Pt. Shriram Sharma  Jayanti  : जयंती : 10 सितम्बर आचार्य पं. श्रीराम शर्मा

shri ram sharma jayanti : Birth anniversary: ​​10 September Acharya Pt. Shriram Sharma
Pt. Shriram Sharma  Jayanti  : जयंती : 10 सितम्बर आचार्य पं. श्रीराम शर्मा
संजय कुमार चतुर्वेदी 'प्रदीप’ - विनायक फीचर्स  सम्पूर्ण विश्व में शान्ति स्थापित करने हेतु अश्वमेघ यज्ञों की शृंखला शुरू करने वाले युग ऋषि आचार्य श्रीराम शर्मा का जन्म 10 सितम्बर 1911 को आगरा जनपद के आंवला खेड़ा ग्राम में एक जमींदार ब्राह्मïण परिवार में हुआ था।

बाल्यकाल से ही उनमें आध्यात्म की प्यास थी। दस वर्ष की आयु में उन्होंने महामना मदन मोहन मालवीय जी से गायत्री मंत्र की दीक्षा ग्रहण की और 15 वर्ष की आयु में देवात्मा हिमालय में वास करने वाले योगीबाबा सर्वेश्वरानन्द जी से उनका साक्षात्कार हुआ और आत्मबोध प्राप्त कर उनके निर्देश पर अखण्ड दीपक प्रज्ज्वलित करते हुए 24 लाख गायत्री मंत्र के 25 महापुरश्चरणों की शृंखला प्रारंभ की। साधनाकाल में गाय के गोबर से चुने गये जौ और छाछ ही उनका आहार था। इसी अवधि में उन्होंने कुण्डलिनी तथा पंचाग्नि विद्या की साधना भी पूरी की।

वे किशोरावस्था से ही भारत के स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रहे और तीन बार कारावास की यात्रा की। सन् 1940 की बसन्त पंचमी के दिन अखण्ड ज्योति मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया जो प्रारंभ में कार्बन पेपर से तैयार हस्तलिखित होती थी और उसे वे स्वयं वितरित किया करते थे।

आज यह पत्रिका विश्व की कुछ ही मासिक पत्रिकाओं में से एक है, जिसमें विज्ञापन स्वीकार नहीं किये जाते तथा बिना लाभ-हानि के सिद्धांत पर इसका प्रकाशन हो रहा है। इस समय इसकी ग्राहक संख्या कई लाख है। इस पत्रिका में आध्यात्म तत्व व दर्शन का शास्त्रोक्त एवं विज्ञान सम्मत प्रतिपादन किया जाता है। 30 जून 1971 को उन्होंने मथुरा छोड़ दिया और एक वर्ष तक हिमालय के दुर्गम स्थानों में अज्ञातवास करते हुए कठिन साधना की।

वहां से लौटकर 1972 में गायत्री जयंती के अवसर पर ऋषियों की परम्परा का शान्ति कुंज हरिद्वार में बीजारोपण किया। यज्ञ विज्ञान और गायत्री महाशक्ति पर अनुसंधान हेतु सुविज्ञ डॉक्टरों एवं वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन करते हुए ब्रह्म वर्चस्व शोध संस्थान की स्थापना की जहां आधुनिकतम उपकरणों से सुसज्जित अद्वितीय प्रयोगशाला है। 30 जनवरी 1990 को बसंत पर्व पर महाकाल का संदेश में उनका संकेत था कि मार्गदर्शक सत्ता द्वारा दिया गया पांच वर्ष का अतिरिक्त समय समाप्त हो रहा है और भविष्य के कार्य सूक्ष्म शरीर द्वारा सम्पादित किये जायेंगे। यह उनके महाप्रयाण की तैयारी थी, 02 जून 1990 को गायत्री जयंती के दिन मां गायत्री का नाम उच्चारित करते हुए उन्होंने शरीर त्याग दिया। श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा इतने वर्ष के जीवन में आध्यात्म दर्शन, गायत्री महाविद्या, यज्ञ विज्ञान और जीवन के विभिन्न पक्षों के ऊपर तीन हजार से अधिक पुस्तकें लिखी गईं। 

Share this story