होली का पावन पर्व सभी को खूब मंगलमय हो: रमेश भइया

May everyone enjoy the holy festival of Holi: Ramesh Bhaiya
 
May everyone enjoy the holy festival of Holi: Ramesh Bhaiya
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)। विनोबा विचार प्रवाह मौन संकल्प का आज 79 वां दिन ! होली का पावन पर्व सभी को खूब मंगलमय हो।  वरिष्ठ समाजसेवी रमेश भइया ने कहा कि  प्रति गृभ्णीत मानवं सुमेधस:_  हे   मेधावी जन ! मानवता ग्रहण करो।मानव को मानव के तौर पर ही ग्रहण करें।  आज इंसान बाह्य उपाधियों को लेकर दुनिया में घूमता है।इसी से उसके अंदर का तत्व ढंक जाता है। सारी उपाधियों को छोड़कर , जरा अंदर भी झांक कर देखे कि हम कौन हैं। जब तक लेबल उपाधियां चिपकी हैं तबतक हमारी दृष्टि अंदर नहीं जाती।इसलिए ज्ञानियों ने कहा कि सब उपाधियों को छोड़कर अंदर झांकना चाहिए।                            

 मैं शिक्षित हूं, सयाना हूं,धनी हूं,गरीब हूं, डाक्टर हूं,बाप हूं,बेटा हूं, असेम्बली का सदस्य हूं, किसी संस्था का अध्यक्ष हूं,इस तरह जो मैं मैं चलता है,उसको अलग करके भी कभी देखें?   बाबा विनोबा कहते थे कि आज विज्ञान_युग में मानवता को सीधी तरह से, सरलता से ग्रहण करने की बुद्धि जबतक हमें नहीं आएगी, तबतक मनुष्य की बुद्धि विज्ञान युग मेंं टकरयेगी और उसके सामने यह टिकेगी नहीं। विज्ञान के अंदर कैसे भी भेद टिक नहीं सकते।आत्मज्ञान के सामने भी भेद टिक नहीं सकते। विज्ञान और आत्मज्ञान, दोनो भेद पर सीधा प्रहार करते हैं। आत्मज्ञान आत्मा की उन्नति की दृष्टि से        देखता है इसलिए वह सीधा  प्रहार करता है। विज्ञान इसलोक में मानव किस तरह टिक सकता है, इसका दर्शन कराता है। वह कहता है कि यदि आप भेद और संकोच रखेंगे तो फिर मानव को ग्रहण नहीं कर सकते।उसके कारण परस्पर द्वेष फैलेगा और उसका परिणाम पहले से ज्यादा भयानक आयेगा। 

इसलिए वेद कहता है_ हे बुद्धिमानों ,आप मानवता का ग्रहण कीजिए, मानव को स्वीकार कीजिए। वेद कहना चाहता है कि अगर हम मानव को     मानव की तरह स्वीकार नहीं करेंगे,तो वेद की दृष्टि से हम बेबकूफ साबित होंगे।दूसरी बात चाहे जो भी हो,हमें तो मानव का मानव की दृष्टि से ही ग्रहण करना चाहिए। तभी दुनिया के मसलों का हल होगा।

चंद्रमा मनसो जात: चक्षो: सूर्यो अजायत मुखादिनदर्श्चाग्निश्च सूर्य चंद्र अग्नि प्रत्यक्ष अनुमान और शब्द के पर्याय हैं।सूर्य आंख का।देवता,चंद्र मन का।देवता और अग्नि वाणी का देवता माना गया है।  ऋषि जब चंद्रमा मनसो जात: कहते हैं तब वे यह सूचित करते हैं कि चंद्र मन से उत्पन्न होता है।जैसे चंद्रमा की कलाएं बढ़ती_ घटती हैं, वैसे ही मन की स्थिति है।चंद्र की कला जो आज है,वह कल नहीं। चंद्र का नित्य निराला लावण्य है। उसका स्वरुप क्षर है, परिवर्तनशील है,परंतु वह भिन्न_ भिन्न रूप में आनंद देता है।चंद्र सबको खींचता है।बालक उसे चंदामामा कहकर उससे बात करता है। जिस वस्तु से स्वाभाविक आकर्षण हो,उस वस्तु में अत्यंत श्रेष्ठ कला प्रकट हुई रहती है।

चंद्रमा और मन का आध्यात्मिक संबंध है।जिसके दर्शन , स्पर्शन,श्रवण,से हमें आनंद उपलब्ध हो तो यह कह सकते हैं कि उससे हमारा आत्म_ संबंध है।चंद्रमा को देखने पर हमें आनंद होता हैं और आनंद आध्यात्मिक वस्तु है। चंद्र की एक विशेषता और है कि वह सतत घूमता रहता है।27 दिन 27 नक्षत्रों से मिलने जाता है। छोटे बड़े सभी  नक्षत्रों से मिलने के लिए संपूर्ण आकाश में पुनः पुनः घूमते रहनेवाला वह सौम्य सेवामूर्ति है। गुरु, शुक्र, शनि,से चंद्रमा छोटा है।लेकिन आंखों को बड़ा दिखता हैं।यह बात तो स्पष्ट ही है कि इन सब नक्षत्रों की अपेक्षा चंद्रमा आंखों के लिए अधिक आकर्षक हैं।

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