Indian History : वो वीरांगना जिससे थर-थर कांपता था तैमूर

 Rampyari Gurjar- The Story Of A Great Warrior Who Was A Nightmare For Taimur | Indian History
 
 
Indian History : वो वीरांगना जिससे थर-थर कांपता था तैमूर 
भारत के इतिहास में कई ऐसे पन्ने हैं, जो कभी खोले ही नहीं गए...  क्योंकि कांग्रेसी हुकूमत में हमारी इतिहास की किताबे मुगलों और गांधी में इतनी खो गई कि भारतीय इतिहास के जो ज़रूरी अध्याय थे, उन्हें एक सोची समझी साज़िश के तहत गायब कर दिया गया... लेकिन अब समय बदल चुका है, अब समय है इतिहास के उन पन्नों को खोलने का, जिन्हें भुला दिया गया... चलिए इसकी शुरुआत करते हैं एक ऐसी वीरांगना की कहानी से जिससे तैमूर थर-थर कांपता था...

तैमूर एक ऐसा नाम है जो आए दिन हमारे सामने किसी न किसी वजह से सामने आता ही रहता है... खासकर जबसे बॉलीवुड के नवाब कहे जाने वाले सैफ अली खान ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा है... आखिर इस नाम को लेकर इतनी कंट्रोवर्सी क्यों होती रहती है, क्या ये कभी आपने जानने की कोशिश की है? तैमूर के बारे में अक्सर हमें जो बताया जाता है, वो उससे भी ज़्यादा ख़तरनाक आक्रमणकारी यानी invader था.

तैमूर की क्रूरता की दास्तां आप अगर सुन लेंगे, तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे... वो एक ऐसा बर्बर लुटेरा था जो मिडिल एशिया से दिल्ली को लूटने आया था... जब वो दिल्ली पहुंचा तो उसने दिल्ली पर कब्ज़ा कर 1 लाख हिन्दुओं को बंदी बना लिया और उनका बेरहमी से कतल करके उनके सिरों का पिरामिड तक बना दिया था... फिर वो मेरठ को भी लूटने निकला, और इस बीच जो भी रास्ते में आया, उसे बेरहमी से मारता गया और मंदिरों को तोड़ता गया...

खैर, हम आपको तैमूर की क्रूरता की कहानी नहीं सुनाने आए हैं, बल्कि उस वीरांगना के शौर्य की दास्तां सुनाने आए हैं, जिसने तैमूर को चारों खाने चित्त कर दिया था... और उन्हीं के खौफ से तैमूर को अपने भारत विजय का अभियान बीच में ही छोड़कर वापस भागना पड़ा... जी हां, हम बात कर रहे हैं रामप्यारी गुर्जर की... 

प्रभु श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण के वंशज सहारनपुर के गुर्जर परिवार में जन्मीं रामप्यारी बचपन से ही निडर और हठी स्वभाव की थीं... पुरूषों की वेशभूषा पसंद करने वाली रामप्यारी पहलवान बनना चाहती थीं और हर रोज़ अपनी मां से इस संबंध में सवाल पूंछती थीं... जवान होने तक रामप्यारी युद्धकौशल में भी दक्ष हो गई थीं... उसकी बुद्धमिता और युद्ध कौशल के चर्चे आस-पास के सभी इलाकों में थे...

इस्लामिक आक्रमण से पहले समरकंद एक बौद्ध राज्य था... फिर समरकंद पर मुसलमानों का शासन हो गया... उसी समरकन्द के क्रूर आक्रांता तैमूर लंगड़ा ने साल 1398 में भारतवर्ष पर हमला कर नसीरूद्दीन तुगलक को हरा दिया और दिल्ली में लाखों लोगों की हत्या कर उनके सिरों का पहाड़ बनाकर जीत का खूनी जश्न मनाया... ब्रिटिश हिस्टोरियन विन्सेंट ए स्मिथ ने अपनी किताब ‘द ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया: 'from the early state Times to the end of 1911' में लिखा है कि भारत में तैमूर के अभियान का सबसे बड़ा मकसद था, सनातन समुदाय का विनाश कर भारत में इस्लाम का झंडा लहराना...

