Election News : चुनाव में जमानत जब्त होना किसे कहते हैं?
Chunav Me Jamanat Rashi Vapas Pane Ke Liye Kya Karen?
Jamanat Jabt Kab Hoti Hai
Chunav Me Jamanat Jabt Hona Matlab
Security Deposit During Election
लोकसभा चुनाव होने वाले हैं... धड़ल्ले से नामांकन हो रहे हैं... इनमें से कई उम्मीदवार जीत का स्वाद चखेंगे तो न जाने कितने हार के ग़म में कई दिनों तक ग़मग़ीन रहेंगे... वहीं, कई तो ऐसे भी होंगे जो बेचारे अपनी ज़मानत तक नहीं बचा पाएंगे... वैसे ये ज़मानत जब्त होना किसे कहते हैं, क्या नेताजी को बुरी तरह से हारने की वजह से गिरफ्तार कर लिया जाता है? अरे नहीं भई, चुनाव में ज़मानत ज़ब्त होने का गिरफ्तारी से कोई लेना देना नहीं है...
जमानत जब्त मतलब गिरफ्तारी?
चलिए एक काम करते हैं... चुनाव में ज़मानत ज़ब्त होने का मतलब क्या होता है, इसके बारे में आपको ज़रा तफ़्सील से बता देते हैं... किसी चुनाव में प्रत्याशी की जमानत जब्त होने का साफ और सीधा मतलब ये है कि जनता ने उसे बुरी तरह से खारिज कर दिया है या नकार दिया है... और साफ लफ्जों में कहें तो जनता ने माना ही नहीं कि फलाना शख्स इस पद का दावेदार बनने के लायक भी है... यानी नालायक है... ऐसे उम्मीदवारों की ही जमानत राशि डूबती है... अब आप ये सोच रहे होंगे कि ये जमानत राशि क्या होती है, क्यों इसकी जरूरत पड़ती है... चलिए इसके बारे में भी जान लीजिए...

दरअसल, चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार returning officer के पास नामांकन दाखिल करते वक्त जमानत राशि जमा कराता है... ये राशि सरकारी खजाने में जमा होती है... जमानत राशि, जमा कराने के पीछे चुनाव आयोग की मंशा बेहद साफ है... ये रकम इसलिए रखी गई है कि केवल वो ही उम्मीदवार चुनाव लड़ें जिनके चुनाव लड़ने की मंशा ठीक हो, केवल नाम के लिए चुनाव न लड़ रहे हो... चाहे पंचायत चुनाव हो, नगर निगम के चुनाव हों, लोकसभा के चुनाव हों, विधानसभा चुनाव हो, अरे राष्ट्रपति चुनाव तक में, हर चुनाव में चुनाव लड़ने वाले को जमानत राशि returning officer के पास जमा करनी होती है... जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के मुताबिक हर स्तर के चुनाव में अलग-अलग जमानत राशि जमा की जाती है...
जमानत जब्त के नियम?
अब चलिए आपको बताते हैं कि किस चुनाव के लिए कितनी जमानत राशि जमा करानी होती है? पहले आपको बताते हैं लोकसभा और राज्यसभा चुनाव का हाल... लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव में सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को यानी General Category के उम्मीदवारों को 25,000 रुपये की जमानत राशि जमा करनी होती है... वहीं, अनुसूचित जाति और जनजाति के उम्मीदवारों के लिए जमानत राशि 12,500 रुपये रखी गई है... यानी जनरल कैटेगरी वालों की तरफ से जमा कराये जाने वाले टोटल अमाउंट का हाफ अमाउंट...
खैर, अब बारी आती है विधानसभा और विधान परिषद के चुनाव की... इन दोनों के चुनावों के लिए सामान्य उम्मीदवारों को 10,000 रुपये और SC/ST उम्मीदवारों को 5,000 रुपये रिटर्निंग अधिकारी के पास जमा करना होता है... राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए जमानत राशि 15,000 रुपये रखी गई है... अब आपका सवाल होगा कि इस ज़मानत राशि का होता क्या है... तो आपको बता दें कि ये ज़मानत राशि उम्मीदवारों को वापस भी कर दी जाती हैं और जब्त भी कर ली जाती है... लेकिन किन अलग-अलग परिस्थितियों में? बताते हैं... जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के मुताबिक, अगर उम्मीदवार कुल पड़े वोटों का 1/6 फीसद वोट हासिल कर ले जाते हैं तो उनकी जमानत बच जाती है...
क्या जमानत राशि वापसी योग्य है?
उन्होंने जो रकम रिटर्निंग अधिकारी के पास जमा कराई है, वे वापस ले सकते हैं... इसके अलावा अगर उम्मीदवार अपना नामांकन वापस ले लेता है तो भी जमानत राशि वापस कर दी जाती है... और अगर उम्मीदवार की मौत हो जाती है तो भी ये राशि उसके परिजन को वापस लौटा दी जाती है... ये ज़मानत राशि जब्त कब होती है? ये अब आप जान लीजिए... अगर चुनाव में किसी उम्मीदवार को कुल पड़े वोटों का 1/6 फीसदी भी हासिल नहीं होता है तो उस उम्मीदवार की जमानत जब्त हो जाती है... और यही same formula राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी लागू होता है... हमें उम्मीद है कि अब अगर आपसे कोई जमानत जब्त को लेकर बात करेगा तो आप थोड़े से भी कंफ्यूज नहीं होंगे...
