Mohini Ekadashi Vrat 2024: मोहिनी एकादशी व्रत कथा, पूजाविधि मोहिनी एकादशी का महत्व क्या है? मोहिनी एकादशी कब है ?

मोहिनी एकादशी का महत्व
शास्त्रों में मोहिनी एकादशी का व्रत शत्रुओं पर विजय पाने के लिए बहुत उत्तम बताया गया है. इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर असुरों का वध किया था. मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप दूर हो जाते हैं और व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेता है. इतना ही नहीं एकादशी का व्रत करने से घर परिवार में सुख और शांति बनी रहती है साथ ही धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. पद्मपुराण के अनुसार भगवान श्री विष्णु ने युधिष्ठिर को मोहिनी एकादशी का महत्व समझाते हुए कहते हैं कि त्रेता युग में महर्षि वशिष्ठ के कहने पर परम प्रतापी श्री राम ने इस व्रत को किया। यह व्रत सब प्रकार के दुखों का निवारण करने वाला, सब पापों को हरने वाला व्रतों में उत्तम व्रत है. इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पातक समूह से छुटकारा पाकर विष्णुलोक को प्राप्त होता है.
मोहिनी एकादशी मुहूर्त
मोहिनी एकादशी 2024 में 12 मई की सुबह 5:33 बजे से शुरू होकर अगले दिन 20 मई को सुबह 8:21 बजे तक मान्य रहेगी। इस दिन सूर्य वृषभ राशि में और चंद्र मिथुन राशि में होगा। हालांकि पूरे दिन अबूझ मुहूर्त होने के कारण किसी भी शुभ कार्य के लिए ज्योतिषियों की आवश्यकता नहीं है.
मोहिनी कौन है?
शास्त्रों के अनुसार मोहिनी भगवान विष्णु का अवतार रूप थी. समुद्र मंथन के समय जब समुद्र से अमृत कलश निकला, तो इस बात को लेकर विवाद हुआ कि राक्षसों और देवताओं के बीच अमृत का कलश कौन लेगा। सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। अमृत के कलश से राक्षसों का ध्यान भटकाने के लिए मोहिनी नामक सुंदर स्त्री के रूप में भगवान विष्णु प्रकट हुए. इस प्रकार सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की सहायता से अमृत का सेवन किया। यह शुभ दिन वैशाख शुक्ल एकादशी था. इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है.
मोहिनी एकादशी पूजन विधि
मोहिनी एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए इस दिन सूर्य निकलने से पूर्व उठकर नित्य स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान की प्रतिमा को स्नान करवाकर उन्हें ऊंचे आसन पर विराजमान करें। धूप, दीप, नैवेद्य व पुष्प आदि से विधिवत सच्चे मन से उनका पूजन करें। मौसम के अनुसार आम तथा अन्य मीठे फल से प्रभु को भोग लगाएं। बब्रह्मणों को यथासंभव भोजन कराएं एवं उन्हें फल आदि के साथ दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। स्वयं किसी प्रकार का अन्न ग्रहण न करें बल्कि फलाहार करें। रात में प्रभु के नाम का संकीर्तन करते हुए धरती पर शयन करना चाहिए। साथ ही भगवान का सुमिरन करना चाहिए।
मोहिनी एकादशी व्रत कथा
सरस्वती नदी के तट पर बसे भद्रावती नगर में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा का राज्य था. उसी नगर में एक धन-धान्य से परिपूर्ण एवं शांत स्वभाव वाला धन पाल नामक वैश्य भी रहता था, जो सदा किसी न किसी पुण्यकर्मों में लगा रहता था. उसने जनहित में अनेक कुंए, प्याऊ लगवाए तथा धर्मशालाएं, मठ एवं बगीचे बनाकर लोगों की अत्याधिक सेवा की. उसने सडकों के किनारे आम, नीम जामुन आदि के अनेक छायादार पेड़ लगवाए।
धनपाल के पांच पुत्र थे जिनके नाम सुमना, सब्दुद्धि, मेधावी और सुकृति तो अपने पिता के समान बड़े धर्मात्मा थे परन्तु धृष्टबुद्धि अपने नाम के अनुकूल ही बड़ा दुष्ट था. उसका मन सदा ही पापों में लगा रहता था. वह अपने पिता के धन का दुरूपयोग करता रहता था. उसने न तो देवी-देवताओं का पूजन किया और न ही ब्रह्मणों एवं पितरों का कभी आदर किया। एक दिन उसके पिता ने तंग आकर दुखी ह्रदय से उसे उसके दुराचरण के लिए घर से निकाल दिया तब उसके सभी बंधु-बांधवो ने भी मिलकर उसका परित्याग कर दिया। ऐसे में दुखी होकर वह भूख-प्यास से परेशान होकर इधर-उधर भटकने लगा.
कहा जाता है कि जब किसी के पुण्य कर्म उदय होते हैं तो उन्हें संतों के दर्शन करने तथा उनके उपदेश सुनने का मौका मिलता है. ऐसे ही किसी पिछले पुण्य कर्म के प्रभाव से धृष्ट बुद्धि घूमते हुए महर्षि कौण्डिल्य के आश्रम पहुंचा। तब वैशाख का महीना चल रहा था तथा महर्षि गंगास्नान करके लौट रहे थे. धृष्ट बुद्धि महर्षि के सामने हाथ जोड़कर उनसे अपने दुखों को दूर करने के लिए प्रार्थना की. जिस पर महर्षि को दया आ गई. महर्षि ने उसे मोहिनी एकादशी का व्रत करने को कहा. व्रत के प्रभाव से वह अपने सभी पापों से मुक्त हो गया और अंत में वह प्रभु के धाम को प्राप्त हुआ.