Teja Dashami 2018 जाने तेजा दशमी में किस भगवान कि की जाती है पूजा
हर साल भाद्रपद शुक्ल Teja Dashami से पूर्णिमा तक तेजाजी के विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है |
डेस्क- Teja Dashami को लोकदेवता के रूप में पूजनीय तेजाजी की पूजा की जाती है | तेजाजी को भगवान शिव का भी अवतार माना जाता है |
लोकदेवता के रूप में पूजनीय तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को हर वर्ष Teja Dashami के रूप में मनाया जाता है।
तेजा दशमी के दिन लोग व्रत रखते हैं। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल 10 (तेजा दशमी) से पूर्णिमा तक तेजाजी के विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है | इस वर्ष Teja Dashami (19सितम्बर 2018 ) को सभी जगह मनाई जाएगी |
- नवमी की पूरी रात रातीजगा करने के बाद दूसरे दिन दशमी को जिन-जिन स्थानों पर वीर तेजाजी के मंदिर हैं, मेला लगता है।
- हजारों की संख्या में श्रद्धालु नारियल चढ़ाने एवं बाबा की प्रसादी ग्रहण करने तेजाजी मंदिर में जाते हैं।
- इन मंदिरों में वर्षभर से पीड़ित, सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीड़ों की ताँती (धागा) छोड़ा जाता है।
- सर्पदंश से पीड़ित मनुष्य, पशु यह धागा सांप के काटने पर, बाबा के नाम से, पीड़ित स्थान पर बांध लेते हैं।
इससे पीड़ित पर सांप के जहर का असर नहीं होता है और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है।
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राजस्थान के लोक देवता तेजा जी, जिन्होंने समाज को एक नयी दिशा दी
लोक देवता ऐसे महा पुरुषो को कहा जाता हे जो मानव रूप में जन्म लेकर अपने असाधारणऔर लोकोपकारी कार्यो के कारन देविक अंश के प्रतीक के रूप में स्थानीय जनता द्वारास्वीकार किये गये हे |
राजस्थान मेंरामदेवजी,भेरव,तेजाजी,पाबूजी,गोगाजी,जाम्भोजी,जिणमाता ,करणीमाता आदि सामान्यजन में लोकदेवता के रूप में प्रसिद्ध हे |
इनके जन्मदिन अथवा समाधि की तिथि को मेले लगते हे |
राजस्थान में भादो शुक्ल दशमी को बाबा रामदेव और सत्यवादी जाट वीर तेजाजीमहाराज का मेला लगता हे |
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तेजाजी को भगवान शिव का माना जाता है अवतार
तेजाजी को भगवान शिव अवतार माना जाता है सर्प के काटे हुआ व्यक्ति तेजाजी कृपा से ठीक हो जाता है तेजाजी के पुजारी को घोडला एव चबूतरे को थान कहा जाता हे |
सेंदेरिया तेजाजी कामूल स्थान हे यंही पर नाग ने इन्हें डस लिया था |
ब्यावर में तेजा चोक में तेजाजी का एक प्राचीन थानक हे |
लोकदेवता के रूप में पूजनीय तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। लोग व्रत रखते हैं।
पर विशाल पशु मेले का होता है आयोजन
- प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल 10 (तेजा दशमी) से पूर्णिमा तक तेजाजी के विशाल पशु मेले का आयोजन किया जाता है |
- राजस्थान में स्थानीय देवता रामदेव जी व गोगाजी के समान एक अन्य देवता ‘तेजाजी’ भी हैं जिनकी राजस्थान मध्यप्रदेश में ‘सर्परूप’ में बड़ी मान्यता है।
- प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन राजस्थान के सभी गांवों, कस्बों एवं शहरों में ‘तेजाजी’ का मेला लगता है।
- इस अवसर पर हाड़ौती अंचल के तलवास एवं आंतरदा गांव में ‘तेजादशमी’ और ‘अनंत चतुर्दशी’ के मौके पर निकाली जाने वाली ‘सर्प की सवारी’ जहां जन-कौतूहल का केंद्र है, वहीं वर्तमान विज्ञान के युग में भी अखंड धार्मिक विश्वास का जीता-जागता उदाहरण है।
- बूंदी जिला के आंतरदा गांव में तेजादशमी (भाद्रपद शुक्ल दशमी) के दिन गांव के लोग (बच्चे-बूढ़ों सहित) एकत्र होकर एक
- निश्चित दिशा में ध्वज-पताकाएं, अलगोजे, ढोल, ताशे, मजीरों के साथ गाते-बजाते सर्परूपी तेजाजी को तलाशने जंगल में जाते हैं। वहां प्राय: खेजड़े (शमी) के वृक्ष पर उन्हें सफेद रंग का एक सर्प मिलता है, जिसकी लंबाई करीब एक बालिश्ति (बित्ता) यानी आठ से दस इंच एवं मोटाई लगभग आधा इंच होती है।
- इस विशिष्टï प्रजाति के सर्प के मस्तिष्क पर त्रिशूल एवं गाय के खुर की आकृतियां बनी होती हैं और यही इसके ‘तेजाजी’ के पति रूप होने की निशानी मानी जाती है।
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पिछले 141 वर्षों से चली आ रही तेजा दशमी माने की परंपरा
- आंतरदा गांव में पिछले 141 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है।
- तेजा दशमी के दिन प्रतिवर्ष इस सर्प को खोजकर इसे तेजाजी की ‘देह’ मानकर तलवास और आंतरदा गांव में तेजाजी को ‘दहेलवाल जी’ के नाम से पूजा जाता है।
- इस सर्प को खोज लेने के उपरांत परंपरा के अनुसार आंतरदा के पूर्व नरेश एवं दहेलवालजी के पुजारी, पेड़ की टहनी पर बैठे इस सर्प की, सबसे पहले पूजा कर दूध का भोग लगाते हैं।
- इसके साथ ही ढोलक, मजीरों एवं अलगोजों की धुन पर तेजाजी (तेजाजी से संबंधित गीत) गाए जाते हैं।
- ग्रामीणों की मनुहार पर यह सर्प पेड़ की टहनी से उतरकर पुजारी के हाथ में रखी फूल-पत्तियां की ‘ठांगली’ (डलिया) में आ जाता है और इसी के साथ शुरू हो जाती है दहेलवालजी रूपी इस सर्प देवता की शोभायात्रा।
- शोभायात्रा के गढ़ चौक में पहुंचने पर आंतरदा ठिकाने की ओर से सर्पदेव की पूजा-अर्चना की जाती है।
- पूजा-अर्चना के उपरांत यहां से प्रस्थान कर यह शोभायात्रा दहेलवाल जी के स्थानक (मंदिर) पर पहुंचती है और वहां सर्पदेव को प्रतिष्ठिïत कर दिया जाता है।
- ठीक ऐसी ही प्रक्रिया अनंत चतुर्दशी के दिन तलवास गांव में अपनाई जाती है।
- वहां भी यही सर्पदेव आंतरदा रोड स्थित जंगल से लाए जाते हैं तथा सर्परूपी दहेलवालजी की गांव के मुख्य मार्गों से शोभायात्रा निकाली जाती है।
- मार्ग में स्त्री-पुरुष श्रद्धापूर्वक चढ़ावा भी चढ़ाते हैं।