World Environment Day Special - 5 June 2025 : मानव हस्तक्षेप से जर्जर होता पर्यावरण : जीव सृष्टि पर मंडराता विनाश का खतरा

Environment is deteriorating due to human intervention: Danger of destruction looms over the living world
 
मानव हस्तक्षेप से जर्जर होता पर्यावरण : जीव सृष्टि पर मंडराता विनाश का खतरा

(विश्व पर्यावरण दिवस विशेष - 5 जून 2025) ( लेखक: डॉ. प्रितम भि. गेडाम  )

इस अनंत ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जहाँ जीवन संभव है, क्योंकि यहां जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक सभी प्राकृतिक तत्वों का अद्भुत संतुलन मौजूद है। पर्यावरण न केवल मानव जीवन का आधार है, बल्कि उसके विकास का सहायक भी है। किंतु दुर्भाग्यवश, इंसान ने अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए पर्यावरण के संतुलन को बुरी तरह से बिगाड़ दिया है।

लेखक: डॉ. प्रितम भि. गेडाम

अत्यधिक शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, प्रदूषण, प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग, जहरीले रसायनों का इस्तेमाल, कंक्रीटीकरण और प्राकृतिक संसाधनों का अति-शोषण जैसी गतिविधियों ने धरती को खतरे के मुहाने पर ला खड़ा किया है। इन गतिविधियों से न केवल पर्यावरणीय आपदाएं बढ़ी हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन, ओजोन परत की क्षति, और जैव विविधता में गिरावट जैसे गंभीर संकट उत्पन्न हो गए हैं।

ग्लोबल वार्मिंग और मौसमी असंतुलन

ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम का पारंपरिक चक्र अब पूरी तरह से बिगड़ चुका है। गर्मी में बारिश, बारिश में ठंड, और ठंड में असमय गर्मी जैसे हालात आम हो चुके हैं। इस असमंजस भरे मौसम का सीधा असर कृषि पर पड़ता है, जिससे किसान परेशान होते हैं, फसलें बर्बाद होती हैं और खाद्य संकट गहराता है। बाढ़ और सूखा दोनों चरम पर हैं। समुद्री जल स्तर बढ़ रहा है और आर्कटिक क्षेत्र के बर्फ के पहाड़ तेजी से पिघल रहे हैं।

इन बदलते हालातों के कारण मानव स्वास्थ्य भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। रोग-प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट, श्वसन संबंधी बीमारियां और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं। तेज़ होती गर्मी और आर्द्रता शरीर को थका देती है और गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ाती है।

प्लास्टिक प्रदूषण पर विशेष ध्यान

विश्व पर्यावरण दिवस 2025 की थीम "वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करें" है। यह थीम प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग और उसके घातक प्रभावों के प्रति गंभीर चेतावनी है। प्लास्टिक प्रदूषण मिट्टी, जल और वायु तीनों को प्रभावित करता है और लंबे समय तक नष्ट नहीं होता। हमें इसका विकल्प खोजकर जैविक और पुन: प्रयोग होने वाले पदार्थों को प्राथमिकता देनी होगी।

वर्तमान पर्यावरणीय स्थिति की भयावहता

विकसित और विकासशील दोनों ही देशों में पर्यावरणीय लापरवाही के गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। खुले में कचरा जलाना, नदियों को नालों में बदल देना, प्रतिबंधित प्लास्टिक बैग्स का उपयोग, निर्माण कार्यों में लापरवाही, और अधूरी पड़ी परियोजनाएं आम दृश्य बन चुकी हैं।

शहरों में सड़कों पर जलभराव, गड्ढे, ट्रैफिक सिग्नल की खराबी, खुले तार और मवेशियों की अनियंत्रित आवाजाही जैसी समस्याएं स्थानीय प्रशासन की असंवेदनशीलता को उजागर करती हैं। यह सब नागरिकों के जीवन को असुरक्षित और अस्वस्थ बना रहा है।

वैश्विक आंकड़ों की भयावहता

एक स्वतंत्र अमेरिकी अनुसंधान संस्था हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में वायु प्रदूषण से विश्वभर में 81 लाख लोगों की मृत्यु हुई। इनमें 5 वर्ष से कम उम्र के 7 लाख बच्चों की मृत्यु शामिल है, जिनमें से अधिकांश मौतें एशिया और अफ्रीका में जहरीले ईंधनों से खाना पकाने के कारण हुईं।

विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, यदि समय रहते उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो 2050 तक 1.45 करोड़ लोगों की जान जा सकती है। वहीं 7.1 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिक क्षति संभावित है। सबसे अधिक जानलेवा प्रभाव बाढ़, सूखा, और गर्मी की लहरों का होगा।

पर्यावरण बचाने के लिए जरूरी कदम

  1. नवीन और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना: सौर और पवन ऊर्जा जैसे विकल्पों को अपनाना अनिवार्य है।

  2. वनों और हरित क्षेत्रों की सुरक्षा: अधिक से अधिक वृक्षारोपण और अवैध कटाई पर सख्त रोक लगनी चाहिए।

  3. जल एवं वायु प्रदूषण पर नियंत्रण: कचरा प्रबंधन, सीवेज ट्रीटमेंट और वायु गुणवत्ता की निगरानी प्रणाली लागू करनी होगी।

  4. जैविक खेती और पारंपरिक कृषि प्रणाली का पुनरुद्धार: रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया जाए।

  5. प्लास्टिक और ई-कचरे का पुनः उपयोग और रीसायक्लिंग: स्थानीय स्तर पर रीसाइक्लिंग प्लांट की स्थापना हो।

  6. ग्रामीण विकास पर जोर: गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की बेहतर व्यवस्था करके शहरों की ओर पलायन कम किया जाए।

  7. प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयारी: सतत विकास नीतियों के तहत आपदा प्रबंधन योजनाएं सशक्त की जाएं।

 

( लेखक: डॉ. प्रितम भि. गेडाम  )

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