खैर, अब तैमूर के इस मकसद को रोकना तो था... तो रणनीति के मुताबिक, सेना में 80 हजार पुरूष योद्धा शामिल किए गए और जोगराज सिंह गुर्जर इस सेना के मुखिया और हरवीर सिंह गुलिया सेनापति बने... साथ ही 40 हजार महिला सैनिकों की एक टुकड़ी भी तैयार की गयी और युद्धकुशल, परमवीर रामप्यारी गुर्जर इस महिला सैनिकों की टुकड़ी की सेनापति बनाई गईं... एक सुनियोजित तरीके से 5०० लोगों को तैमूर की सेना की जासूसी के लिए लगाया गया, जिससे उसकी योजनाओं और आगे के हमलों के बारे में पता चल सके...

वीर रामप्यारी गुर्जर ने देशरक्षा के लिए दुश्मन से लड़कर प्राण देने की प्रतिज्ञा की... जोगराज के नेतृत्व में बनी 40,000 ग्रामीण महिलाओं की सेना को युद्ध विद्या के प्रशिक्षण और निरीक्षण की जिम्मेदारी भी रामप्यारी गुर्जर के पास थी... इनकी चार सहकर्मियां भी थीं, जिनके नाम थे हरदाई जाट, देवी कौर राजपूत, चंद्रों ब्राह्मण और रामदाई त्यागी... इन 40,000 महिलाओं में गुर्जर, जाट, अहीर, राजपूत, हरिजन, वाल्मीकि, त्यागी और बाकि वीर जातियों की वीरांगनाएं शामिल थीं... इनमें से कई ऐसी महिलाएं भी थीं, जिन्होने कभी शस्त्र का मुंह भी नहीं देखा था पर रामप्यारी की हुंकार पर वो अपने को रोक ना पायीं... जाट क्षेत्र के सभी गांवों के लड़के-लड़कियां अपने नेता के संरक्षण में हर रोज़ शाम को गांव के अखाड़े पर इकट्ठा हो जाया करते थे और व्यायाम, मल्ल युद्ध और युद्ध विद्या का अभ्यास किया करते थे...

खैर, आखिरकार युद्ध का दिन करीब आ गया... गुप्तचरों की सूचना के मुताबिक, तैमूर अपनी विशाल सेना के साथ मेरठ की ओर कूच कर रहा था... सभी एक लाख 20 हजार पुरूष व महिला सैनिक केवल महाबली जोगराज सिंह गुर्जर के युद्ध आवाहन का इंतजार कर रहे थे... जोगराज सिंह गुर्जर ने कहा कि हमारे राष्ट्र को तैमूर के अत्याचारों ने लहूलुहान किया है... योद्धाओं... उठो और क्षण भर भी विलंब न करो... शत्रुओं से युद्ध करो और उन्हें हमारी मातृभूमि से बाहर खदेड़ दो..सभी योद्धाओं ने शपथ ली कि वो किसी भी स्थिति में अपने सैन्य प्रमुख की आज्ञाओं की अवहेलना नहीं करेंगे, और वो तब तक नहीं बैठेंगे जब तक तैमूर और उसकी सेना को भारत भूमि से बाहर नहीं खदेड़ देते...

