बाबा साहेब अंबेडकर ने हिंदू धर्म की जगह बौद्ध धम्म क्यों अपनाया?
भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. भीम राव अंबेडकर की आज जयंती मनाई जा रही है. जाति उन्मूलन के लिए लड़ने वाले योद्धा डॉक्टर भीम राव अंबेडकर का जन्म (Dr Bhim Rao Ambedkar Jayanti) 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू छावनी में एक निम्न जाति के महार परिवार में हुआ था. वो दलित जाति से थे. भारत के सविंधान निर्माण में उनकी अहम भूमिका थी. अपने अनुयायियों के बीच वो काफी लोकप्रिय थे. यही कारण था कि उनके अनुयायी उन्हें प्यार और सम्मान से बाबा साहेब कहकर पुकारते थे.
लेकिन इसके पीछे एक और तर्क दिया जाता है कि डॉक्टर भीम राव अंबेडकर के विचारों और उनकी काबिलियत देख उनके एक प्रखर अनुयायी सी.बी. खैरमोड़े साहब ने सितंबर 1927 में डॉ. अम्बेडकर जी को "बाबा साहेब" के नाम से संबोधित करने का सुझाव दिया था. बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर का जन्म हिंदू धर्म में हुआ था लेकिन उन्होंने अपना धर्म बदलने का फैसला किया और वह बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए.डॉ. अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाया. बाबा साहेब के धर्म परिवर्तन को लेकर जिज्ञासा रहती है कि आखिर उन्होंने ईसाई धर्म, इस्लाम या सिख धर्म की बजाय बौद्ध धर्म ही क्यों चुना?
Dr Bhim Rao Ambedkar ने क्यों अपनाया बौद्ध धर्म?
इन सवालों का जवाब डॉ. आंबेडकर के लेख 'बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य' में मिलता है. यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में 'Buddha and the Future of His Religion' के नाम से 1950 में प्रकाशित हुआ था. इस लेख में डॉ. आंबेडकर (Dr Bhim Rao Ambedkar Jayanti) ने बौद्ध धर्म को क्यों चुना, इस पर विस्तार से चर्चा की है और चार प्रमुख धर्मों - बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, ईसाई धर्म, और इस्लाम - की तुलना की है. इस तुलना के पश्चात् वो निष्कर्ष पर पहुंचे जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म का चुनाव किया. डॉ. आंबेडकर की नजर में अन्य धर्मों की तुलना में बौद्ध धर्म श्रेष्ठ था. उन्होंने यह भी बताया कि बौद्ध धर्म संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी है. आपको बता दें कि बाबा साहेब के विचार और उनके इस लेख को 'डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज' के खंड 17 के भाग 2 में संकलित किया गया है.
डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr Bhim Rao Ambedkar) ने हिंदू धर्म की जगह बौद्ध धम्म अपनाने का निर्णय एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय था। उन्होंने इस परिवर्तन के पीछे कुछ मुख्य कारण बताए:
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जातिवाद से परे: डॉ. अंबेडकर, हिंदू धर्म में विद्यमान जातिवाद और ऊँच-नीच की व्यवस्था के बड़े विरोधी थे. उनका मानना था कि यह जातीय व्यवस्था दलितों और अन्य नीच जातियों के साथ अनुचित व्यवहार को बढ़ावा देती है. वहीं, अंबेडकर को बौद्ध धर्म में इस संबंध में समानता और समतावादी मान्यताओं में एकरूपता नजर आई.
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मानवाधिकार: बौद्ध धर्म व्यक्तिगत स्वतंत्रता, न्याय, और समानता को बढ़ावा देता है. डॉ. अंबेडकर ने महसूस किया कि बौद्ध धम्म में इन मूल्यों की बहुत अधिक प्रशंसा की जाती है, जो उनके समाज सुधार के दृष्टिकोण से मेल खाती थी.
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समाज सुधार: डॉ. अंबेडकर ने सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक सुधार के लिए लगातार संघर्ष किया. उन्होंने कहना था कि बौद्ध धर्म में वे नैतिकता और अनुशासन की सशक्त प्रणाली प्राप्त कर सकते हैं जिससे समाज सुधार के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलती है.
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आध्यात्मिकता: बौद्ध धर्म में आस्था और आत्मिकता के साथ-साथ तर्कसंगत दृष्टिकोण भी है. डॉ. अंबेडकर ने इस धर्म को अधिक तार्किक और वैज्ञानिक पाया, जिससे वे खुद को जुड़ा हुआ महसूस कर सके.
बताते चलें कि न केवल बाबा साहेब (Baba Saheb Dr Bhim Rao Ambedkar) बल्कि उनके लाखों अनुयायियों ने भी बौद्ध धर्म अपनाया. बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन की इस घटना से भारत में दलित आंदोलन मुखर हो उठा.
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