World Book Day 23 April : विचारों का उपवन हैं पुस्तकें

World Book Day 23 April : Books are the garden of ideas
 
World Book Day 23 April : Books are the garden of ideas

(संदीप सृजन-विभूति फीचर्स)

पुस्तकें हैं वन उपवन, जहां विचारों की छाँव,  
हर पन्ना एक पंखुड़ी, बिखेरे ज्ञान का गंध।
इनमें बसती है सृष्टि, इनमें जीवन का स्वर,
पढ़ने वाला पाए, अनंत का आलिंगन सघन।

World Book Day 23 April : Books are the garden of ideas

प्रकृति के सुकुमार कविवर सुमित्रानंदन पंत की ये पंक्तियां प्रकृति और पुस्तक के बीच एक सुंदर समन्वय स्थापित करती है। उनने कविता में पुस्तकों को "विचारों का उपवन" कहा है। जो  शाश्वत सत्य है। आज का युग तकनीकी क्रांति का युग है। स्मार्टफोन, इंटरनेट, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, और वर्चुअल रियलिटी ने मानव जीवन को एक नई दिशा दी है। सूचनाएँ अब उंगलियों के इशारे पर उपलब्ध हैं, और डिजिटल उपकरणों ने समय और स्थान की सीमाओं को लगभग मिटा दिया है। फिर भी, इस तेज़ रफ्तार डिजिटल दुनिया में पुस्तकें अपनी एक खास जगह बनाए हुए हैं। पुस्तकें न केवल ज्ञान का भंडार हैं, बल्कि मानवता की संस्कृति, इतिहास, भावनाओं, और कल्पनाशीलता का जीवंत दस्तावेज भी हैं।

पुस्तकें मानव सभ्यता की रीढ़ रही हैं। प्राचीन मिस्र के पेपिरस से लेकर भारत के ताड़पत्रों तक, और मध्ययुगीन यूरोप की हस्तलिखित पांडुलिपियों से लेकर आधुनिक मुद्रित पुस्तकों तक, इनका योगदान अतुलनीय है। वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, बाइबिल, कुरान, और गुरु ग्रंथ साहिब जैसी पुस्तकों ने न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान किया, बल्कि नैतिकता, दर्शन, और सामाजिक मूल्यों को भी परिभाषित किया। ये ग्रंथ आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि ये मानव जीवन की जटिलताओं को समझने का एक गहरा दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।

टेक्नालॉजी ने सूचनाओं को तीव्र और सुलभ बना दिया है, लेकिन पुस्तकों की गहराई और प्रामाणिकता का कोई विकल्प नहीं है। एक पुस्तक न केवल तथ्यों का संग्रह होती है, बल्कि यह लेखक के विचारों, अनुभवों, और भावनाओं का एक संगम भी होती है। पाठक जब पुस्तक के पन्नों को पलटता है, तो वह लेखक के साथ एक संवाद में प्रवेश करता है, जो समय और स्थान की सीमाओं को पार कर जाता है। यह अनुभव डिजिटल स्क्रीन पर उपलब्ध संक्षिप्त और अस्थायी सामग्री से कहीं अधिक गहन और स्थायी होता है।

पुस्तकें समाज को एक सूत्र में बाँधती हैं। साहित्य, इतिहास, और दर्शन की पुस्तकें विभिन्न पीढ़ियों, संस्कृतियों, और समुदायों के बीच एक सेतु का काम करती हैं। उदाहरण के लिए, प्रेमचंद की कहानियाँ और उपन्यास भारतीय ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों और सामाजिक असमानताओं को आज भी जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं। इसी तरह, शेक्सपियर के नाटक, टॉल्सटॉय के उपन्यास, और रवींद्रनाथ टैगोर की कविताएँ मानवीय भावनाओं और अनुभवों की सार्वभौमिकता को दर्शाती हैं। ये रचनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि चाहे युग कितना भी बदल जाए, मानव हृदय की बुनियादी भावनाएँ और संघर्ष वही रहते हैं।

टेक्नालॉजी के इस युग में सोशल मीडिया और वीडियो कंटेंट ने मनोरंजन और सूचना के स्वरूप को बदल दिया है। लेकिन ये माध्यम अक्सर सतही और क्षणिक होते हैं। एक ट्वीट या रील कुछ पलों में हमारा ध्यान खींच सकता है, लेकिन वह गहन चिंतन या भावनात्मक जुड़ाव प्रदान नहीं करता। दूसरी ओर, एक उपन्यास या कविता-संग्रह पाठक को घंटों तक बाँधे रखता है। पाठक कहानी के पात्रों के साथ हँसता है, रोता है, और उनके अनुभवों को अपने जीवन से जोड़ता है। यह भावनात्मक और बौद्धिक जुड़ाव पुस्तकों को डिजिटल माध्यमों से अलग करता है।

