फिर से सक्रिय हो चुके हैं।
बसपा की नई रणनीति: जातीय भावनाओं से जुड़ाव
छत्रपति शाहूजी महाराज की जयंती पर आयोजित सम्मेलन में आकाश आनंद ने उन्हें सामाजिक न्याय का प्रतीक बताते हुए उनकी कुर्मी जाति से पहचान को प्रमुखता दी। यह संदेश साफ था—बसपा अब दलितों के साथ कुर्मी और कोइरी वोट बैंक को साधने की दिशा में कदम बढ़ा रही है। पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार भी कुर्मी समुदाय से आते हैं, जिससे जातीय समावेशन का संकेत और मजबूत हो जाता है।
क्या सामाजिक आंकड़े इस समीकरण को सशक्त बनाएंगे?
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SC आबादी: लगभग 16%
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कुर्मी: करीब 2.5%
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कोइरी (कुशवाहा): लगभग 5%
यदि बसपा इस लगभग 24% जनसंख्या में से भी आधा समर्थन जुटा लेती है, तो वह राज्य के चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकती है।
बसपा के सामने प्रमुख चुनौतियाँ
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जमीनी नेटवर्क की कमी: बिहार में बसपा का संगठन अब तक कमजोर रहा है और पिछली बार जीतने वाले विधायक बाद में अन्य दलों में चले गए।
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स्थानीय नेतृत्व का अभाव: आकाश आनंद को अब भी "बाहरी चेहरा" माना जा रहा है; उन्हें बिहार की जनता से जुड़ाव स्थापित करना होगा।
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मजबूत प्रतिस्पर्धी दल: आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी पहले से ही मजबूत जनाधार के साथ मैदान में हैं।
लेकिन उम्मीदें भी हैं
बसपा अब ज़िला स्तर पर सम्मेलन, बूथ मीटिंग, और संगठन विस्तार में तेजी से जुट गई है। मायावती का अनुभव और आकाश आनंद की युवा ऊर्जा मिलकर एक नए राजनीतिक विकल्प का आधार बन सकते हैं।
बदल सकता है समीकरण
अगर बसपा लव-कुश समीकरण में सेंध लगाने में सफल होती है, तो न केवल नीतीश कुमार की स्थिति कमजोर होगी, बल्कि आरजेडी और बीजेपी भी अपने पारंपरिक वोट बैंक को लेकर सतर्क हो जाएंगे। मायावती की सामाजिक न्याय पर आधारित राजनीति और उत्तर प्रदेश जैसी सामाजिक इंजीनियरिंग की कोशिश अगर बिहार में कारगर हुई, तो 2025 के चुनाव परिणाम पूरी तरह बदल सकते हैं।