विचित्र वीर हनुमान पाठ का लाभ , गंभीर बीमारी से मुक्ति के लिए विचित्र वीर हनुमान स्तोत्र का पाठ ,शनि मंगल युति का उपाय भी है 

Vichitra veer hanuman
 शनि मंगल के उपाय 

किसी की कुंडली में  शनि और मंगल कुपित है बार बार परेशानी खासकर बीमारी हो रही है और काफी दवा कराने के बाद भी बीमारी नही पिच छोड़ रही है तो हनुमान जी की बिशेष आराधना विचित्र वीर हनुमान स्त्रोत का पाठ करने से बीमारी ठीक हो जाती है और जो दवा पहले की जा रही थी और फायदा नही मिल पा रहा था अब वही दवा अब फायदा करने लगेगा ।


बीमारी से बचाव के लिए हनुमान जी का पाठ

विचित्र वीर हनुमान का पाठ प्रतिदिन शनिवार को 11 बार किया जा सकता है परंतु  यदि बीमारी गंभीर है तो 108 बार पाठ करने के बाद हवन किया जाना चाहिए जिससे बीमारी ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है ।
विचित्र वीर हनुमान पाठ के लाभ
विचित्र वीर हनुमान का पाठ करने से कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय प्राप्त होती है साथ ही अगर कोई अदृश्य शत्रु है तो उसमें भी लाभ मिलता है । किसी भी प्रकार के अनिष्ट से रक्षा होती है ।


विचित्र वीर हनुमान का पाठ कैसे करें 

 हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करते हुए कलश को सामने रखें  जल से आचमन करते हुए हनुमान जी को मन ही मन ध्यान करते हुए उत्तर दिशा में मुह करते हुए पाठ करें । चमेली के तेल।का दीपक हनुमान जी के सामने जलाएं और जब पाठ खत्म हो जाये तो कलश का जल प्रसाद रूप में ग्रहण करें और पूरे घर मे छिड़काव करें और बीमार व्यक्ति को भी पिलाएं ।

शनि मंगल की युति है कुंडली मे तो करना पड़ेगा परेशानियों का सामना ,क्या है शनि मंगल युति उपाय ?


विचित्र वीर हनुमान मंत्र 

अस्य श्री विचित्र वीर हनुमन्माला मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्रो भगवान ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री विचित्र वीर हनुमान् देवता, मम अभीष्ट सिद्ध्यर्थे माला मन्त्र जपे विनियोगः । 
अथ करन्यासः ।
 ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । 
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः । 
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः । 
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः । 
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः । 
ॐ ह्रः करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः । 
अथ अङ्गन्यासः - (अंग स्पर्श करे) 
ॐ ह्रां हृदयाय नमः ।
 ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा । ॐ ह्रूं शिखायै वषट् । 
ॐ ह्रैं कवचाय हुम् । 
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् । 
ॐ ह्रः अस्त्राय फट् । 
अथ ध्यानम् । 
वामे करे वैर वहं वहन्तं शैलं परे श्रृङ्खलम आलयआढ्यम् । दधानम आध्मात सुवर्ण वर्णं भजे ज्वलत्कुण्डलम आञ्जनेयम् ॥ ॐ नमो भगवते विचित्र वीर हनुमते प्रलय काल अनल प्रभा ज्वलत्प्रताप वज्र देहाय अञ्जनी गर्भ सम्भूताय प्रकट विक्रम वीरवदैत्य- दानव यक्ष राक्षस ग्रहवबन्धनाय भूतग्रह- प्रेत ग्रह पिशाच ग्रह शाकिनी ग्रह डाकिनी ग्रह- काकिनी ग्रह कामिनी ग्रह ब्रह्म ग्रह ब्रह्म राक्षसवग्रह- चोर ग्रह बन्धनाय एहि एहि आगच्छागच्छ- आवेशय आवेशय मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर सत्यं कथय कथय व्याघ्र मुखं बन्धय बन्धय सर्पमुखं बन्धय बन्धय राजमुखं बन्धय बन्धय सभामुखं बन्धय बन्धय शत्रुमुखं बन्धय बन्धय सर्वमुखं बन्धय बन्धय लङ्का प्रासाद भञ्जन सर्वजनं मे वशमानय वशमानय श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षय आकर्षय शत्रून् मर्दय मर्दय मारय मारय चूर्णय चूर्णय खे खे खे श्री रामचन्द्राज्ञया प्रज्ञया मम कार्यसिद्धि कुरु कुरु मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा ॥ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् श्री विचित्र वीर हनुमते मम सर्वशत्रून् भस्मी कुरु कुरु हन हन हुं फट् स्वाहा ॥ 
इति श्रीविचित्र वीर हनुमन्माला मन्त्रः सम्पूर्णम्

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