शिक्षा के क्षेत्र में पुस्तकों की भूमिका निर्विवाद है। पाठ्यपुस्तकें विद्यार्थियों को आधारभूत और गहन ज्ञान प्रदान करती हैं। ऑनलाइन कोर्स, वीडियो लेक्चर, और डिजिटल संसाधनों ने शिक्षा को सुलभ बनाया है, लेकिन पुस्तकें अब भी गहन अध्ययन और संदर्भ सामग्री का प्रमुख स्रोत हैं। एक पुस्तक पढ़ते समय पाठक अपनी गति से सीखता है, महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित करता है, और विचारों को आत्मसात करता है। यह प्रक्रिया दीर्घकालिक स्मृति और समझ को बढ़ावा देती है, जो डिजिटल माध्यमों में अक्सर अनुपस्थित होती है।

पुस्तकें न केवल शैक्षिक ज्ञान प्रदान करती हैं, बल्कि वैचारिक विकास में भी योगदान देती हैं। दर्शन, विज्ञान, और साहित्य की पुस्तकें पाठक को प्रश्न उठाने, तर्क करने, और नए दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं। उदाहरण के लिए, कार्ल मार्क्स की "दास कैपिटल" या सिगमंड फ्रायड की मनोविश्लेषण संबंधी रचनाएँ आज भी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विचारधारा को प्रभावित करती हैं। ये पुस्तकें हमें अपने समाज और स्वयं को गहराई से समझने का अवसर देती हैं।

टेक्नालॉजी ने पुस्तकों को अप्रासंगिक बनाने के बजाय, उन्हें नए रूप में प्रस्तुत किया है। ई-बुक्स, ऑडियोबुक्स, और ऑनलाइन लाइब्रेरी ने पुस्तकों को और अधिक सुलभ बनाया है। अमेजन किंडल, गूगल बुक्स, और प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग जैसे प्लेटफॉर्म लाखों पुस्तकों को एक डिवाइस में समेट देते हैं। यह उन लोगों के लिए वरदान है जो दूरदराज के क्षेत्रों में रहते हैं और पारंपरिक पुस्तकालयों तक नहीं पहुँच सकते। ऑडियोबुक्स ने उन लोगों के लिए पढ़ने को संभव बनाया है, जो समय की कमी या दृष्टिबाधा के कारण पारंपरिक पुस्तकें नहीं पढ़ सकते।

हालांकि, डिजिटल पुस्तकों का यह युग पारंपरिक पुस्तकों के आकर्षण को कम नहीं करता। पुस्तक की वह खुशबू, पन्नों का स्पर्श, और उसे किताबों की अलमारी में सजाने का सुख एक अनूठा अनुभव है। पुस्तकालय, बुक क्लब, और साहित्यिक उत्सव आज भी लोगों को आकर्षित करते हैं। भारत में दिल्ली का विश्व पुस्तक मेला, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल और कोलकाता बुक फेयर जैसे आयोजन इस बात का प्रमाण हैं कि लोग पुस्तकों से कितना प्रेम करते हैं।

यह सच है कि डिजिटल युग में पुस्तकों को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कम होती ध्यान अवधि, सूचनाओं का अतिरेक, और त्वरित मनोरंजन के साधनों ने पढ़ने की आदत को प्रभावित किया है। सोशल मीडिया पर उपलब्ध छोटे-छोटे वीडियो और मीम्स ने गहन पढ़ने की प्रवृत्ति को कम किया है। फिर भी, पुस्तकों का भविष्य उज्ज्वल है।

नई पीढ़ी को पुस्तकों से जोड़ने के लिए शिक्षा और जागरूकता के प्रयास आवश्यक हैं। स्कूलों में पढ़ने की संस्कृति को प्रोत्साहन देना, माता-पिता का बच्चों को कहानियाँ पढ़कर सुनाना, और पुस्तकालयों को आधुनिक सुविधाओं से लैस करना कुछ ऐसे कदम हैं, जो पुस्तकों के महत्व को बनाए रखेंगे। साथ ही, लेखकों और प्रकाशकों को डिजिटल और पारंपरिक दोनों माध्यमों का उपयोग करके पाठकों तक पहुँचना होगा।

पुस्तकें न केवल बौद्धिक और सामाजिक विकास में योगदान देती हैं, बल्कि व्यक्तिगत और आध्यात्मिक स्तर पर भी गहरा प्रभाव डालती हैं। भगवद्गीता, ताओ ते चिंग, या रूमी की कविताएँ पाठक को आत्ममंथन और आत्म-जागरूकता की ओर ले जाती हैं। ये रचनाएँ हमें अपने उद्देश्य और जीवन के अर्थ को समझने में मदद करती हैं।  भगवद्गीता आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, और इसका यूनेस्को धरोहर में शामिल होना इसके वैश्विक महत्व को दर्शाता है। टेक्नालॉजी के युग में पुस्तकें न केवल प्रासंगिक हैं, बल्कि अपरिहार्य भी हैं। वे ज्ञान, संस्कृति, और भावनाओं का ऐसा खजाना हैं, जिसका कोई विकल्प नहीं। हम पुस्तकों को अपने जीवन का हिस्सा बनाए रखें और उनके माध्यम से ज्ञान, प्रेम, और प्रेरणा की अनंत यात्रा पर चलें। (विभूति फीचर्स)

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