सृजन की साक्षी : भारतीय अभियंत्रण की गौरव सम्पन्न परंपरा

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सृजन की साक्षी भारतीय अभियांत्रिकी परंपरा
लेखक : विवेक रंजन श्रीवास्तव – विनायक फीचर्स)
भारत की सभ्यता ने हमेशा मनुष्य को केवल निर्माता नहीं, बल्कि सृष्टि के साधक के रूप में देखा। इतिहास के अनेक अध्याय यह बताते हैं कि यहाँ अभियंत्रण केवल तकनीकी दक्षता नहीं था, वह जीवन का दर्शन था। मिट्टी, पत्थर, जल, धातु — ये सब केवल संसाधन नहीं, बल्कि सृजन के माध्यम माने गए। इसलिए यहाँ अभियंता को विश्वकर्मा का रूप मानकर सम्मानित किया गया।
सिंधु–सरस्वती सभ्यता के नगर आज भी स्वच्छता, जल प्रबंधन, समकोणीय गलियों और सुव्यवस्थित बसावट की मिसाल हैं। यह सिद्ध करता है कि भारत के प्राचीन अभियंता सुविधाओं के निर्माता ही नहीं थे, बल्कि संस्कृति के वाहक भी थे। मंदिर स्थापत्य, धातु विज्ञान, अजन्ता–एलोरा की गुफाएँ और दिल्ली का जंगरहित लौह स्तंभ – ये सब भारतीय इंजीनियरिंग प्रतिभा के अनोखे उदाहरण हैं, जिनके पीछे कला, विज्ञान और आध्यात्म का संगम था।
औपनिवेशिक काल में इंजीनियरिंग को केवल गणना और यांत्रिक शिक्षा तक सीमित कर दिया गया। पर स्वतंत्रता के बाद भारत ने फिर से अपनी तकनीकी आत्मा को स्थापित किया। बड़े बांध, सिंचाई परियोजनाएँ, स्टील प्लांट, औद्योगिक नगर, रेल नेटवर्क – यह सब नवभारत का पुनर्निर्माण थे। पंडित नेहरू द्वारा बड़े बांधों को “आधुनिक भारत के मंदिर” कहना अभियंत्रण की आत्मा का सम्मान था।
आज भारतीय अभियंता पूरी दुनिया में तकनीकी नेतृत्व दे रहे हैं। पर वर्तमान में एक चुनौती यह भी है कि राजनीति कई इंजीनियरिंग क्षेत्रों पर अत्यधिक प्रभाव डालने लगी है। विकास क्षेत्रीय प्राथमिकताओं में बंधकर रह जाए तो नवोन्मेष की गति प्रभावित होती है।
दूसरा बड़ा प्रश्न भाषा का है। हिंदी सहित भारतीय भाषाओं में तकनीकी लेखन हमेशा सीमित रहा। जब ज्ञान केवल अंग्रेज़ी में सीमित होता है, तो वह समाज के बड़े हिस्से तक नहीं पहुँच पाता। स्थानीय भाषा में तकनीकी लेखन का सशक्त होना जरूरी है ताकि ज्ञान सबके लिए सुलभ हो।
आज भारत चंद्रयान, आदित्य, स्वदेशी ड्रोन, GIS, और स्पेस टेक्नोलॉजी में विश्व स्तर पर अपनी क्षमता सिद्ध कर चुका है। यह वैज्ञानिक उपलब्धि भर नहीं है, यह अभियंत्रण चेतना का उत्कर्ष है। ‘मेक इन इंडिया’ व ‘वोकल फॉर लोकल’ की भावना में इंजीनियर अगली पंक्ति के कर्मवीर हैं।
नई पीढ़ी के अभियंताओं को केवल मशीन, प्रोग्रामिंग या डिजाइन तक सीमित नहीं होना चाहिए। उन्हें समाज की वास्तविक समस्याओं — जल संकट, ऊर्जा व्यवस्था, कचरा प्रबंधन, सतत विकास — को समझते हुए समाधान विकसित करने की दिशा में सोचना होगा।
इंजीनियरिंग जब संवेदना, आध्यात्मिक दृष्टि और सामाजिक समझ से जुड़ती है, तभी वह चमत्कार रचती है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और स्वचालन के इस नए युग में उम्मीद यही है कि भारतीय अभियंता केवल तकनीक के ज्ञाता नहीं, बल्कि सृजन के साक्षी बनें — और सृजन की निरंतर गाथा आगे लिखते जाएँ।

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