इस जोशीले अंदाज़ से किए गये युद्ध आह्वान से सेना में एक अलग ही ताकत आ गई... रामप्यारी गुर्जर ने अपनी सेना की तीन टुकड़ियां बनाईं... जहां एक तरफ कुछ महिलाओं पर सैनिकों के लिए भोजन और शिविर की व्यवस्था करने का दायित्व था, तो वहीं कुछ महिलाओं ने युद्धभूमि में लड़ रहे योद्धाओं को ज़रुरी शस्त्र और राशन का बीड़ा उठाया... इसके अलावा रामप्यारी गुर्जर ने महिलाओं की एक और टुकड़ी को शत्रु सेना के राशन पर धावा बोलने का निर्देश दिया, जिससे शत्रु के पास न केवल खाने की कमी होगी, बल्कि धीरे धीरे उनका मनोबल भी टूटने लगे... इसके अलावा उसी टुकड़ी के पास आराम करने आए दुश्मनों पर धावा बोलने की भी जिम्मेदारी थी...

ईरानी इतिहासकार शरीफुद्दीन अली यजीदी की किताब ‘ज़फरनमा’ में इस युद्ध का उल्लेख भी किया गया है... 20 हजार हिन्दू योद्धाओं ने उस समय तैमूर की सेना पर हमला किया, जब वो दिल्ली से मेरठ के लिए निकलने ही वाला था और इस हमले में तैमूर की सेना के 9 हजार से ज़्यादा लोग रात में ही मार गिराये गए... गुस्से में आग बबूला हुआ तैमूर मेरठ की ओर निकल पड़ा पर यहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी... दरअसल जिस रास्ते से तैमूर मेरठ पर आक्रमण करने वाला था, वो पूरा मार्ग और उस पर स्थित सभी गांव निर्जन पड़े थे क्योंकि रणनीति के मुताबिक जनता कीमती सामान और खाने पीने की चीज़ें पहले ही नगर और गांव छोड़ देते थे...

इससे तैमूर की सेना अधीर होने लगी और इससे पहले वो कुछ समझ पाता, हिन्दू योद्धाओं ने अचानक ही उन पर हमला कर दिया... इस वीर सेना ने शत्रुओं को संभलने का एक मौका भी नहीं दिया और रणनीति भी ऐसी थी कि तैमूर कुछ कर ही नहीं सका... दिन में महाबली जोगराज सिंह गुर्जर के लड़ाके उसकी सेना पर आक्रमण कर देते और रात को कुछ पल आराम के समय रामप्यारी गुर्जर और बाकि वीरांगनाएं उनके शिविरों पर हमला कर देतीं... रामप्यारी की सेना का आक्रमण इतना सटीक होता था कि वे गाजर मूली की तरह काटे जाते थे और जो बचते थे वो रात रात भर ना सोने की वजह से पूरी तरह से टूट जाते थे... महिलाओं के इस आक्रमण से तैमूर की सेना के अंदर जिहाद का जोश ही ठंड पड़ गया था...

थके हारे और घायल सेना के साथ आखिरकार हताश होकर तैमूर और उसकी सेना मेरठ से हरिद्वार की ओर निकाल पड़ी... पर यहां भी सेना ने फिर से अचानक ही उन पर धावा बोल दिया और इस बार तैमूर की सेना को मैदान छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा... इसी युद्ध में वीर हरवीर सिंह गुलिया ने सभी को चौंकाते हुए सीधा तैमूर पर धावा बोल दिया और अपने भाले से उसकी छाती छेद दी... 

तैमूर के अंगरक्षक तुरंत हरवीर पर टूट पड़े लेकिन हरवीर तब तक अपना काम कर चुके थे... जहां हरवीर उस युद्धभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हो गए तो तैमूर उस घाव से फिर कभी उबर नहीं पाया और सन 1405 में उसी घाव में बढ़ते संक्रमण के चलते उसकी मौत हो गयी...तो जो तैमूर लाखों की सेना के साथ भारत विजय के मकसद से यहां आया था वो महज़ कुछ हजार सैनिकों के साथ किसी तरह भारत से भाग पाया..आज भी भारतीय नारियों को रामप्यारी गुर्जर की तरह धीर, वीर और रणधीर बनने की ज़रूरत है ताकि देश के बाहर और अंदर बैठे दुश्मनों का मुकाबला कर सके... हम नमन करते हैं ऐसी वीर बहादुर बाला को. |

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